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बीकानेर,पार्षद बिकेसीएल के मामले में जो कुछ कर रहे हैं निदनीय, गेर कानूनी औऱ अलोकतांत्रिक है। व्यवस्था को इसे गभीरता से लेना चाहिए। मांगे वाजिब हो सकती है। पार्षदों की मांगों पर अनसुनी से आक्रोश होना स्वभाविक हो सकता है। भले ही कुछ भी हो काम करवाने औऱ बात मनवाने के लोकतांत्रिक तरीके अखितयार करने चाहिए। पार्षदों ने अधिकारी का काला मुहँ करके तथा दफ्तर पर ताला लगाकर लोकतांत्रिक प्रणाली का अपमान किया है। इस कृत्य की निदा ही नहीं, बल्कि दंड देना लोकतंत्र की रक्षा करना है। नगर निगम में आम लोगों के काम नहीं होते क्या महापौर का जनता मुँह काल कर दें ? वार्डों की समस्याओं पर जनता की सुनवाई नहीं होती पार्षद को ताले में बंद कर दें यह विरोध का तरीका कितना उचित है। अगर है तो जनता नगर निगम के विरूद्ध क्यों नहीं अपनाए ? यह सच है कि प्रशासन में संवेदनहीनता है। वाजिब बात का हल तो दूर सुनवाई भी नहीं होती। परिणाम आक्रोश औऱ प्रतिक्रिया होती है। परन्तु पार्षद ऐसा करें शोभा नहीं देता । पाषर्द का चुनाव लोकतंत्र का हिस्सा है। लोकतंत्र की अपनी मर्यादाएं भी है। शहरी सरकार में लोकतंत्र का कितना सम्मान है। पार्षद की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है। यह बात पार्षदो की जिम्मेदारी औऱ कर्त्तव्यों से समझी जा सकती है। पार्षद का चुनाव वार्ड के बुद्धिजीवी, व्यापारी, कर्मचारी, कर्मकार, महिलाएं, युवा, शिक्षक, डॉक्टर, वकील आदि करते हैं। ये चुनाव कम महत्वपूर्ण नहीं है। पार्षद अगर अपनी ठीक से जिम्मेदारी निभाते हैं तो सम्मान भी कम नहीं है। बीकानेर में ऐसे पार्षद भी है जो अपने वार्ड की नागरिक समस्याओं के निराकरण में लगे रहते हैं। वार्ड के लोग अपने ऐसे पार्षद की सराहना भी करते हैं। ऐसे पार्षद कितनी है। बाकी पार्षदों ने गरिमा को ही बट्टा लगाया है। नगर निगम की आमसभाओं में उनकी भूमिका से वे जनता की नजरों में गिर गए हैं। वार्ड के कामों के टेंडर में हिस्सेदारी के आरोप आम है। पक्ष – विपक्ष के पार्षद आपस में ही एक दूसरे पर दलाली हिस्सेदारी का आरोप लगाते रहे हैं। शहरी सरकार में कितना लोकतंत्र है बताने की जरूरत नहीं। भ्र्ष्टाचार के जितने आरोप नगर निगम पर है वह गंभीर विषय है। जनता में निगम के कामों को लेकर असन्तोष समय समय पर झलकता रहता हैं। क्या इन बातों पर विचार करने की जिम्मेदारी इन लोकतन्त्र के प्रहरियों की नहीं है।

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