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बीकानेर,लाउडस्पीकर बना तो था आवाज को बढ़ाने और लोगों को स्पष्ट सुनाने के लिए पर आज यह विवाद की ‘आवाज़’ बन गया है. आज हम आपको लाउडस्पीकर का इतिहास, काम और अन्य रोचक जानकारियां बताएंगे.

कब बना था दुनिया का पहला लाउडस्पीकर

161 साल पहले जोहान फिलिप रीस ने टेलिफोन में इलेक्ट्रिकल लाउडस्पीकर लगाया था ताकि टोन अच्छे से सुनाई पड़े. लेकिन टेलिफोन के आविष्कारक एलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने 1876 में पहले इलेक्ट्रिक लाउडस्पीकर का पेटेंट करा लिया. उसके बाद अर्नस्ट सिमेंस ने इसमें कई सुधार किए. जो लगातार होता चला आ रहा है. फिर ये स्पीकर लाउडस्पीकर बन गया.

लाउडस्पीकर का इतिहास

लगातार विकसित हो रहे लाउडस्पीकर को रेडियो में पहली बार 1924 के आसपास लगाया गया था. ये काम किया था जनरल इलेक्ट्रिक के चेस्टर डब्ल्यू राइस और एटीएंडटी के एडवर्ड डब्ल्यू केलॉग ने मूविंग कॉयल तकनीक का उपयोग रेडियो में किया था. 1943 में आल्टिक लैनसिंग ने डुपलेक्स ड्राइवर्स और 604 स्पीकर्स बनाए, जिन्हें ‘वॉयस ऑफ द थियेटर’ कहते हैं. 1954 में एडगर विलचर ने एकॉस्टिक सस्पेंशन की खोज की, जिसके बाद आप स्पीकर्स वाले म्यूजिक प्लेयर्स लेकर घूम सकते थे. 90 के दशक में वही वॉकमैन में बदल गया.

लाउडस्पीकर कैसे काम करता है?

लाउडस्पीकर या स्पीकर ऐसा यंत्र है, जिसका उपयोग किसी भी प्रकार की ध्वनि को सुनने के लिए किया जाता है. ये विद्युत तरंगों यानी इलेक्ट्रिकल वेव्स को आवाज में बदलता है. जब लाउडस्पीकर किसी विद्युत तरंग को अलग-अलग फ्रिक्वेंसी में रिसीव करता है, तो उसे उसी तरह बदलता है. इसलिए आवाज कम-ज्यादा होती और सुनाई देती है.

क्यों किया जाता है लाउडस्पीकर की उपयोग

इस सवाल का बेहद आसान जवाब है. पहला ये कि तक आवाज को पहुंचाया जा सके. दूसरा ये कि आवाज को स्पष्ट तरीके से सुना जा सके. कई बार आवाज की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए भी लाउडस्पीकर का उपयोग किया जाता है.

लाउडस्पीकर के फायदे और नुकसान

फायदा सिर्फ इतना है कि दूर तक स्पष्ट आवाज सुनने के लिए इसका उपयोग किया जाता है. नुकसान ये है कि ये आकार में बड़े और वजनी होते हैं. रखने के लिए अधिक जगह लगती है. कई बार इनके लिए अलग से बिजली सप्लाई दौड़ानी पड़ती है.

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