Trending Now




बीकानेर,उच्च शिक्षा की दयनीय दिशा के कई कारण हो सकते हैं। सबसे गंभीर कारण शासन की नीति और नियत है। तात्कालिक कारण, कोविड-19 से उत्पन्न संकट है। जिससे उच्च शिक्षण संस्थान अस्थिरता से ग्रस्त हैं। वर्तमान में, महाविद्यालयों को छोड़ भारत में एक हजार के लगभग उच्च

पंजाब, राजस्थान आदि विश्वविद्यालयों को कार्य करने की स्वतंत्रता रही है। परंतु, गत कुछ वर्षों से शासकीय हस्तक्षेप बढ़ रहा है। यदि सब विश्वविद्यालय एक समान किए जा सकते तो अमेरिका और इंग्लैंड के नामचीन विश्वविद्यालय अग्रणी संस्थान नहीं बन पाते। भारत में एक समय इलाहाबाद, लखनऊ, बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास और राजस्थान नामी विश्वविद्यालय माने जाते थे। गत कुछ दशकों से डीयू और जेएनयू श्रेष्ठ माने जा रहे हैं। जेएनयू में प्रारम्भ से ही उन विद्यार्थियों पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है, जो कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं। विश्वविद्यालयों का स्तरीकरण एक विशुद्ध सत्य है। लेकिन समानता व्यापक है इसीलिए वही ऐसा समानता शिक्षण चलता हूं मैं भी असामाजिक आर्थिक धरातल पर करते हैं तो शासकीय हस्तक्षेप अवांछनीय माना जा सकता है। ये हस्तक्षेप शिक्षा को एक सरकारी प्रतिबिम्ब बना देते हैं। शिक्षा का उद्देश्य, कमजोर व्यक्ति, समूह या वर्ग को उन्नत करके एक स्वस्थ नागरिक समाज का निर्माण करना है। कोविड-19 से भारत में अर्थव्यवस्था और शिक्षा को गहरा आघात पहुंचा है। ऑनलाइन शिक्षा लागू की गई परंतु साधनविहीन विद्यार्थी इसका लाभ नहीं उठा सके। विभिन्न देशों के बीच इस प्रणाली के संदर्भ में और विभिन्न देशों में उनके विभिन्न वर्गों के बीच अंतर से समझ सकते हैं कि शिक्षा आमने-सामने रहकर ही साकार की जा सकती है। शिक्षा एक मानवीय क्रिया है, न कि एक समाज में असमानता व्यापक है, इसलिए यही असमानता शिक्षण दूरस्थ अप्रत्यक्ष तकनीकी माध्यम शिक्षा प्राप्ति के लिए कक्षा में उपस्थितीकी की आवश्यकता ऑनलाइन की तरह होती है।

Author