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बीकानेर,श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के 64 वें जन्मोत्सव उपलक्ष पर श्री संघ की ओर से अष्ट दिवसीय विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। संघ अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि बुधवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब के सानिध्य में धार्मिक प्रदर्शनी प्रेरणा की पहल का आयोजन किया गया। प्रदर्शनी का उद्घाटन भारतीय जैन संगठना के प्रदेशाध्यक्ष एवं जीतो के राज्य निदेशक राजकुमार फत्तावत, पूर्व महापौर नारायण चौपड़ा ने किया। इस अवसर पर शहर भाजपा महामंत्री मोहन सुराणा, जैन पाठशाला सभा के विजय कोचर, श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा, संघ संरक्षक सम्पतलाल तातेड़  विनोद सेठिया, मोतीलाल सेठिया, सुनील बांठिया, गौतम सेठिया, सुधीर सेठिया  (पिंकु)अशोक श्रीश्री माल, तुलसीदास पुरोहित पूर्व आरपीएस, हनुमानदान चारण बच्छराज लुणावत मौजूद रहे। प्रदर्शनी में कुल 22 स्टालें लगाई गई। पहली प्रदर्शनी में आचार्य श्री विजयराज जी महाराज के जीवन चरित्र के बारे में झांकी सजाई गई। जिसमें उनके बाल्यवस्था से लेकर दीक्षा लेने और  अब तक के जीवन वृत पर प्रकाश डाला गया। इसी प्रकार अन्य प्रदर्शनी में जैन आगम की विशेषताओं को अवगत कराने वाले सिद्धान्तों के बारे में बताया गया। जिसमें जीव दया, आओ लोक की सैर करें, हुक्म गच्छीय परंपरा, छह लेश्या, पुण्य का चक्र, बारह व्रत, प्लास्टिक मुक्त भारत, नक्षत्र  सौर मंडल, आठ कर्म, स्वव्छ भारत अभियान, जीव-अजीव, जैन जीवन शैली, लाल-हरा निशान खाद्य वस्तुओं में (वेज- नॉनवेज की पहचान), योग-प्राणायाम, मुद्रा विज्ञान, गोचरी विधि, त्याग का घड़ा, जीव की चार गति, पर्यावरण, छह आरा, पानी और जीव हिंसा एवं चौदह नियम के बारे में जानकारी दी गई है। प्रदर्शनी सुबह 11 से शाम 6 बजे तक चली। प्रदर्शनी का सैंकड़ो श्रावक-श्राविकाओं ने अवलोकन किया एवं आयोजनकर्ताओं के प्रयासों की सराहना की।
इससे पूर्व विनोद मुनि जी म.सा. ने आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के सानिध्य में नित्य प्रवचन में बताया कि अनन्त-अनन्त पुण्योदय से हमें यह मानव जीवन मिलता है। शास्त्रकारों के अनुसार उन्होंने जीव की चार गति बताई और कहा कि मनुष्य गति इन सब में दुर्लभ गति है। यह केवल पुण्योदय से ही मिलती है। लेकिन उसमें भी आर्यकुल में जन्म लेना बहुत दुर्लभ है। विनोद मुनि जी ने कहा कि आर्य वही जो पाप से लड़ता है। उन्होंने प्रेम के तीन प्रकार बताए और उनकी व्याख्या करते हुए कहा कि संसार प्रेमी के अंदर पाप भरा होता है। उसके मन में संसार के साधन, सुख, सुविधा के प्रति आकर्षण होता है, उनकी पूर्ति के लिए उसे पाप करना होता है। मुनि जी ने कहा कि हमें चिंतन करना चाहिए कि हम कैसे प्रेमी हैं। मुनि विनोद म.सा. ने कहा कि यह जीवन अपने आप को त्याग, वैराग्य से सजाने के लिए, साधना के पथ पर आगे बढ़ाने के लिए मिला है। इसलिए हमें संसार में, गृहस्थ में यह चिंतन होना चाहिए कि  मैं संसार में फंसा हुआ हूं, मुझे संयम लेना है, जिन शासन को आगे बढ़ाना है। मुनि जी म.सा. ने कहा कि हमें गुरु भक्ति में ध्यान लगाना चाहिए। यह स्वाध्याय और आत्म प्रेम से भी बढक़र किया जाने वाला  कार्य गुरु भक्ति प्रेम है।

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