बाड़मेर बाड़मेर का स्टेशन रोड़ बाजार..। सामने ही रेलवे स्टेशन और आगे तक जाते हुए छोटा बाजार हुआ करता था। बीएसएनएल का ऑफिस तब भी था और आगे कलेक्ट्रेट। भारत-पाकिस्तान की युद्ध की घोषणा 3 दिसंबर को ही हो गई थी। तब आकाशवाणी पर बीबीसी लंदन सुना करते थे और रेडियो भंवरलाल अग्रवाल स्टेशन रोड़ के घर पर तो भीड़ जमा हो जाती थी। 3 दिसंबर की घोषणा ने ही बाड़मेर को अलर्ट कर दिया था कि युद्ध शुरू हो गया है। पूर्वी सीमा की तरह पश्चिमी सीमा से भी युद्ध होना है,यानि बाड़मेर-जैसलमेर दोनों हाई अलर्ट मोड पर आ चुके थे।
सेना को दी मदद
बाड़मेर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक शांतनुकुमार और जिला कलक्टर आईसी श्रीवास्तव ने सेना के अधिकारियों से संपर्क करने के साथ ही यहां तैनात सेना से भी
कोऑर्डिनेशन कर लिया था। जिला कलक्टर और पुलिस अधीक्षक के क्वाटर सहित अन्य लोगों को भी हिदायत दी थी कि वे अपने-अपने घरों में बंकर बना लें। कोई घर से बाहर नहीं निकले। रात में ब्लैक आऊट की स्थितियां रहेंगी। युद्ध को लेकर सेना की मदद के भी तैयार रहे। मुख्य सड़क पर भी पुलिस ने सूचना दे दी थी। पुलिस अधीक्षक प्रतिदिन शाम को गढ़ मंदिर पहुंच जाते थे
बाखासर बलवंत भवानी मिले
जयपुर से आए ब्रिगेडियर भवानीसिंह को बलवंतसिंह बाखासर की जानकारी जोधपुर से ही मिल गई थी। सांचौर, जालौर, कच्छ का रण से लेकर छाछरो तक बलवंत के चर्चे थे। वे बलवंतसिंह के पास पहुंचे। रौबदार चेहरा, ऊंची कद काठी वाले बलवंतसिंह से मिलने थाने की पुलिस भी गई थी। दोनों की मुलाकात ने यहीं से मैप बना लिया था किस तरह छाछरो तक का रास्ता तय किया जाएगा। 4 दिसंबर को ही इसके लिए सेना की टुकड़ी के साथ बलवंत हो लिए थे।
गडरारोड सुंदरा की ओर बढ़ रही थी पाक सेना
पाकिस्तान की सेना ने इधर मुनाबाओ और सून्दरा की ओर अपनी ताकत आजमाने की तैयारियां कर ली थी। भारतीय सेना के जाबांज यहां थे तो सही लेकिन इतनी संख्या में नहीं थे। मुनाबाव के बाद गडरारोड़ बड़ा कस्बा था जो 1947 के बंटवारे में यहां आकर बसा था। आगे सुंदरा का इलाका था। इस इलाके से पाकिस्तान की बढ़ती हरकत की जानकारी देने के लिए ग्रामीण ऊंट पर सवार होकर रवाना हो गए थे।