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जयपुर। प्रदेश में जल संरक्षण के लिए विभिन्न विभागों द्वारा किए जा रहे उपायों और समय की आवश्यकता के अनुरूप आने वाले दिनों में तरीकों और प्रावधानों में आवश्यक बदलाव के मुद्दे पर विचार विमर्श करने के लिए जलदाय एवं भू-जल मंत्री डॉ. बी. डी कल्ला की अध्यक्षता में गुरुवार को शासन सचिवालय में एक उच्च स्तरीय बैठक का आयोजन किया गया।

बैठक में डॉ. कल्ला ने विभागों के उच्चाधिकारियों के साथ चर्चा करते हुए कहा कि प्रदेश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बावड़ी, कुएं और तालाब जैसे परम्परागत जल स्रोतों के संरक्षण के लिए नगरीय विकास तथा ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज विभाग के स्तर पर व्यापक कार्ययोजना बनाकर सतत रूप से काम करने की जरूरत है। उन्होंने तालाबों की आगोर को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए अभियान संचालित करने, पानी की रिसाईक्लिंग, क्रॉपिंग पैटर्न में बदलाव और बूंद-बूंद सिंचाई को बढ़ावा देने के साथ ही सभी नागरिकों को घरों में पानी की बचत और एक-एक बूंद का सदुपयोग करने के लिए जिम्मेदार बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।

*बिल्डिंग बायलॉज में बदलाव पर विमर्श*

जलदाय एवं भू-जल मंत्री ने प्रदेश में बिल्डिंग बायलॉज के तहत 300 मीटर या अधिक के भूखण्डों पर बनने वाले मकानों में आवश्यक रूप से वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर बनाने के मौजूदा प्रावधानों की समीक्षा कर इस सीमा को घटाने के बारे में अधिकारियों से विस्तृत चर्चा की। उन्होंने औद्योगिक क्षेत्रों में भी वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर बनाने के लिए भूखण्ड के साइज के प्रावधानों में संशोधन तथा पानी को रिसाइकिल करने के लिए अधिक ट्रीटमेंट प्लान स्थापित करने के निर्देश दिए। डॉ. कल्ला ने कहा कि शहरों एवं गांवों में 200 वर्गमीटर पर बनने वाले मकानों की छतों का पानी घर में संरक्षित किया जाए।

*शौचालयों में डबल बटन की टंकी लगे*

जलदाय एवं भू-जल मंत्री ने कहा कि प्रदेश के सभी सरकारी भवनों एवं परिसर में इस्तेमाल किए जाने वाने टॉयलेट्स में डबल बटन की टंकी लगाई जाए। छोटी आवश्यकता के समय छोटा एवं बड़ी आवश्यकता के समय बड़ा बटन प्रयोग कर जल का मितव्ययता से उपयोग किया जाए तो इस एक तरीके से ही राज्य में रोजाना लाखों लीटर पानी बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा प्रदेश के सभी सरकारी भवनों एवं परिसरों तथा नगरीय विकास एवं आवासन, ग्रामीण विकास एवं पंचायती विभाग तथा रीको के औद्योगिक क्षेत्रों के सभी शौचालयों में दो बटन की टंकी के प्रावधान को अनिवार्य किया जा सकता है, इसके लिए बिल्डिंग बायलॉज में संशोधन किए जाए। उन्होंने कहा कि घरों में शौचालय और स्नानघर में गलत तरीकों से जल उपभोग करने से सर्वाधिक पानी का अपव्यय होता है। सभी नागरिकों को अपने घरों में भी जल संरक्षण के लिए ऐसे उपाय और जल के अधिकतम सदुपयोग के लिए प्रेरित किया जाए। इसके बारे में सभी विभाग ठोस रणनीति बनाकर उस पर अमल करें। गांव एवं शहर के सभी शौचालयों में फ्लश की टंकी डबल बटन वाली लगे तभी पानी की बचत हो सकती है।

*किसानों तक पहुंचाएं एग्रीकल्चर रिसर्च के नतीजे*

डॉ. कल्ला ने कहा कि प्रदेश में सतही जल स्रोतों से उपलब्ध पानी का अधिकांश हिस्सा खेती के काम आता है। आधुनिक कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान से यह साबित हो चुका है कि कम पानी में अधिक उत्पादन लेकर भूमि की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाया जा सकता है। कृषि विश्वविद्यालयों में होने वाली रिसर्च के ऐसे नतीजों का फायदा प्रदेश के किसानों को दिलाने के लिए कृषि एवं उद्यानिकी विभाग अग्रणी भूमिका निभाएं। उन्होंने कहा कि नर्मदा कैनाल क्षेत्र में काश्तकारों द्वारा ड्रिप इरिगेशन को अपनाए जाने से जल की बचत और अधिक उत्पादन की दृष्टि से सार्थक नतीजे सामने आए हैं, अन्य क्षेत्रों में भी इसी पैटर्न पर खेती से जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जाए।

*साझा प्रयासों की आवश्यकता*

जलदाय एवं भू-जल विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री सुधांश पंत ने कहा कि प्रदेश में जल संरक्षण के लिए सभी क्षेत्रों में कई स्तरों पर साझा प्रयासों की आवश्यकता है। इसके लिए सभी विभागों को अपने-अपने स्तर पर और सामूहिक रूप से भी जनजागृति के लिए कार्य करना होगा। उन्होंने बैठक में प्रदेश में सभी सरकारी भवनों में बने रूफ टॉप वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर को बरसात से पहले दुरूस्त करने के निर्देश दिए।

*विभागों की योजना पर प्रकाश*

नगरीय विकास एवं आवासन विभाग के प्रमुख शासन सचिव श्री कुंजीलाल मीना ने कहा कि जल संरक्षण की दृष्टि से प्रदेश में बिल्डिंग बॉयलाज में बदलाव के लिए विभाग के स्तर पर कार्यवाही की जाएगी। जल संसाधन विभाग के प्रमुख शासन सचिव श्री नवीन महाजन ने बताया कि प्रदेश में जल संरक्षण की दृष्टि से बड़े एवं महत्वपूर्ण बांधों के रिहेबिलिटेशन के लिए वर्ल्ड बैंक से टाइअप करते हुए कार्य किया जा रहा है। ग्रामीण विकास विभाग के सचिव श्री केके पाठक ने कहा कि विभाग द्वारा नई ग्रामीण कार्य निर्देशिका तैयार कराई जा रही है, इसमें जल की बचत एवं संरक्षण के बारे में आवश्यक बिन्दुओं को समाहित किया जाएगा।

*भू-जल विभाग का प्रस्तुतीकरण*

बैठक में भू-जल विभाग की ओर से प्रजेंटेशन में बताया गया कि प्रदेश का भौगोलिक क्षेत्रफल 3.42 लाख वर्ग किलोमीटर है, जो पूरे देश का 11 प्रतिशत भाग है। पूरे देश की तुलना में यहां की जनसंख्या 5.5 प्रतिशत है, मगर स्रोतों से पानी की उपलब्धता मात्र 1.15 प्रतिशत ही है। प्रदेश में मानसून के सीजन में 28 से 36 दिनों तक वर्षा होती है, जो निम्न और अनियमित श्रेणी में आती है। औसत वर्षा का आंकड़ा 525 मिलीमीटर है और वाष्प-उत्सर्जन बहुत अधिक है। प्रदेश में 15 रिवर बेसिन के माध्यम से सतही जल 19.56 बिलियन क्यूबिक मीटर तथा भू-जल (31 मार्च 2020 की स्थिति के अनुसार) की उपलब्धता 11.073 बिलियन क्यूबिक मीटर है। कृषि क्षेत्र में पानी का उपभोग 85 प्रतिशत से अधिक है, जो ज्यादातर भू-जल के स्रोतों पर आधारित है। इसी प्रकार पेयजल और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए आवश्यकता का 65 प्रतिशत से अधिक भी भू-जल पर निर्भर है। इसके अलावा प्रदेश में भू-जल के लिहाज से 185 ब्लॉक्स अति दोहित (ओवर एक्सप्लोयटेड), 33 क्रिटिकल, 29 सेमी क्रिटिकल तथा 45 सुरक्षित श्रेणी में है।

*ये रहे मौजूद*

बैठक में सार्वजनिक निर्माण विभाग के सचिव श्री चिन्न हरि मीना, नरेगा के कमिश्नर श्री अभिषेक भगोतिया, जलदाय विभाग की विशिष्ट सचिव श्रीमती उर्मिला राजोरिया, जलदाय विभाग के मुख्य अभियंता (शहरी एवं एनआरडब्ल्यू) श्री सीएम चौहान, मुख्य अभियंता (ग्रामीण) श्री आरके मीना के अलावा कृषि एवं उद्यानिकी, रीको, वाटर शैड एवं अन्य विभागों के अधिकारी मौजूद थे। भू-जल विभाग के मुख्य अभियंता श्री सूरजभान सिंह ने सभी का आभार जताया।

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