बीकानेर,श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ श्री संघ के तत्वावधान में बुधवार को रांगड़ी चौक स्थित पौषधशाला में पंजाब केशरी जैनाचार्य श्रीमद् विजयवल्लभ सूरीश्वर महाराज के कालधर्म दिवस 68वीं पुण्यतिथि गुणानुवाद सभा के रूप में मनाई गई। इस अवसर पर वल्लभ गुरु का अभिषेक व अष्टप्रकारी पूजन सााध्वी सौम्यप्रभा के सान्निध्य में किया गया। आयोजन के दौरान आगन्तुकों को भाग्यलक्ष्मी प्रवाहित की गई। गुरु वल्लभ की आरती व प्रार्थना के साथ साध्वी सौम्यदर्शना ने कहा कि गुरु वल्लभ नौका की भांति थे, जो स्वयं भी तिरे और दूसरों की नैय्या को पार लगाया। साध्वी अक्षयदर्शना ने कहा कि गुरु वल्लभ ने मूलत: पांच सिद्धान्तों सेवा, शिक्षा, संगठन, स्वावलम्बन व साधर्मिक भक्ति की सीख दी। गुणानुवाद सभा में श्री संघ मंत्री विजय कोचर, सुंदरलता कोचर, अनिता कोचर, विजयचंद डागा, विमलचंद कोचर ने उद्बोधन दिया। रौनक कोचर, रोहित कोचर, महेन्द्र कोचर, मगन कोचर ने भजनों की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन संजय कोचर ने किया। प्रभावना लाभ रामरतन कोचर परिवार द्वारा लिया गया। कार्यक्रम में विजयचंद बांठिया, कमल कोचर, पारस कोचर, सुमित कोचर की सहभागिता रही। कार्यक्रम के दौरान चातुर्मासिक आयोजन के मुख्य लाभार्थी मूलचंद पुष्पा देवी सुरेन्द्र कुसुम जैन बद्धाणी परिवार द्वारा पूर्व हुई प्रतियोगिता व नियम पत्रक के प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया। जिसमें विभिन्न आयुवर्गों के तहत पूनम जैन, ऋषभ कोचर, संभव कोचर, कार्तिक कोचर, निकिता कोचर, नीतू सिपानी, अनुपमा सुराणा, अंजू कोचर व पुष्पा बांठिया को पुरस्कृत किया गया।साध्वी सौम्यप्रभा शासनप्रभाविका से अलंकृत
बुधवार को पौषधशाला में गुरु वल्लभ की 68वीं पुण्यतिथि के दौरान श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ श्री संघ के मंत्री विजय कोचर ने पत्रवाचन करते हुए बताया कि साध्वी सौम्यप्रभा को आचार्य विजय धर्मधुरंधर सूरिश्वर जी महाराज द्वारा शासन प्रभाविका से अलंकृत किया गया है। कोचर ने बताया कि साध्वी सौम्यप्रभा आदि ठाणा का पौषधशाला में चातुर्मास चल रहा है और निरन्तर भक्ति भाव, ज्ञान संस्कार शिविर व विभिन्न आयोजन उनकी निश्रा में हो रहे हैं। विशेष रूप से साध्वी सौम्यप्रभा की प्रेरणा से इस बार छोटे-छोटे बच्चों ने भी अठई जैसे बड़े तप की तपस्या की है।बीकानेर को दिया वल्लभनगरी नाम, 67 वर्षों तक की पदयात्रा, शिक्षा की जगाई अलख
यह गौरव की बात है कि पूरे हिन्दुस्तान में बीकानेर को ही वल्लभनगरी का नाम से पहचाना जाता है। विजय कोचर ने बताया कि वल्लभ गुरु का बीकानेर के प्रति काफी स्नेह रहा है। संवत् 1978, 2001 व 2005 में बीकानेर में वल्लभ गुरु का चातुर्मास रहा। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, सौराष्ट्र और महाराष्ट्र आदि प्रांतों में उन्होंने 67 वर्षो तक पैदल यात्राएं कीं। शिक्षा की अलख जगाने में वल्लभ गुरु का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने आचार्य महावीर जैन विश्वविद्यालय समेत 50 से ज्यादा शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की। उन्होंने अनेक ग्रंथों के निर्माण के साथ-साथ अनेक पूजाओं और छंद कविताओं की भी रचना की। 1870 में गुजरात के बड़ोदा में जन्म हुआ लेकिन अपनी अधिकांश सेवाएं पंजाब को दीं। वह खुद खादी पहनते थे और आज़ादी के समय हुए खादी स्वदेशी आंदोलन में भी सक्रिय रहे। देश के बंटवारे के समय उनका पाकिस्तान के गुजरावाला में चर्तुमास था, मगर वे सितंबर 1947 में पैदल ही भारत लौट आए और अपने साथ अपने अनुयायिओं का भी पुनर्वास सुनिश्चित किया। आज़ादी के बाद 1954 में उनका निर्वाण बंबई में हुआ उस समय उनके अंतिम दर्शन के लिए करीब दो लाख से अधिक श्रद्धालुओं का जनसमूह उमड़ा था।