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बीकानेर.गंगाशहर.कई वर्षों से मानसून की बेरुखी से निराश होकर अपनी भेड़-बकरियों का पेट भरने के लिए पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में पलायन करने वाले रेवड़ पालक इस बार काफी उत्साहित हैं। करीब एक महीने से थोड़े अंतराल से लगातार हुई बरसात से रोही में चारों तरफ फैली स्थानीय वनस्पति एवं घास की हरी सी चादर जहां आंखों को सूकुन प्रदान करती है, वहीं पूरे साल भेड़ बकरियों की पेट भराई को लेकर रेवड़ मालिक आश्वस्त हैं। कमजोर मानसून की स्थिति में रेवड़ मालिकों को हर वर्ष हजारों रुपए खर्च कर ट्रक में अपने भेड़ बकरियों को दूसरे राज्यों में ले जाना पड़ता है और इतने ही रुपए उनको वापसी में खर्च करने पड़ते हैं। इस बार मानसून की रफ्तार को देखते हुए अच्छे जमाने की सबको उम्मीद है।

करीब 50 वर्ष से भेड़ बकरियों का पालन कर अपनी रोजी-रोटी कमाने वाले करमीसर के 70 वर्षीय अली खां कहते हैं कि उनके रेवड़ में छोटे-बड़े करीब दो सौ भेड़- बकरी हैं। यदि मानसून कमजोर अथवा खराब रहता है, तो भेड़ बकरियों के साथ उनके भी – भूखे मरने की नौबत आ जाती है। मजबूरी में उनको हरियाणा और पंजाब अपने भेड़ बकरियों को ले जाना पड़ता है। वहां जाने के लिए गाड़ी के करीब पन्द्रह हजार रुपए जाने के और वापसी में भी इतने ही रुपए खर्च करने पड़ते हैं और पैदल जाने वाले कई रेवड़ मालिकों के साथ कई बार हादसे भी हो चुके हैं। लेकिन इस बार अच्छे मानसून के संकेत हैं और उम्मीद है कि भेड़ बकरियों को चारे के लिए बाहर नहीं ले जाना पड़ेगा ।

भेड़ बकरी चराने वाले बाबू खां ने बताया सरकार की ओर से रोही में भेड़ बकरी चराने वालों के संबल के लिए कोई व्यवस्था नहीं है और भेड़ बकरियों के इलाज का भी समुचित प्रबंध नहीं है। उन्होंने मांग की है कि करीमसर, बच्छासर तथा कोलासर के आस -पास करीब तीन हजार भेड़-बकरियां हैं, जिनके इलाज एवं स्वास्थ्य जांच के लिए समय-समय पर शिविर लगाए जाएं।

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