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बीकानेर घर के आंगन का कच्चा फर्श, बिना छत का एक कमरा और घर की जर्जर दीवारें। इसी आशियाने के एक कोने में रखी चाक पर ठाकुरदास अपने सुनहरे भविष्य के सपनों को सुबह से शाम तक मिट्टी से गढ़ रहा है। यह सोचकर कि एक दिन तो ऐसा आएगा जब उसके भी दिन फिरेंगे, राम भी राजी होगा और राज भी। हालांकि इसी उम्मीद में उसके जीवन के 42 बसंत निकल चुके हैं। एक पांव से दिव्यांग होने के बाद भी ठाकुरदास रोज मिट्टी के बर्तन गढ़ किसी प्रकार अपने परिवार के भरण पोषण की कर्तव्यपरायणता को पूरा कर रहा है। इस कार्य में उसकी पत्नी सरोज साथ दे रही है। सरोज भी दोनों पांवों से दिव्यांग है। घर के आंगन में पड़ी मिट्टी में ही घिसट घिसट कर अपने पति ठाकुरदास का सहयोग कर रही है।

दिव्यांग पति पत्नी ठाकुरदास व सरोज अलसुबह करीब साढ़े चार बजे उठकर मिट्टी से बर्तन बनाने का का शुरू कर देते है। पूरा दिन इनका इस काम में ही व्यतीत होता है। शाम को अंधेरा होने तक काम चलता रहता है। ठाकुरदास व उसकी पत्नी सरोज रोज करीब पन्द्रह घंटे मेहनत कर रहे है। वे बताते है कि रोज तीन सौ से साढ़े तीन सौ रुपए तक आय होती है। अवसर विशेष पर सौ-दो सौ रुपए आय बढ़ जाती है।

गरीबी और दिव्यांगता का जीवन जी रहा ठाकुरदास अपने काम और मेहनत से प्रसन्न है। ठाकुरदास का कहना है कि मेहनत करने से परिवार चलेगा। सरकार सहायता करे तो अच्छी बात है, न करे तो भी ठीक है। बूढ़ी मां, पत्नी और दो बच्चों के भरण पोषण के लिए उसे काम करना ही होगा। अगर सरकार किसी बाजार में मिट्टी के बर्तन रखकर बेचने के लिए जगह उपलब्ध करवा दे तो उसे उसकी मेहनत का पूरा लाभ मिल सकता है। आने जाने के लिए ट्राईसाइकिल भी जरुरी है।

केन्द्र व राज्य सरकार की कई योजनाएं है जो ठाकुरदास जैसे परिवारों के लिए ही है। शासन प्रशासन की उदासीनता है कि ऐसे परिवारों तक न योजनाओं की जानकारी पहुंच रही है और ना ही लाभ। संबंधित अधिकारी भी अवसर विशेष पर महज खानापूर्ति कर इतिश्री कर लेते हैं। जनप्रतिनिधियों की सक्रियता भी ऐसे परिवारों के लिए नजर नहीं आती है।

ठाकुरदास की बूढ़ी मां रूपा देवी दिव्यांग बेटे और बहू की ओर से तैयार किए जा रहे बर्तनों को शहर के गली-मोहल्लों में बेचने का काम कर रही है। दो बच्चे है वे भी मिट्टी और संघर्षो में पल बढ़ रहे हैं।

ठाकुरदास के अनुसार सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग से उसे ट्राईसाइकिल मिली। काफी समय से

यह खराब पड़ी है। टायर व ट्यूब सहित अन्य खराबियां ट्राईसाइकिल में है। करीब 1500 रुपए हो तो ट्राईसाइकिल सही हो । बिना ट्राईसाइकिल ठाकुरदास अपने तैयार मिट्टी के बर्तनों को स्वयं बाजार में बेचने के लिए भी नहीं जा सकता है। पत्नी सरोज की आज तक दिव्यांगजनों को दी जाने वाली स्कूटी नहीं मिली है। ठाकुरदास परिवार के भरण पोषण के लिए मिट्टी से बर्तन बनाकर औने-पौने दामों में दूसरों को दे रहा है। वे बाजार में इन

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