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बीकानेर,अखिल भारतीय साहित्य परिषद बीकानेर इकाई द्वारा आयोजित प्रति माह पुस्तक चर्चा कार्यक्रम की पहली कड़ी में इतिहासवेत्ता जानकीनारायण श्रीमाली के उपन्यास रातीघाटी युद्ध पर चर्चा आयोजित की गयी। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए परिषद के क्षेत्रीय अध्यक्ष, शिक्षाविद अन्नाराम शर्मा ने कहा कि रातीघाटी युद्ध’ उपन्यास में इतिहास एवं कल्पना का मणिकांचन योग हुआ है- डॉ.अन्नाराम शर्मा
बीकानेर 28 जनवरी। अखिल भारतीय साहित्य परिषद बीकानेर इकाई द्वारा आयोजित प्रति माह पुस्तक चर्चा कार्यक्रम की पहली कड़ी में इतिहासवेत्ता जानकीनारायण श्रीमाली के उपन्यास “रातीघाटी युद्ध” पर चर्चा आयोजित की गयी। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए परिषद के क्षेत्रीय अध्यक्ष, शिक्षाविद अन्नाराम शर्मा ने कहा कि रातीघाटी युद्ध – एक राष्ट्रीय महत्व का उपन्यास है। इस उपन्यास में लेखक ने इतिहास के आधार पर समकालीन भारत की राष्ट्र विरोधी शक्तियों तथा समस्याओं से लोहा लिया है। रचना में सामाजिक समरसता, पर्यावरण, स्व जागरण एवं नारी स्वत्व के युगीन प्रश्नों पर भी सम्यक् विमर्श हुआ है। उपन्यास का नायक जैतसी कामरान के साथ हुए दुर्धर्ष संघर्ष में राष्ट्रीय नायक के रूप में उभरता है। रचना में इतिहास एवं कल्पना का मणिकांचन योग हुआ है। प्रांतीय अध्यक्ष डॉ.आख़िलानन्द पाठक ने कहा कि यह ऐतिहासिक उपन्यास भारतीय आत्मबोध का उत्कृष्ट उदाहरण है। विकट परिस्थितियों में भी मातृ भूमि की रक्षा के लिए किस प्रकार धैर्य, रणनीति और साहस के साथ दुश्मन को हराया जा सकता है यह इस उपन्यास के माध्यम से प्रकट हुआ है। भारत की सांस्कृतिक परंपरा राजस्थान की जीवन शैली और सांस्कृतिक बोध को अगर जानना है तो हमें “रातीघाटी युद्ध” ऐतिहासिक उपन्यास पढ़ना चाहिए। पटकथा, कला और उपन्यासित तत्व की दृष्टि से भी यह एक श्रेष्ठ उपन्यास है। बीकानेर इकाई की अध्यक्ष डॉ.बसन्ती हर्ष ने कहा कि राजस्थान के इतिहास के पन्नों में रातीघाटी युद्ध तथा राव जैतसी अपने अद्वितीय पराक्रम और धेर्य तथा अनुशासन बद्धता के कारण चिरकाल तक स्मरणीय रहेंगे। प्रसिद्ध साहित्यकार भवानी शंकर व्यास ‘विनोद’ उदयपुर से फोन लाइन पर जुड़ते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि जानकीनारायण श्रीमाली ने रातीघाटी युद्ध पर रचित ऐतिहासिक उपन्यास में जो तथ्यपरक, शोधपूर्ण, तथा रोमांचक वर्णन किया है वह इसे अपूर्व साधना का सर्वथा मौलिक उपन्यास बनाता है। वास्तुमार्तण्ड कृष्णकुमार शर्मा ने कहा कि उपन्यास में कथानक प्रामाणिक ऐतिहासिक तथ्यों तथा उस काल खंड में सनातन संस्कृति, परंपराओं एवं राष्ट्र के लिए प्राण उत्सर्ग करने वाले विचारों से ओत प्रोत है। महाभट्ट विद्वान लेखक ने अपने अंतःकरण से प्रमाण के साक्ष्यों को देखकर उपन्यास पूरा किया है।
कवयित्री मोनिका गौड़ ने कहा कि रातीघाटी युद्ध के जरिये राजस्थान के गौरव व मातृभूमि की रक्षा करने के भाव को जन जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है ताकि इतिहास में सैट किये गए हार के नैरेटिव को बदला जा सके।
इससे पहले सभी अतिथियों ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन कर पुष्प अर्पित किए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए साहित्य परिषद के महासचिव जितेन्द्रसिंह राठौड़ ने उपन्यास के बारे में संक्षेप में विचार रखे। मंच की तरफ से लेखक का अभिनन्दन किया गया। अभिनन्दन में पुष्प मालाएं पहनाई कृष्णलाल विश्नोई, सुभाष, बाबू बमचकरी, विनोद ओझा, राधाकिशन भजूड़, ऋषि श्रीमाली, जगदीशदान रतनू द्वारा। उपन्यास लेखक जानकी नारायण श्रीमाली ने श्रोताओं की जिज्ञासा दूर करते हुए उपन्यास लेखन को 41 वर्षों की गहन तपस्या का फल बताया। लेखक का संक्षिप्त परिचय देते हुए राजाराम स्वर्णकार ने संस्था की तरफ से सभी का आभार प्रकट किया।
युद्ध – एक राष्ट्रीय महत्व का उपन्यास है। इस उपन्यास में लेखक ने इतिहास के आधार पर समकालीन भारत की राष्ट्र विरोधी शक्तियों तथा समस्याओं से लोहा लिया है। रचना में सामाजिक समरसता, पर्यावरण, स्व जागरण एवं नारी स्वत्व के युगीन प्रश्नों पर भी सम्यक् विमर्श हुआ है। उपन्यास का नायक जैतसी कामरान के साथ हुए दुर्धर्ष संघर्ष में राष्ट्रीय नायक के रूप में उभरता है। रचना में इतिहास एवं कल्पना का मणिकांचन योग हुआ है। प्रांतीय अध्यक्ष डॉ.आख़िलानन्द पाठक ने कहा कि यह ऐतिहासिक उपन्यास भारतीय आत्मबोध का उत्कृष्ट उदाहरण है। विकट परिस्थितियों में भी मातृ भूमि की रक्षा के लिए किस प्रकार धैर्य, रणनीति और साहस के साथ दुश्मन को हराया जा सकता है यह इस उपन्यास के माध्यम से प्रकट हुआ है। भारत की सांस्कृतिक परंपरा राजस्थान की जीवन शैली और सांस्कृतिक बोध को अगर जानना है तो हमें “रातीघाटी युद्ध” ऐतिहासिक उपन्यास पढ़ना चाहिए। पटकथा, कला और उपन्यासित तत्व की दृष्टि से भी यह एक श्रेष्ठ उपन्यास है। बीकानेर इकाई की अध्यक्ष डॉ.बसन्ती हर्ष ने कहा कि राजस्थान के इतिहास के पन्नों में रातीघाटी युद्ध तथा राव जैतसी अपने अद्वितीय पराक्रम और धेर्य तथा अनुशासन बद्धता के कारण चिरकाल तक स्मरणीय रहेंगे। प्रसिद्ध साहित्यकार भवानी शंकर व्यास ‘विनोद’ उदयपुर से फोन लाइन पर जुड़ते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि जानकीनारायण श्रीमाली ने रातीघाटी युद्ध पर रचित ऐतिहासिक उपन्यास में जो तथ्यपरक, शोधपूर्ण, तथा रोमांचक वर्णन किया है वह इसे अपूर्व साधना का सर्वथा मौलिक उपन्यास बनाता है। वास्तुमार्तण्ड कृष्णकुमार शर्मा ने कहा कि उपन्यास में कथानक प्रामाणिक ऐतिहासिक तथ्यों तथा उस काल खंड में सनातन संस्कृति, परंपराओं एवं राष्ट्र के लिए प्राण उत्सर्ग करने वाले विचारों से ओत प्रोत है। महाभट्ट विद्वान लेखक ने अपने अंतःकरण से प्रमाण के साक्ष्यों को देखकर उपन्यास पूरा किया है।
कवयित्री मोनिका गौड़ ने कहा कि रातीघाटी युद्ध के जरिये राजस्थान के गौरव व मातृभूमि की रक्षा करने के भाव को जन जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है ताकि इतिहास में सैट किये गए हार के नैरेटिव को बदला जा सके।
इससे पहले सभी अतिथियों ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन कर पुष्प अर्पित किए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए साहित्य परिषद के महासचिव जितेन्द्रसिंह राठौड़ ने उपन्यास के बारे में संक्षेप में विचार रखे। मंच की तरफ से लेखक का अभिनन्दन किया गया। अभिनन्दन में पुष्प मालाएं पहनाई कृष्णलाल विश्नोई, सुभाष, बाबू बमचकरी, विनोद ओझा, राधाकिशन भजूड़, ऋषि श्रीमाली, जगदीशदान रतनू द्वारा। उपन्यास लेखक जानकी नारायण श्रीमाली ने श्रोताओं की जिज्ञासा दूर करते हुए उपन्यास लेखन को 41 वर्षों की गहन तपस्या का फल बताया। लेखक का संक्षिप्त परिचय देते हुए राजाराम स्वर्णकार ने संस्था की तरफ से सभी का आभार प्रकट किया।