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बीकानेर,हमारे सनातन संस्क्रति में दान पुण्य के विशेष दिन होते है और उस दिन में भी विशेष दान पुण्य का समय । वो दान पुण्य उसी दिन उसी समय ही किया जाता है । किंतु अभी एक अपील जारी हुव की मकरसंक्रांति के उपलक्ष्य में आप गायों को उन दो दिनों में दान पुण्य न करे बहुत अधिक सामग्री खाने से गाये मर जाती है,ये सही है ज्यादा खाने से पशु हो आदमी कोई भी मर सकता है,किन्तु इसके पीछे मूल कारण है हमारी भेड़ चाल संस्क्रति । लोग दान पुण्य का स्थान चयन न करते हुवे एक ही स्थान पर पहुचते है,गायों को दान-पुण्य करने । ऐसे हर शहर में 8-10 स्थल होते है जहाँ पशु भी होते है और पशु चारा भी,किन्तु यहाँ एक कहावत भी चरितार्थ होती है इसी दानपुण्य दिवस पर की कही पे दिवाली कही पर रोजा, उन 8-10 स्थानों पर तो दिवाली होती है किंतु इसी दिवस पर कई ऐसे स्थान भी होते है जहाँ पशुओं को कुछ नही मिलता यानि वहाँ रोजा ही होता है,इसी तरह हम आर्थिक रूप से कमजोर लोगो,विशेष रूप से जुगी झोपड़ियों में रहने वाले,गरीब ब्राह्मण, किन्तु कुछ झोपड़ियां या ब्राह्मण ऐसे होते है जहाँ सब पहुच जाते है किंतु कुछ स्थान ऐसे जरूरत है किंतु कौई नही पहुचते तो मूल पोस्ट का भाव ये है कि दान पुण्य दानपुण्य दिवस ओर समय पर ही होता है जरूरत है स्थान और व्यक्ति के चयन कि । बीकानेर सेवा योजना इस दिवस पर हमेशा ये पुनीत कार्य करती किन्तु योजना के पदाधिकारी 7 रोज पहले स्थान और व्यक्ति का चयन करके फिर इस पुनीत कार्य को अंजाम देते है ।

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