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बीकानेर,प्रसादौत संस्थान द्वारा कश्मीरी एवं उर्दू भाषा के ख्यातनाम साहित्यकार प्रो.मुहम्मद ज़मान आज़ुर्दा कि चर्चित कृति ’प्रतिबिंब’ का राजस्थानी भाषा में अनुवाद ’पड़बिंब’ शीर्षक से राजस्थानी के वरिष्ठ कवि, कथाकार, अनुवादक एवं आलोचक कमल रंगा ने किया। यह अनुदित पुस्तक साहित्य अकादेमी नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है।

राजस्थानी भाषा में अनुदित पड़बिंब कृति का लोकार्पण आज हुआ। लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ आलोचक एवं शिक्षाविद् डॉ. ऊमाकान्त गुप्त ने कहा कि अनुवाद एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा विभिन्न राष्ट्रों की सांस्कृतिक निधियां आज हमारे सामने है। यही वो माध्यम है, जिससे हम एक दूसरे कि सांस्कृतिक विरासत के भागीदार बने हैं। राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा द्वारा अनुदित कि गई उक्त कृति ‘पड़बिंब‘ अनुवाद का श्रेष्ठ कार्य है क्योंकि रंगा ने मूल कृति एवं रचनाकार के मूल भावों को कहीं खण्डित नहीं किया है। जिसके लिए वह साधुवाद के पात्र है।
समारोह के मुख्य अतिथि केन्द्रीय साहित्य अकादेमी नई दिल्ली मे हिन्दी भाषा परामर्श मण्डल के सदस्य एवं वरिष्ठ आलोचक-कवि डॉ ब्रजरतन जोशी ने कहा कि वर्तमान समय में अनुवाद का क्षेत्र बड़ा व्यापक और निरंतर महत्वपूर्ण होता जा रहा है। आज विभिन्न अनुशासनी, विभिन्न ज्ञान शाखाओं, भाषायी-संचेतना को विस्तार प्रदान करने का संसाधन बन गया है अनुवाद कार्य। अनुवाद का इतिहास काफी पुराना है, दुनिया की विभिन्न भाषाओं के साहित्य का अनुवाद द्वारा ही तुलनात्मक अध्ययन करने में सहायता मिलती हैं। जिससे देशकाल और समय की विभिन्नता के बावजूद विभिन्न भाषाओं के रचनाकारों के साहित्य में साम्य और वैषम्य क्या है? कि तुलना अनुवाद द्वारा ही की जा सकती है। रंगा द्वारा किया गया अनुवाद महत्वपूर्ण है।
समारोह के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार एवं केन्द्रीय संगीत नाटक अकादेमी नई दिल्ली सदस्य मधु आचार्य ने कहा कि अनुवाद-कर्म कहीं भी मौलिक सृजन उपक्रम से कमतर नहीं है। आज के संदर्भ में खासतौर से भारतीय भाषाओं के साहित्य का अनुवाद के जरिए आदान-प्रदान होना एक भाषायी एवं साहित्यिक आवश्यकता है। कमल रंगा द्वारा किया गया कश्मीरी निबंधों का राजस्थानी भाषा में अनुवाद महत्वपूर्ण एवं श्रेष्ठ सृजनात्मक उपक्रम है। ऐसे कार्यो के माध्यम से ही भारतीय भाषाओं के बीच में अनुवाद एक सेतु की भूमिका निभा रहा है। इस बाबत केन्द्रीय साहित्य अकादेमी नई दिल्ली की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसी तर्ज पर प्रदेश की भाषा अकादमियों को अनुवाद कार्य को अधिक से अधिक महत्व देना चाहिए।
‘पड़ंिबब‘ पुस्तक के अनुवादक एवं वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि अनुवाद दो भाषाओं के बीच में सांस्कृतिक एवं भाषायी सेतु का काम तो करता ही है वैसे अनुवाद-कर्म चुनौती भरा है, क्येांकि एक अनुवाद को मूल रचना एवं रचनाकार की भाव-मनोविज्ञान आदि का पूरा ध्यान रखना होता है। तभी तो कहते है कि अनुवाद का कार्य परकाया प्रवेश है।
कार्यक्रम के प्रांरभ में सभी का स्वागत करते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद् संजय सांखला ने कहा कि कमल रंगा द्वारा किए गए अनुवाद कार्य से राजस्थानी पाठकों को कश्मीरी साहित्य से रूबरू होने का अवसर मिलेगा।
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ शायर एवं कथाकार क़ासिम बीकानेरी ने करते हुए कमल रंगा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए कमल रंगा के अनुवाद कार्य को रेखांकित किया। सभी का आभार युवा कवि गिरिराज पारीक ने ज्ञापित किया।

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