Trending Now




नशे और नींद की गोलियां बीकानेर के हजारों परिवारों की चिंता का बड़ा कारण बन चुकी है। युवा पीढ़ी इन गोलियों की लत्त से बर्बाद हो रही है। नशे के इस खेल में नयाशहर थाना सबसे आगे हैं, वहीं सदर थाना क्षेत्र, नाल थाना क्षेत्र व जेएनवीसी थाना क्षेत्र के युवा भी पीछे नहीं हैं। एक सर्वे में इन गोलियों के ऐसे ऐसे भयावह दुष्परिणाम सामने आए हैं, जिन्हें जानकर आपको इन गोलियों से घृणा हो जाएगी। तो आपको यह जानकर आश्चर्य भी होगा कि शहर की हर गली-मोहल्ले में ये नशा अपनी जगह बना चुका है। हर युवा व हर परिवार को नशे व नींद की इन खतरनाक गोलियों के दुष्परिणाम जान लेने चाहिए। इन गोलियों के सेवन ने जहां युवाओं को निठल्ला बनाकर रख दिया है तो नशे के खतरनाक मद में डूबे ये युवा परिवार व समाज से भी दूर होते जा रहे हैं। समाज व सरकारी तंत्र भी युवाओं की इस बर्बादी के पीछे जिम्मेदार हैं।

नशे व नींद की इन गोलियों को खाने वाले के मुंह से गंध नहीं आती। दूसरी तरफ शुरुआत में असर भी विशेष पता नहीं चलता। इसी वजह से परिवारों को जब तक पता चलता है कि उनका बेटा नशे अथवा नींद की गोलियों का आदी हो चुका है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसे में आपको इन खतरनाक दवाओं के बारे में जानकारी होना जरूरी है। बता दें कि नशे की गोलियों में ट्रामाडोल व टेम्पटाडोल सबसे अधिक प्रचलित है। युवा पीढ़ी सर्वाधिक इन्हीं दवाओं का उपयोग कर रही है। यहां तक कि मंहगी अफीम के सस्ते विकल्प के तौर पर ये गोलियां इस्तेमाल की जा रही है। वहीं नींद की गोलियों के विकल्प अधिक है। इनमें लोराजीपाम, नाइट्रोजीपाम, एल्प्राजोलाम, इसिटालोजीपाम, कोल्नाजीपाम, प्रोपेनालोल आदि शामिल है।

केवल डॉक्टर के रुक्के पर बेचने की अनुमति मगर धड़ल्ले से बिक रही:- ट्रामाडोल व टेंपटाडोल सहित ये नींद की गोलियां बेचने हेतु कड़े नियम निर्धारित है। हर एक दवा विक्रेता के लिए इन नियमों की पालना अनिवार्य है। ट्रामाडोल व टेंपटाडोल डॉक्टर अपनी देखरेख में ही देते हैं। विशेष परिस्थितियों में दी जाने वाली इन दवाओं को बिना डॉक्टरी रुक्के बेचना ही अपराध है। दवा विक्रेता उतनी ही दवा किसी को बेच सकता है जितनी रुक्के में लिखी हो। विशेष रजिस्टर में डॉक्टर का नाम, मरीज़ का नाम, दवा का नाम व क्वांटिटी तक दर्ज करनी होती है। बावजूद इसके युवाओं को ये दवाएं धड़ल्ले से उपलब्ध हो रही है। सूत्रों की मानें तो पीबीएम रोड़ इन दवाओं की अवैध बिक्री का गढ़ है। यहां कई दुकानदार बिना रुक्के ही ये गोलियां बेचते हैं। वहीं कुछ तस्कर सड़कों पर बने अपने ठिकानों से भी युवाओं को दवाएं उपलब्ध करवाते हैं। इसके अतिरिक्त मुख्य डाकघर के आसपास, करमीसर, विश्नोई मोहल्ला, भाटों का बास, नाथ जी का धोरा, पूगल रोड़ के आस पास सहित बीकानेर नगरीय क्षेत्र के हर कोने में कहीं ना कहीं इन दवाओं की तस्करी की जा रही है।

पुलिस व औषधि नियंत्रक विभाग की नाकामी है युवाओं की बर्बादी का बड़ा कारण:दवा विक्रेताओं व तस्करों को अच्छी तरह मालूम है कि नशे व नींद की ये दवाइयां खतरनाक है। बावजूद इसके,धड़ल्ले से अवैध बिक्री की जाती है। पुलिस व ड्रग कंट्रोलर भी आंखें मूंदकर बैठे हैं। ऐसा नहीं है कि पुलिस को नशे से बर्बाद हो रही युवा पीढ़ी के बारे में जानकारी नहीं है, मगर फिर भी पुलिस चुप्पी साधे रहती है। जबकि पुलिस का यह दायित्व है कि वह नशे की गंदगी को साफ कर शहर को बर्बादी से बचाए। हजारों परिवारों की बर्बादी देखकर भी चुप्पी साधे बैठा यह सिस्टम अगर चाहे तो नशाखोरी पर लगाम लगा सकता है। कैरियर, वैवाहिक जीवन, परिवार, बच्चे व समाज, सबकुछ हो जाता है बर्बाद:- पीबीएम के मनोरोग विभाग के मनोरोग व यौन रोग विशेषज्ञ डॉ हरफूल सिंह विश्नोई के अनुसार ट्रामाडोल, टेंपटाडोल, एल्प्राजोलाम सहित नशे व नींद की ये गोलियां बर्बादी के सिवा कुछ नहीं देती। युवा पीढ़ी अपना कैरियर से लेकर वैवाहिक जीवन भी इस नशे की चपेट में आकर बर्बाद कर रही है। इन गोलियों की आदत होने के बाद और कुछ भी अच्छा नहीं लगता। इंसान परिवार, पत्नी व बच्चों से दूर होता चला जाता है। वैवाहिक संबंधों में भी आनंद नहीं मिलता।

डॉ हरफूल के अनुसार पीबीएम के मनोरोग विभाग में हर रोज 50-60 मरीज़ नशामुक्ति हेतु आते हैं। हालांकि इनमें से अधिकतर बर्बाद होने के बाद ही पहुंचते हैं। इन मरीजों को अफसोस होता है। इस बात की ग्लानि होती है कि आखिर उन्होंने नशा शुरू ही क्यों किया था।

नशा बना देता है जिंदगी जानवर जैसी: नशे व नींद की गोलियों का नशा करने वाले युवा अक्सर सड़कों‌ व नालों में गिरे मिलते हैं। रात के समय होने वाली सड़क दुर्घटनाओं का भी बड़ा कारण नशा ही है। किसी की नशे में जान जा रही है तो किसी के हाथ पैर टूट जाते हैं। नशे की हालत में अंदर का ग़ुस्सा भी बाहर निकलता है, नशेड़ी युवा उत्पात मचाने लगता है। ऐसे में समाज व परिवार भी उससे दूरी करने लगता है। इलाज संभव, घृणा नहीं बल्कि नशे की लत्त छुड़वाने में करें मदद:- डॉ हरफूल सिंह का कहना है कि नशामुक्ति पूरी तरह से संभव है। इसका पूरा इलाज है। पीबीएम के दमाणी अस्पताल में बने मनोरोग विभाग में हर माह सेंकड़ों युवा नशामुक्ति का लाभ प्राप्त करते हैं। यहां इलाज व दवाएं पूरी तरह निशुल्क है। ऐसे में अगर आपके परिवार, मोहल्ले अथवा समाज का कोई युवा नशे की लत्त में बर्बाद हो रहा है तो नशा छुड़वाने में उसकी मदद करें। एकबार चिकित्सकीय सलाह जरूर लें।

-नयाशहर थाना क्षेत्र के युवाओं में बढ़ा है नशे का क्रेज़:- एक सर्वे के मुताबिक नयाशहर थाना क्षेत्र नशा बिक्री व नशाखोरी का सबसे बड़ा गढ़ है। परकोटे के भीतरी शहर के युवा भी लगातार नशे की गोलियों के आदी होते जा रहे हैं। मोहता चौक, दम्माणी चौक, डागा चौक, बारह गुवाड़, व्यास मोहल्ला, कोतवाली का आचार्य चौक, शीतला गेट, नत्थूसर गेट, जस्सूसर गेट सहित मुरलीधर, करमीसर, पूगल रोड़, नाथ जी का धोरा, भैरूं कुटिया के पास, भाटों का बास, विश्नोई बास, मालियों का मोहल्ला, मुक्ताप्रसाद, सर्वोदय बस्ती, सुभाषपुरा आदि क्षेत्र लगातार नशीली व नींद की गोलियों की गिरफ्त में आ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इन गोलियों से हो रही बर्बादी का दर्द हजारों परिवार भोग रहे हैं। गोलियों की लत्त लगने की वजह से युवा अपने घर का सहारा नहीं बन पा रहा है। दूसरी तरफ परिवार को समाज में शर्मिंदा भी होना पड़ रहा है।ऐसे में समाज को भी नशे के खिलाफ जंग छेड़ देनी चाहिए। अब देखना यह है कि हमारा सरकारी तंत्र कब नशे के खिलाफ मुहीम चलाकर आने वाली पीढ़ियों को बचाने में अपनी भूमिका अदा करता है।

Author