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बीकानेर,राजस्थान में जहां कबूतरों के नाम, बैंक में लाखों रुपए का बैलेंस, घर, दुकान व जमीन उनके नाम पर हैं और तो और कबूतरों का पैन कार्ड नंबर भी है.लेकिन क्या आपने कभी भी करोड़पति कबूतरों के बारे में सुना है? अगर नहीं तो आज हम आपको बताते है. दरअसल अधिकतर लोग इस तरह की कोई जानकारी ही नही हैं की राजस्थान के जोधपुर जिले के छोटे से कस्बे आसोपा में कुछ कबूतर ऐसे हैं, जो करोड़पति हैं. जी हां आपने सही पढ़ा ‘करोड़पति कबूतर’. आगे जानिए इस जगह के कबूतर आखिर कैसे करोड़पति बने. देश दुनिया के कई हिस्सों में, कबूतरों को दाना डालने की परंपरा है, लेकिन मारवाड़ के कबूतरो के ठाट बाट ही अलग ही है

जोधपुर जिले के आसोप क्षेत्र में जहां कबूतरों के नाम, बैंक में लाखों रुपए का बैलेंस, घर, दुकान व जमीन उनके नाम पर हैं और तो और कबूतरों का पैन कार्ड नंबर भी है. कबूतर भी किराया लेते हैं और धर्म-कर्म से संबंधित काम उनके किराए और जमीन की कमाई से किया जाता है.

जोधपुर से 90 किलोमीटर दूर असोप में कबूतरों का बैंक बैलेंस लगभग 35 लाख रुपये के करीब है और गांव के बाजार क्षेत्र में 36 बिगा जमीन है जिसकी कीमत 13 करोड़ से ज्यादा बताई जाती है वही कबूतरों के नाम पर 364 बिगा खेती की ज़मीन है. इस भूमि पर ग्रामीण खेती के लिए बोलियां लगाते हैं और इसकी आय से प्राप्त आय को कबूतरों के खाते में जमा किया जाता है.

कबूतरों के नाम जमीन की कीमत 33 करोड़ से अधिक

कबूतरों के नाम जमीन की कीमत 33 करोड़ से अधिक है. ऐसा कहा जाता है कि रियासत काल के दौरान आसोप के कुछ धनी लोग जिनके पास कोई वारिस नहीं था, उन्होंने कबूतरों के नाम पर अपनी जमीन लिखकर दान कर दी थी . अब तक गावँ क्षेत्र में 26 बिगा और कृषि भूमि 364 बिगा रही है. कबूतरों की देखभाल के लेखा जोखा के लिए एक ट्रस्ट भी बनाया गया है. जो हर साल इस जमीन को खेती के लिए पट्टे पर देता है. उस आय से जहां से कबूतरों के लिए बीज और पानी खरीदा जाता है.

वर्तमान में, आसोप के यूको बैंक में कबूतरों के नाम पर 3 मिलियन से अधिक राशि जमा है. कबूतरों के नाम पर इस इलाके में तीन पाकी दुकानें भी हैं. आसोपा के पास इन मूक पक्षियों के लिए काम करने वाले 100 से अधिक पुराने कबूतर समिति हैं. समिति के सदस्य ने कहा कि शहर में 21 मंच हैं जहां कई कबूतर बीज खाते हैं. जहां कबूतरों के लिए लगभग 10 क्विंटल ज्वार डाला जाता है. इलाके में रहने वाले लोग जहां कबूतरों को खिलाने के लिए भी जिम्मेदार हैं.

लगभग 10-11 साल पहले, सूखे के कारण, अशोक नगर में संचालित होने वाले भगवान कृष्ण गौशाला की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी और गौशाला में चारा भी खत्म हो गया था. गौशाला समिति के पास चारा खरीदने के लिए बजट भी नहीं था, केवल गाँव के करोड़पति कबूतर ही काम आए. गाँव के लिए काबुत्रन ट्रस्ट ने गौशाला को 10 लाख रूपए का दान दिया ताकि गौशाला की गायों के लिए चारा खरीदा जा सके.

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