बीकानेर,राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों में प्रत्येक बालक को प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में देने की नीति बनी है। इस नीति के तहत देश में हर क्षेत्रीय भाषा को स्वाभाविक रूप से मान्यता मिलनी सुनिश्चित हो गई है। अब राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने का मार्ग भी प्रशस्त हो गया है, क्योंकि पहल खुद राजस्थान सरकार ने की है। राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव और स्कूल शिक्षा के शासन सचिव राजस्थानी को 8 वीं अनुसूची में शामिल करने और राजभाषा का दर्जा देने के मुद्दे पर सक्रिय हुए हैं। हालांकि विधानसभा ने राजस्थानी भाषा को 8 वीं अनुसूची में शामिल करने का संकल्प 3 सितंबर 2003 में पारित कर प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया था। सीता कांत महापात्र की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिश गृह मंत्रालय में विचाराधीन है। फिर भी इस पर लंबे समय से अब तक राजनीति होती रही है। विडंबना देखिए दो पीढ़ियों से राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है। विधानसभा ने एक दशक पहले संकल्प पारित कर दिया। मान्यता के लिए गठित समिति ने सिफारिश दे दी। और तो और सरकार ने राजस्थानी को बढ़ावा देने के लिए वर्षों से राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति अकादमियां खोल रखी है। राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं है।अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों से राजस्थानी को मान्यता देना सरकार की प्राथमिकता में शामिल हुआ है। उम्मीद है 2025 में राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल सकेगी। वर्ष 2024 के आखिरी में राजस्थान सरकार राजस्थानी भाषा की मान्यता पर एकदम से सक्रिय हो गई है।राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव सुधांशु पंत ने केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहिल को पत्र लिखकर राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश की है। हवाला दिया हर कि सीता कांत महापात्रा की समिति की सिफारिशें गृह मंत्रालय के विचाराधीन है। राजस्थान विधानसभा का 3 सितंबर 2003 का भाषा को 8 वीं अनुसूची में शामिल करने संकल्प भारत सरकार की ओर से मंजूर किया जाना है। इसमें राजस्थानी भाषा को राजभाषा तथा 8 वीं अनुसूची में शामिल करने का मुद्दा भी शामिल है। वहीं शासन सचिव ( स्कूल शिक्षा) कृष्ण कुणाल ने विद्वानों और संबंध अधिकारियों की बैठक करके राजस्थानी भाषा को राजभाषा दर्जा देने के मुद्दे पर विचार किया। राजस्थानी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिलाने के मुद्दे पर शासन सचिव (स्कूल शिक्षा) कृष्ण कुणाल की अध्यक्षता में संबंधित विद्वानों की बैठक में निर्णय किया गया कि राजस्थान की परिसीमां में बोली जाने वाली हर बोली राजस्थानी भाषा की परिभाषा में शामिल है अर्थात जो राजस्थानी में बोला जाए समझा जाए वो ही राजस्थानी है। अब राजस्थानी की सभी बोलियों को राजस्थानी भाषा का हिस्सा मन लिया गया है। इससे राजस्थानी बोलियों को लेकर चल रही आपसी खींचतान पर विराम लगेगा। सरकार की इस पहल से लगता है कि 2025 में अब राजस्थानी भाषा के दिन फिरने वाले हैं। सांस्कृतिक धरोहर को समेटे समृद्ध राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने से राजस्थानी परंपराएं, जीवन संस्कृति, साहित्य, संगीत, कला और रीति रिवाजों को संरक्षण मिलेगा। विस्मृत होते राजस्थानी की परम्परागत ज्ञान और जीवन मूल्य पुनर्स्थापित हो सकेंगे। साथ ही राजस्थानी को 8 वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर वर्षों से आंदोलनरत दूसरी पीढ़ी को इस मान्यता से शकुन मिलेगा। देर आए दुरुस्त आयद।
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