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बीकानेर,गोचर भारतीय वाग्मय की पर्यावरण संस्कृति है। हमारी परंपरा और संस्कृति पाश्चात्य शिक्षा के चलते विस्मृति में चली गई है। हम गोचर के इस विज्ञान को अनदेखा करते जा रहे हैं। कोई वैज्ञानिक या योजनाकार पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकारों को इकोलॉजिकल पार्क, जियोलॉजिकल पार्क, डेजर्ट पार्क की योजना बनाकर देते हैं। सरकारें करोड़ों रुपए खर्च कर योजना लागू करती है। कोई योजनाकारों, वैज्ञानिकों और सरकारों से पूछे कि गोचर, ओरण, आगोर औऱ जोहड़ पायतन बने बनाए इकोलॉजिकल पार्क नहीं है क्या ? उनके पास एक ही जवाब होगा – यस। फिर इनके संरक्ष्ण पर सरकार ध्यान क्यों नहीं देती ? इस का साफ जवाब है इसमें सत्ता और व्यवस्था के अपने स्वार्थ है। इन स्वार्थों के चलते पर्यावरण संरक्षण के इन प्राकृतिक स्रोतों की अनदेखी हो रही है। सच तो यह है कि सरकारी तंत्र ही पर्यावरण संरक्ष्ण का शत्रु बना हुआ है। इसके चलते वन्य जीव जंतु, वनस्पति औऱ वन्य सम्पदा का क्षय हो रहा है।। राजस्थान में गहलोत सरकार दो काम कर दें तो प्रदेश की इकोनॉमी में इजाफा होगा। पहला गोचर,ओरण, आगोर औऱ जोहड़ पायतन को सरकार के संरक्षण मात्र से प्रकृति अपना कमाल दिखा देगी। राजस्थान में गहलोत सरकार गोबर- गोमूत्र जो प्राकृतिक ऊर्जा के सतत स्त्रोत हैं उनका वैज्ञानिक सिद्ध गोबर से खाद और गोमूत्र से कीट नियंत्रक बनाने का नीतिगत निर्णय औऱ उचित प्रोत्साहन का काम कर लें। इससे गोपालक को गोबर – गोमूत्र की कीमत मिलेगी। पूरे प्रदेश की इकोनॉमी पर इसका व्यापक असर होगा। चाहे तो गहलोत सरकार विशेषज्ञ समिति बनाकर इस दिशा में पहल कर सकती है। गोचर औऱ गाय हमारा खजाना है। गोबर- गोमूत्र से बेहतर खेती हो सकती है। इसे सभालिए गहलोत साहब। नहीं तो जीवन राजनीतिक उठा पटक की पटकथा मात्र ही रह जाएगी।

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