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बीकानेर,कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लंदन में दिए गए बयानों पर देश का राजनीतिक माहौल गरमा गया है. राहुल के संसद में विपक्षी सदस्यों के माइक बंद करने के आरोपों पर गुरुवार को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने बिना नाम लिए नाराजगी जताई है.

धनखड़ ने कहा- अगर मैं इस मुद्दे पर चुप रहता हूं तो संविधान का गलत पक्ष बनूंगा. उन्होंने ये भी कहा कि ऐसा कहने की उनकी हिम्मत कैसे हुई?

धनखड़ ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल की लंदन में की गई टिप्पणी पर विस्तार से बात की. उपराष्ट्रपति गुरुवार को वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व सांसद करण सिंह की मुंडक उपनिषद पर लिखी किताब के विमोचन के मौके पर संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा- दुनिया हमारी ऐतिहासिक उपलब्धियों और फंक्शनल, जीवंत लोकतंत्र की सराहना कर रही है. हममें से कुछ, जिनमें सांसद भी शामिल हैं, वे बिना सोचे-समझे, हमारे सुपोषित लोकतांत्रिक मूल्यों का अनुचित अपमान करने में लगे हुए हैं. बता दें कि राहुल गांधी ने सोमवार को लंदन में ब्रिटिश सांसदों से कहा कि लोकसभा में काम करने वाले माइक्रोफोन अक्सर विपक्ष के खिलाफ खामोश कर दिए जाते हैं. उन्होंने हाउस ऑफ कॉमन्स परिसर के ग्रैंड कमेटी रूम में भारतीय मूल के दिग्गज विपक्षी लेबर पार्टी के सांसद वीरेंद्र शर्मा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान यह टिप्पणी की.

‘गलत अभियान को नजरअंदाज करना बहुत गंभीर’

गुरुवार को उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा- हम तथ्यात्मक रूप से अपुष्ट कथा के इस तरह के मनगढ़ंत आयोजन को कैसे सही ठहरा सकते हैं और टाइम को मार्क कर सकते हैं. जी20 का अध्यक्ष होने के नाते भारत गौरव का क्षण बिता रहा है. देश के लोग हमें बदनाम करने के लिए अति उत्साह में ओवरटाइमिंग काम कर रहे हैं. हमारी संसद और संविधान को कलंकित करने के लिए इस तरह के गलत अभियान मोड को नजरअंदाज करना बहुत गंभीर और अस्वीकार्य है.

‘इस दुस्साहस पर मेरी चुप्पी…’

धनखड़ ने कहा- कोई भी राजनीतिक रणनीति या पक्षपातपूर्ण रुख हमारे राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौता करने को सही नहीं ठहरा सकता. मैं एक महान आत्मा के सामने हूं. इस दुस्साहस पर मेरी चुप्पी… अगर मैं देश के बाहर किसी संसद सदस्य द्वारा किए गए इस आयोजन पर चुप्पी बनाए रखता हूं, जो कि गलत धारणा से प्रेरित है तो मैं संविधान के गलत पक्ष में रहूंगा. यह संवैधानिक दोष और मेरी शपथ का अपमान होगा.

‘इमरजेंसी की घोषणा हमारे इतिहास का काला अध्याय’

धनखड़ ने कहा कि इमरजेंसी भारतीय लोकतंत्र का एक काला अध्याय था, लेकिन लोकतंत्र अब परिपक्व हो गया है और इसे दोहराया नहीं जा सकता. मैं इस बयान को कैसे सरल बना सकता हूं कि भारतीय संसद में माइक बंद कर दिए जाते हैं? ऐसा कहने की उनकी हिम्मत कैसे हुई? हमारे पास हमारे इतिहास का एक काला अध्याय था, इमरजेंसी की घोषणा. किसी भी लोकतंत्र का सबसे काला दौर हो सकता है, लेकिन भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति अब परिपक्व हो गई है. इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो सकती है.

‘प्रचंड दुस्साहत बर्दाश्त नहीं किया जा सकता’

यह कहते हुए कि देश के अंदर या बाहर जो कोई भी ऐसा कहता है, वह देश का अपमान है. उन्होंने कहा, कल्पना कीजिए कि लगभग 50 मिनट तक सदन में रहने के बाद ऐसा किया जा रहा है. हमारे लोकतांत्रिक ताने-बाने और मूल्यों को नष्ट करने के लिए किसी प्रकार के प्रचंड दुस्साहस को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. मैं राजनीति में हितधारक नहीं हूं. मैं पक्षपातपूर्ण रुख में शामिल नहीं हूं. लेकिन मैं संवैधानिक कर्तव्य में विश्वास करता हूं. अगर मैं मौन धारण करता हूं तो इस देश में विश्वास करने वाले अधिकांश लोग हमेशा के लिए खामोश हो जाएंगे. हम इस तरह के नैरेटिव को प्रचलन और गति देने की अनुमति नहीं दे सकते.

धनखड़ ने उन रिपोर्टों पर भी प्रतिक्रिया दी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनके ‘निजी कर्मचारियों’ को संसद की स्थायी समितियों और विभाग-संबंधित स्थायी समितियों से ‘संलग्न’ कर दिया गया है. उन्होंने कहा- आप समितियों के महत्व को जानते हैं. मुझे उत्पादकता में सुधार के लिए कुछ सकारात्मक करने के लिए कई सदस्यों और समितियों के अध्यक्षों से इनपुट मिले. इसलिए, मैंने समितियों से जुड़े मानव संसाधन को तेज किया. मैंने शोध-उन्मुख, जानकार लोगों को रखा ताकि वे समिति के सदस्यों को आउटपुट और प्रदर्शन का अनुकूलन करने में मदद कर सकते हैं.

उन्होंने कहा- लेकिन मीडिया के कुछ वर्गों द्वारा एक कहानी फैलाई गई है कि अध्यक्ष ने अपने सदस्यों को समितियों में नियुक्त किया है. क्या किसी ने तथ्यों की जांच की है? समितियों में संसद सदस्य शामिल हैं. यह उनका विशेष डोमेन है.

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