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बीकानेर/नवकिरण सृजन मंच के तत्वावधान में भोजपुरी मूल के हिन्दी- भोजपुरी भाषा के व्यंगकार-सम्पादक अभिजित दूबे का सम्मान समारोह आयोजित किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कोषाध्यक्ष, कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी थे तथा समारोह की अध्यक्षता व्यंग्यकार-संपादक डॉ.अजय जोशी ने की एवं विशिष्ट अतिथि साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार रहे।

सम्मान समारोह के अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि राजेन्द्र जोशी ने कहा की व्यंग्यकार समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों पर अपनी रचनाओं के माध्यम से चोट करता है। उन्होंने कहा कि पिछले लंबे समय से व्यंग्य को विद्या के रूप में शामिल करते हुए व्यंग्यकारों ने बहुत अच्छी रचनाएं दी है। जोशी ने कहा की अभिजित दुबे मूलत: भोजपुरी भाषा के साथ-साथ हिन्दी एवं बंगाली में भी रचनाएं लिखते हैं। उन्होंने कहा कि दुबे गंभीर रचनाकार के रूप में पहचान रखते हैं, जोशी ने कहा की दुबे का रचना संसार व्यापक होने के साथ ही तीखापन और गंभीर होने के कारण इनकी रचनाएं बहुत ही चर्चित रही है।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए डॉ. अजय जोशी ने कहा अभिजित दुबे एक सधे हुए व्यंग्यकार है वें सरल सहज और स्मप्रेषणीय भाषा में अपने व्यंग्य द्वारा समाज में व्याप्त विसंगितों पर तीखा वार करते हैं।उनके व्यंग्य पाठकों में काफी लोकप्रिय हैं।
इस अवसर पर अभिजित दुबे ने भोजपुरी और राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की पूरजोर मांग की। उन्होंने रचना पाठ करते हुए आओ खेलें घोटाला-घोटाला,आम आदमी,अजी नाम मे क्या रखा है,लूट कि देश आजाद है तेरा,जनतंत्र के जमूरे,थोबड़ापोथी चैट,संपादक की साहित्य साधना,भैया बिहारी और आईएएस की तैयारी,करतारपुर कॉरिडोर पर डोलता जिया उल हक का जिन्न,भ्रष्टाचार का आठवाँ घोड़ा एवं बहुमत के खेल निराले जैसे चर्चित व्यंग्य सुनाकर वाही वाही लूटी।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि अभिजित दुबे बहुआयामी साहित्यकार है उन्होंने व्यंग्य के अतिरिक्त कविताएं और कहानियां भी लिखी है लेकिन फिलहाल अभी अपने सृजन को मुख्यरूप से व्यंग्य पर केंद्रित रखा है।
इस अवसर पर अभिजित दुबे का सम्मान किया गया, अभिनंदन पत्र का वाचन कवियत्री- संपादक यामिनी जोशी ने किया एवं अतिथियों ने अभिजित दुबे को अभिनंदन पत्र, शाल, श्रीफल स्मृति, चिन्ह एवं माल्यार्पण कर सम्मान किया। कार्यक्रम का संचालन कवि गिरिराज पारीक ने किया।

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