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बीकानेर,रूसी सेना यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खार्किव में दाखिल हो गई है। बीकानेर के बंगला नगर निवासी मेडिकल छात्र विवेक सोनी इस समय यूक्रेन के खार्किव मेट्रो स्टेशन पर फंसे हुए हैं। पिछले चार दिन से न सिर्फ विवेक बल्कि तीन हजार भारतीय यहां फंसे हुए हैं। इनमें अधिकांश स्टूडेंट्स हैं, कुछ वर्कर्स भी हैं। खार्किव और कीव में फंसे भारतीय को नहीं निकालने में इंडियन एम्बेसी भी असहाय है। कहा जा रहा है कि रोमानिया तक वे अपने स्तर पर पहुंचे। फिर आगे उन्हें भारत भेज दिया जाएगा। खार्किव से पौलेंड और रोमानिया की दूरी 1500 किलोमीटर है। छात्रों के पास खाना भी खत्म हो गया। दो दिन से भूखे ही मेट्रो स्टेशन में बैठे हैं।

खार्किव के एक स्टूडेंट ने एक ऑडियो क्लिप भी भेजी। डेनिप्रो की भारतीय स्टूडेंट वापस भारत जाने के लिए सहायता मांग रहा है, लेकिन दूतावास के अधिकारी कह रहे हैं कि उन्हें रोमानिया तक आना पड़ेगा। 1200 से 1500 किलोमीटर की दूरी बम धमाकों के बीच स्टूडेंट्स को अपने स्तर पर तय करना होगा। छात्र ये सफर कैसे तय करेंगे, इसका जवाब दूतावास के पास भी नहीं है। खार्किव के स्टूडेंट्स के भी यही हालत है। उन्हें बॉर्डर तक खुद के स्तर पर पहुंचने के लिए कहा जा रहा है।

दरअसल, खार्किव और कीव ऐसे एरिया है, जहां रूस सबसे ज्यादा हमले कर रहा है। इन्हीं दो एरिया में बड़ी संख्या में कॉलेज हैं, जहां स्टूडेंट्स पढ़ाई कर रहे हैं। करीब तीन हजार स्टूडेंट्स तो अकेले खार्किव में है। इनमें कुछ मेट्रो स्टेशन पर हैं तो कुछ स्कूल-कॉलेज के बेसमेंट शरण लिए हैं।

खार्किव में मेट्रो स्टेशन पर बैठे भारतीय छात्र। दो दिन से भूखे
बीकानेर के विवेक सोनी ने रविवार सुबह बातचीत में कहा कि उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है। दो दिन पहले कुछ फ्रूट्स आए थे। इसके बाद खाना नहीं मिला। जो मेट्रो पर खाना पहुंचाता है, वो नहीं आया। बताया जा रहा है कि बाहर फायरिंग होने के कारण कोई बाहर ही नहीं निकला। पिछले कई दिनों से वो मेट्रो के पास स्थित हॉस्टल जाते हैं, कुछ खाना वहीं से लेकर आते हैं, लेकिन अब जंग इतनी बढ़ गई है कि बाहर निकलना ही मुश्किल है।

भारतीय एम्बेसी से मदद की गुहार लगा रहे स्टूडेंट्स।
कोई स्थानीय सहयोग नहीं
स्टूडेंट्स बता रहे हैं कि उन्हें स्थानीय लोग भी कोई खास सहयोग नहीं कर रहे हैं। वो खुद मुश्किल में हैं और मेट्रो स्टेशन पर ही छिपे हुए हैं। कोई बाहर निकलकर खाने की व्यवस्था में जुटता है तो थोड़ी देर में सायरन बजना शुरू हो जाता है। उन्हें फिर लौटकर इस मेट्रो स्टेशन पर आना पड़ता है।

विवेक ने साथ मेट्रो स्टेशन पर मौजूद कुरुक्षेत्र की निशा का कहना हैं कि हम तीन दिन से यहां फंसे हुए है। जगह तो छिपने के लिए मिल गई है, लेकिन खाना पीना नहीं मिल रहा है। युद्ध की आहट अब खार्किव तक आ गई है। हम न सिर्फ रोटी के लिए परेशान है बल्कि जान भी खतरे में है। आने वाले वक्त का कोई पता नहीं हैं कि क्या होगा।

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