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बीकानेर,खुदा की इबादत और बरकतों के माह-ए-रमजान की रंगत इन दिनों परवान पर है। इस मुबारक महिने में धर्मनगरी के मुस्लिम मौहल्लों की फिज़ा ही बदली हुई सी नजर आ रही है। बीकानेर में सिर्फ बुजुर्ग,युवा और महिलाएं ही नहीं बल्कि नन्ही उम्र के बच्चे भी रोजे रख रहे है। वहीं बाजारों में सेहरी और अफ्तार की सामग्रियां दिखाई देने लगी हैं। सेहरी और रोजा अफ्तार के लिए कुछ अलग व्यंजन मौजूद रहते हैं। जहां लोग दूध फैनी के साथ सेहरी कर रोजे की शुरुआत करते हैं, वहीं नुक्ती खारे को अपनी अफ्तार के व्यंजनों में शामिल रखते हैं। अफ्तार के लिए अफजल मानी जाने वाली खजूर की कई वैरायटियां भी दिखाई देने लगी हैं। इसके अलावा मौसमी फलों की बिक्री भी इस दौरान बढ़ गई है। जानकारी में रहे कि कुरान के दूसरे पारे के आयत नंबर 183 में रोजा रखना हर मुसलमान के लिए जरूरी बताया गया है। रोजा सिर्फ भूखे, प्यासे रहने का नाम नहीं बल्कि खुद पर नियंत्रण करना,अश्लील या गलत काम से बचना है। इसका मतलब हमें हमारे शारीरिक और मानसिक दोनों के कामों को नियंत्रण में रखना है। इस मुबारक महीने में किसी तरह के झगड़े या गुस्से से ना सिर्फ मना फरमाया गया है बल्कि किसी से गिला शिकवा है तो उससे माफी मांग कर समाज में एकता कायम करने की सलाह दी गई है। इसके साथ एक तय रकम या सामान गरीबों में बांटने की हिदायत है जो समाज के गरीब लोगों के लिए बहुत ही मददगार है। चांद की तस्दीक के साथ ही रमजान का पवित्र माह शुरू हो गया है। बरकतों के इस महीने के खत्म होने पर ईदुल फितर का त्योहार मनाया जाएगा। इस पूरे माह मुस्लिम धर्मावलंबी रोजा, नमाजों, तरावीह, कुरआन की तिलावत की पाबंदी करेंगे।

मस्जिदों में बढ़ी नमाजियों की आमद
माहे रमजान के चलते मजिस्दों में नमाजियों की आमद भी बढ़ गई है। वहीं हर रात होने वाली तरावीह के लिए ईमाम साहेबान की नियुक्ति भी की जा चुकी है। मस्जिदों में बिजली, पानी, सफाई के माकूल इंतजाम कर दिए गए हैं। साथ ही कई मस्जिदों के बाहर रोशनी के इंतजाम भी किए गए हैं।

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