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बीकानेर,देश इस समय मिलावट के दौर से गुजर रहा हैं। हर तरफ़ मिलावट- जहाँ देखो मिलावट ! ख़ान- पान की चीज़ो में नहीं अपितु मनुष्य भी मिलावटी हो गया हैं। बाहर से कुछ अन्दर से कुछ और ही होता हैं। नेताओ के भाषण भी मिलावटी है। झूठ को शह्द में लपेटे होता हैं। मिलावट ने देश के त्योहारों को भी नहीं छोड़ा है। होली पर रंगो में मिलावट होती हैं तो दिवाली पर मिठाइयाँ नक़ली घी और नक़ली मावे की होती हैं। अब दिवाली सामने हैं। तरह- तरह की मिठाइयाँ सज- धज कर खूबसूरत काँच के घरों में रोशनी में चमचमाती आपके मुँह में पानी ला रही हैं। अगर आप इसे बनता देख ले तो कभी ना खाने की क़सम खा ले। ये मिठाइयाँ आपको कई बीमारियों का निमन्त्रण दे रही हैं। लेकिन आप अपने को रोक नहीं पाते। हमारे बीकानेर में इतने दुधारू पशु नहीं है। जितनी मिठाइयों की दुकाने हैं। दूध एसिड से बना सरे आम बिकता हैं। मिलावटी घी का यहाँ बोलबाला हैं। पाम आयल और जले हुए तेलों से भुजिया- कचौड़ी- समोसे- मिर्ची बड़े बन रहे हैं। बादाम कतली- काजू कतली- केसर मावा सब नक़ली। सड़े – गले बादाम बुदबू मारते , काजू की बढ़ती खपत इन दिनों देखी जा सकती हैं। आश्चर्य होता हैं फड़ बाज़ार में नमकीन- भुजिया ८० रू किलो और वैसी भुजिया बड़ी दुकानों पर-२४० रू किलो । ऐसी ही मिठाई छोटी दुकानों पर मसलन प्रेम मिष्ठान भण्डार पर २२० रू किलो और बड़ी दुकानों पर ५०० रू किलो। स्वाद और पैकिंग एक जैसी। उपभोक्ता परेशान है। क्या खाए- क्या न खाएँ ? मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पास स्टाफ़ नहीं। दिखावट के तौर पर छापे मारकर २-४ दुकानों के मिलावटी मिठाई को फिंकवा देता हैं। उसके जाने के बाद फिर मिलावट का दौर शुरू हो जाता हैं। प्रशासन को सरोकार नहीं। मिलवाटियो के मज़े है वह नोटों से अपनी आलमारियाँ भर रहे हैं। मिलावट के इस युग में सम्बन्धित अधिकारी भी मिले होते हैं। ऐसे ही हालात औषधि विभाग के है आये दिन समाचार आते हैं कि फला दवाई की दुकान का लाइसेंस सप्ताह भर के लिए सस्पेंड कर दिया गया। अनियमितता बरतने- नशीली दवाइया रखने पर। सप्ताह बाद दुकानदार वही काम फिर शुरू कर देता हैं। प्रतिबंधित दवाईया बेचने पर दुकानदार का लाइसेंस हमेशा के लिए केन्सिल नहीं किया जाता। एक व्यक्ति का फ़ार्मा सर्टिफिकेट अन्य कई दवाईयो की दुकानों पर नज़र आता हैं। फ़ार्मा सर्टिफिकेट किराए पर बिकते है। ओषधि विभाग के अधिकारी मुटरेज़ा जानते हुए भी अनजान बने रहते हैं। है। इसी प्रकार रोगों के जाँचो की लेब्रोटिया भी कुकरमुतो की तरह जगह जगह खुल गई हैं। पैथोलॉजी का कोई अधिकृत डाक्टर इन लेबों में नहीं। नासमझ लोग खून- पेशाब- बुख़ार- कोरेना- डेंगू आदि रोगों की जाँच करते हैं अगर जाँच सही नहीं तो इलाज सही कैसे हो सकता हैं। फिर हमारे यहाँ सालों से जमे डाक्टर अस्पताल जाने की बजाय घर पर ही मरीज़ देखना ज़ायदा पसन्द करते हैं। अस्पतालों से ज़ायदा भीड़ इनके घरों के आगे देखी जा सकती हैं। प्रशासन ने तो आँखें बंद कर रखी है। कर विभाग भी मिलीभगत के संकेत देता हैं। कुछ नहीं बिगड सकता इनका कोई -? क्योंकि पूरा नेटवर्क इनका चलता हैं। कुल मिलाकर यहाँ शोषण की बेइंतिहा हैं। भगवान ही मालिक हैं मेरे शहर का।

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