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बीकानेर,राजस्थान की राजनीति में जहां दो बड़ी पार्टियों का दबदबा रहा है, वहीं सरकार बनाने में जाट, गुर्जर, राजपूत और मीणा समाज की अहम भूमिका रही है। प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण बहुत मायने रखते है।इसका उदाहरण देखने को मिलता है भाजपा और कांग्रेस में, जहां पर दोनों ही पार्टियों के प्रदेशाध्यक्ष जाट समाज से आते है। यहीं कारण है पिछले 25 सालों में राजस्थान में एक ट्रेंड है, जिसके कारण पांच साल के बाद सत्ताधारी दल को हार का समाना करना पड़ता है। प्रदेश में बिजली, पानी और सड़क मुख्य चुनावी मुद्दे नहीं होते है, यहां पर जातीय समीकरण जीत का कारण बनते है। आइए जानते है कि राजस्थान में कहां-कहां कौन-कौनसी जातियों का ज्यादा प्रभाव है।

हनुमानगढ़, गंगानगर, बीकानेर, चूरू, झुंझुनूं, नागौर, जयपुर, चित्तौड़गढ़, अजमेर, बाड़मेर, टोंक, सीकर, जोधपुर, भरतपुर जिला जाट बहुल वाले है। जालौर, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, चूरू, झुंझुनूं, सीकर, बीकानेर, अजमेर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजमंद और पाली जिला राजपूत बहुल वाले है। अलवर, सवाई माधोपुर, करौली, दौसा, झालावाड़, टोंक, उदयपुर, कोटा, बारां, राजसमंद, उदयपुर, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ जिला मीणा बहुल वाले है। करौली, सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, भरतपुर, दौसा, कोटा, धौलपुर, भीलवाड़ा, बूंदी, झुंझुनूं और अजमेर जिला गुर्जर बहुल वाले है। कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ जिला ब्राह्मण, वैश्य और जैन बहुल वाले है।राजस्थान में राजपूत और ओबीसी समाज में भाजपा ज्यादा लोकप्रिय रही है। वहीं ब्राह्मण, जाट, मुस्लिम , गुर्जर, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों में कांग्रेस पार्टी ज्यादा लोकप्रिय रही है। प्रदेश में मुख्य रूप से गुर्जर बनाम मीणा और राजपूत बनाम जाट रहा है। यही कारण है कि कभी भी इन जातियों ने एक साथ एक पार्टियों को समर्थन नहीं दिया है, पारंपरिक तौर पर यह एक दूसरे के धुर विरोधी रहे है।

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