
बीकानेर,गंगाशहर, 22 जून । गंगाशहर में चल रहे आध्यात्मिक आयोजन के अंतर्गत उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार जी के सान्निध्य में मुनिश्री नमिकुमार जी की विशेष तपस्याओं का अनुमोदन समारोह श्रद्धा और उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार जी ने मुनि नमिकुमार जी की अल्पावधि में की गई चार बड़ी तपस्याओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि “इतिहास में पढ़ते और पूर्वजों से सुनते थे कि ऐसे तपस्वी होते थे जो एक वर्ष में कई मासखामण कर लेते थे । आज हम यह दृश्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के शासनकाल में साक्षात देख रहे हैं।”
उन्होंने बताया कि मुनिश्री नमिकुमार जी ने मात्र सवा पांच महीने में क्रमशः 39, 22, 23 और 24 उपवास की चार कठिन तपस्याएं पूरी कर अपनी साधना, शक्ति और भक्ति का परिचय दिया है । मुनिश्री ने कहा कि “तपस्या का मुख्य उद्देश्य कर्म निर्जरा है, और निष्काम तप ही व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है।”
उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार जी ने इस अवसर पर नमि मुनि के लिए छंदों की रचना कर उनका उत्साहवर्धन भी किया। उन्होंने बताया कि साधु-साध्वियों को ‘तपोधन’ कहा जाता है क्योंकि उनका असली धन ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप होता है।
अपने सहदीक्षित मुनि श्रेयांस कुमार जी की तप साधना का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि गंगाशहर आगमन के बाद उन्होंने लगातार 13 दिन, 12 दिन , एकान्तर की तपस्याएं कीं और अब कंठी तप का प्रत्याख्यान कर रहे हैं। इन्होंने तपस्या से अपना स्वास्थ्य स्वस्थ बना लिया। पहले जो कुछ ही कदम चलने में सहारा लेते थे, आज वे गोचरी के लिए भीनासर और बीकानेर तक जाते हैं। उनके मन में मेरे प्रति श्रद्धा का भाव है और वे बिना कहे हर कार्य में सहयोग करते हैं।
मुनि श्रेयांस कुमार जी ने नमिमुनि के तप की सराहना करते हुए मधुर गीत की प्रस्तुति दी। मुनि विमल विहारी जी ने इसे विलक्षण तप बताते हुए प्रेरणा स्रोत कहा। मुनि मुकेश कुमार जी ने भी भक्ति गीत प्रस्तुत किया।
मुनिश्री नमिकुमार जी ने अपने उद्बोधन में गुरुदेव की कृपा और उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार जी के मार्गदर्शन के प्रति आभार व्यक्त किया। समारोह के दौरान कई श्रद्धालुओं ने एकासन, उपवास, और बेले तप का प्रत्याख्यान किया। लाभचंद आंचलिया ने 15 दिन की तपस्या का संकल्प लिया। समारोह में बड़ी संख्या में भाई-बहनों की उपस्थिति और सामायिकें श्रद्धा का केंद्र बनी रहीं ।