बीकानेर,गहलोत सरकार ने गोचर में आवासीय पट्टे देने का फैसला लिया है। इसके साथ ही सरकार का विरोध भी शुरु हो गया है। आइये, आज के ‘विमर्श’ में समझने की कोशिश करते हैं कि आख़िर इस ‘लोक-लुभावन’ फैसले के पीछे सरकार की क्या मंशा है? क्यों विपक्ष इस फैसले का विरोध नहीं कर रहा है? इससे सरकार को क्या नुक़सान उठाने पड़ सकते हैं? और आख़िर कैसे सरकार थोड़े से लोगों की ‘भलाई’ के चक्कर में बहुत सारे लोगों की ‘भूंड’ लेने का काम रही है?
20वीं पशुगणना बताती है कि गोवंश के मामले में राजस्थान पूरे देश में छठे स्थान पर है। यहां तक़रीबन 13.9 मिलियन गोवंश है। ये गोवंश खुले चारागाहों यानी गोचर में चरते हैं। लेकिन हाय री राजनीति ! गोचर की यह ज़मीन अब राजनीति की भेंट चढ़ने जा रही है। अब तक जहां ‘गायें’ चरा करती थीं, वहां वोटबैंक वाली ‘राजनीति’ चरने वाली है। ऐसा इसलिए क्योंकि गहलोत सरकार ने गोचर में 30 सालों से रह रहे लोगों को आवासीय पट्टे देने का फैसला लिया है।
भारतीय संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। कहते हैं कि गोचर भूमि की रेत का एक कण भी घर नहीं लाना चाहिए, लेकिन यहां तो गहलोत सरकार उस भूमि पर ही पट्टे बांटने जा रही है। भले ही ये निरी मान्यताएं हों लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि गाय के साथ लोगों की प्रगाढ़ आस्थाएं जुड़ी हैं। यही वजह है कि सरकार के इस फैसले की आलोचनाएं होने लगी हैं। आम जनमानस, गो भक्त और गोचर के विकास में लगे संगठन इस फैसले को लेकर ग़ुस्से में हैं। भले ही वोटों के डर से विपक्ष भी सार्वजनिक तौर पर कुछ न बोले लेकिन दबी ज़ुबान में वो भी कहती है कि “गहलोत सरकार यह ठीक नहीं कर रही है।”
सब जानते हैं कि गहलोत सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में गौ संरक्षण और गौ संवर्धन को लेकर कितने बड़े-बड़े वायदे किये थे। ग्राम पंचायत स्तर पर गौशालाएं और ज़िला स्तर पर नंदीशालाएं खोलने की बातें कही थीं। लेकिन अफसोस ! बीते 3 बरसों में इनमें से कोई काम नहीं हुआ। इसके उलट, गाय के नाम पर जनता से टैक्स वसूल रही सरकार अब गोचर पर वोटबैंक की राजनीति कर रही है। शायद सरकार को यह इल्म नहीं है कि उसके इस फैसले से उसे फायदा कम और नुक़सान ज्यादा होने वाला है। अगर नहीं मालूम तो हम बता देते हैं-
1. गोचर फकत गायों के चरने की जगह ही नहीं है बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार है। सोचिए, कुछ लोगों को पट्टे देकर, सबका कितना बड़ा नुक़सान होगा। कहां गायें चरेंगीं और पर्यावरण संरक्षण का क्या होगा?
2. गोचर एक तरह का ‘डेजर्ट पार्क’ भी है, जो ख़ास तरह के फ्लोरा-फोना के लिए जानी जाती है। यहां पट्टे कटने से ये ‘डेजर्ट पार्क’ भी कट ही जाएगा। ऐसे में न तो फ्लोरा बचेगी, न ही फोना।
3. गोचर महज ज़मीन ही नहीं है, बल्कि वनस्पति और वन्य जीव-जंतुओं की संरक्षण स्थली भी है। ऐसे में आप ही बताइये कि जब गोचर में जनता रहने लगेगी तो ये जंतु कहां जाएंगे? आपका यह एक फैसला पूरे इको-सिस्टम को ही बिगाड़ देगा।
4. सरकार की इस घोषणा से सबसे ज्यादा शह भूमाफियाओं को मिलेंगी। लोगों को पट्टे मिलेंगे, तब मिलेंगे लेकिन भूमाफिया इसका बहुत जल्द फायदा उठाना शुरु कर देंगे।
5. सबसे अव्वल तो यह कि गाय और गोचर के साथ बेशुमार जनभावनाएं जुड़ी हैं। बेशक ! इन लोगों की तादाद, पट्टे लेने वाले लोगों से ज्यादा है। ऐसे में सरकार थोड़े से लोगों की भलाई करके, एक बड़ी तादाद में जनता से ‘भूंड’ लेने का काम करेगी। गोचर संरक्षण में जुटे संगठनों-कार्यकर्ताओं का विरोध सहेंगे, सो अलग।
बहरहाल, जहां कुछ लोग इसे गोचर का अन्य उपयोग और उसे खुर्द-बुर्द करने की साज़िश बता रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसे सुप्रीम-हाईकोर्ट के निर्णयों और सरकार के नीति निर्देशों की अवहेलना बता रहे हैं। कहीं वाकई ऐसा तो नहीं हो रहा? यह भी समझने और आकलन करने का विषय है। गहलोत सरकार के इस फैसले को लेकर गो सेवी संगठनों, गो सेवकों, गोचर रक्षकों में जबरदस्त आक्रोश देखा जा रहा है। धीरे-धीरे इस फैसले के ख़िलाफ़ आवाज़ें बुलंद होने लगी हैं। सबका यही सवाल है कि अगर गोचर को ‘वोटबैंक’ की राजनीति चर जाएंगी तो हमारी गायें कहां चरेंगी? गहलोत सरकार को समय की नजाकत तो भांपना चाहिए कहीं ऐसा न हो कि कुछ लोगों की ‘भलाई’ के चक्कर में उसे बहुत सारे लोगों की आंदोलनरूपी कोई ‘भूंड’ लेनी पड़ जाए।