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बीकानेर,राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने सत्ता में तीन साल पूरे कर लिए हैं. इस मौके पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही कांग्रेस के घोषणापत्र में किए गए वादों में से 70% को नीति दस्तावेज में बदलने यानि पूरा करने का दावा कर सकते हैं, लेकिन सरकार की राह में अभी कांटों भरा सफर बाकी है.राजस्थान में तमाम उतार-चढ़ावों के बीच सरकार को बचाना बेशक अशोक गहलोत की प्रमुख उपलब्धियों में से एक है लेकिन इसके साथ ही, आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस सरकार के सामने कुछ चुनौतियां है जिनसे पार पाना पार्टी के लिए बेहद जरूरी है. कांग्रेस सरकार के सामने पार्टी को मजबूत करना, गुटबाजी बंद करना, राजनीतिक नियुक्तियां, अल्पसंख्यक समुदायों के मुद्दों का समाधान, कृषि ऋण माफी के कार्यान्वयन और बेरोजगार युवाओं के लिए नौकरियों जैसे कई मुद्दे अभी मुंह बाए खड़े हैं.

बीते रविवार को जयपुर के जवाहर कला केंद्र में पिछले तीन सालों के दौरान राज्य सरकार की उपलब्धियों के बारे में बात करते हुए, गहलोत ने दावा किया कि कांग्रेस के घोषणापत्र में किए गए 70% से अधिक वादे एक नीति दस्तावेज में बदल गए हैं और बजट में की गई घोषणाओं का 85% तीन साल में पूरा किया गया. आइए आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं कि गहलोत सरकार को आने वाले 2 सालों में किन चुनौतियाों का सामना करना पड़ सकता है.

किसानों की कर्जमाफी और बेरोजगारों के लिए नौकरियां

गहलोत सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है किसानों की कर्जमाफी करना और बेरोजगारों के लिए रोजगार पैदा करना. कांग्रेस के घोषणापत्र में किए गए वादे के मुताबिक राज्य के सहकारी बैंकों से लिया गया कृषि ऋण माफ कर दिया गया है, लेकिन राष्ट्रीय और कॉरपोरेट बैंकों से लिए गए कर्ज को अभी तक माफ नहीं किया गया है. इसी तरह, बेरोजगार युवा घोषणापत्र में किए गए वादे के मुताबिक नौकरी और बेरोजगारी भत्ते की मांग को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

कांग्रेस की गुटबाजी से पार पाना

इसी तरह, राज्य में पार्टी को मजबूत करना और कांग्रेस में दो गुटों के बीच विवाद को हल करना अभी भी गहलोत के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, जो 2023 में सत्ता में लौटने का दावा कर रहे हैं. हालांकि सरकार ने अपने कैबिनेट विस्तार में नए लोगों को जगह दी है लेकिन फिर भी कई कांग्रेस नेता की नाराजगी का आगे सामना करना पड़ सकता है.

निगम और बोर्डों में राजनीतिक नियुक्तियां

कांग्रेस पार्टी के कई सदस्य भी काफी समय से कई बोर्डों, निगमों, आयोगों और यहां तक ​​कि राज्य वैधानिक निकायों जैसे महिला आयोग, अल्पसंख्यक आयोग और एससी आयोग में विभिन्न पदों पर नियुक्तियों की मांग कर रहे हैं. इन आयोगों में काफी समय से पद खाली पड़े हैं. इसके अलावा, राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी संज्ञान लिया था और गहलोत सरकार को राज्य महिला आयोग का गठन नहीं करने के लिए फटकार लगाई थी.

अल्पसंख्यक के मुद्दों का समाधान

राजस्थान सरकार के सामने आने वाले 2 साल में अल्पसंख्यक के कई मुद्दों का समाधान करने की चुनौती भी है. वहीं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) राजस्थान में अपनी इकाई लॉंच करने जा रहा है. एक महीने पहले एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि उनकी पार्टी राजस्थान में दो महीने के भीतर लॉन्च की जाएगी, जो 2023 में राजस्थान विधानसभा चुनाव लड़ेगी. हालांकि, उन्होंने विधानसभा सीटों और निर्वाचन क्षेत्रों के बारे में नहीं बताया.

विधानसभा चुनावों में
एआईएमआईएम, बीटीपी और बसपा जैसे राजनीतिक दल 2023 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी के लिए एक चुनौती हो सकते हैं जबकि एआईएमआईएम अल्पसंख्यक मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश कर रही है.

गौरतलब है कि हाल में गहलोत ने कहा था कि अगर 36 जातियों के लोग मुझसे प्यार नहीं करते और राज्य के लोगों ने मुझ पर भरोसा नहीं किया होता, तो मैं तीन बार मुख्यमंत्री नहीं बन पाता. मुझे यकीन है कि हमारी पार्टी 2023 के चुनावों में सत्ता में लौटेगी

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