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बीकानेर,तेरापंथ के नवमें अधिशास्ता गुरुदेव श्री तुलसी के दीक्षा के सौवें वर्ष के उपलक्ष में आयोजित त्रि दिवसीय कार्यक्रमों की श्रृंखला में आज प्रथम दिन उन्ही की समाधि स्थल, नैतिकता के शक्ति पीठ पर आयोजित धर्म सभा में प्रवचन करते हुए कमल मुनि नें फ़रमाया कि आचार्य श्री तुलसी ने तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य श्री कालूराम जी के कर कमलों से अपनी जन्मभूमि लाडनूं में भाई बहन दोनों नें दीक्षा स्वीकार की चंद समय में आपने अध्ययन, विनय, साधना से अपने व्यक्तित्व निर्माण किया मात्र सोलह वर्ष की आयु में आप एक कुशल अध्यापक बन गए आपने अनेक संतों को अध्ययन करवा कर उन्हें साधनाशील के साथ साथ लेखक, वक्ता, गायक बना दिए उन्ही में से मुनि नथमल जी जो आचार्य महाप्रज्ञ के नाम से विश्व विख्यात हुए जो आपके उत्तराधिकारी भी बने. आपने आचार्य पद का विसर्जन कर पद लिप्सिंत लोगो को एक बोध पाठ पढ़ा दिया. कार्यक्रम में सामायिक के तेले के साथ अभिनव सामायिक कर तुलसी चालीसा का भी सामूहिक सांगान किया गया. ज्ञानशाला के बालक बालिकाओं की आकर्षक प्रस्तुति हुयी अनेक भाई बहनो नें उपवास बेले तेले का प्रत्याख्यान किया.

धर्मेन्द्र डाकलिया नें बताया कि इस अवसर पर आज श्रावक श्री
सुरेन्द्र भुरा नें 15 की तपस्या तथा श्राविका कौशल्या देवी सांड नें 7 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया. मुनि नमिकुमार जी नें 19 से 20 तथा श्रेयांस मुनि नें तेले का प्रत्याख्यान किया तथा श्रेयांस मुनि नें “कैसी वह कोमल काया रे महाप्राण गुरुदेव” नामक गीत का सांगान किया .

शक्तिपीठ से तेरापंथ भवन तक रैली का आयोजन किया गया जिसमे समाज के सभी संगठनों का सहयोग रहा. सभी नें इसमें बड़े उत्साह से भाग लिया.

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