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बीकानेर,ग्रीष्म ऋतु में प्रचण्ड गर्मी, भयंकर आंधियां और लू के थपेड़ों और शीत ऋतु में हाड़ कंपाने वाली सर्दी का सामना करने वाली हमारी मरूनगरी बीकानेर का सावन कभी जरूर सुरंगा रहता आया होगा इसीलिए लोक कवियों ने यहां के सावन महीने की मुक्तकंठ से सराहना करते हुए कहा था – सियाळो खाटू भलो, उन्हाळो अजमेर मारवाड़ नित रो भलो, सावण बीकानेर।भारी सूखे का सामना करने वाले शहर में, जो बारिश से तबाह हो गया था, भामाशाह और सामाजिक कार्यकर्ता जिन्होंने वर्षा जल को बचाने के लिए कुओं और झीलों का निर्माण किया था, बीकानेर के सावन को सुरंग बनाने में सहायक थे। जिन कुंओं और तालाबों ने हमारे सावन को उल्लासपूर्ण बनाया, उनके संरक्षण के प्रति हम उदासीन हो गए।

झीलों तक नहीं पहुंचता बारिश का पानी: राजाओं के शासनकाल में विभिन्न समाज-जाति-समुदायों ने मिलकर विभिन्न झीलों का निर्माण किया। जिसमें बारिश का पानी जमा किया जाता था, जिसका इस्तेमाल पीने के साथ-साथ पशुओं के लिए भी किया जाता था। सुरसागर, संसोलाओ, देवीकुंड सागर, कोडमदेसर, शिवबाड़ी, खडीसर, कोलायत, नाथसागर, हर्षोलाओ, सतीपुरा सागर, फूलनाथ, महानंद सागर, रघुनाथ सागर, ब्रह्म सागर, नरसिंह सागर, बखत सागर, विश्वकर्मा सागर, हिंगल। जसोलाई, हरोलाई, कंडोलाई, फरसोलाई, गब्बोलाई, भटोलाई, धोबी तलाई, गोपतलाई, राजरंग, बिन्नानी, मुंडाडो, मंजिन झील आदि कई झीलें थीं, लेकिन अधिकांश झीलों के आसपास अतिक्रमण के कारण बारिश का पानी वहां नहीं पहुंचता है।

जर्जर हो रहे हैं अधिकांश कुएं : शहर के कुएं भी अज्ञानता के कारण आंसुओं से भीगे हुए नजर आ रहे हैं। चौटीना, केसरदेसर, सोंगरी, भैया, खंडिया, रतनसागर, खरिया, नया कुवो, फूलबाई, मोहतन की धर्मशाला नो कुवो, चंदन सागर, बेनीसर, पंवारसर, घेरूलाल, जेलवेल, मंडलावत, मजीसा, संग्रहालय के पास, कल्याण, कल्याण आदि। रानीसर, गजसागर, रघुनाथसर, वल्लभ, केशोरई, व्रजलालजी, जगमन, गुसाई, कुटरानो कुवो, अमरसर, भुतबासनो कुवो राजगढ़ में हैं।

गोथ यानी पूरा परिवार एक साथ सावन में अब कम ही लोग परिवार, दोस्तों और परिचितों के साथ किसी धार्मिक स्थल और सरोवर के पास ‘गोथ’ मनाते नजर आ रहे हैं। पहले हलवाई द्वारा बनाई गई मिठाइयां और नमकीन झील में नहाने के मजे से चखा जाता था लेकिन अब गोठा की जगह पिकनिक मनाई जा रही है।

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