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बीकानेर,राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बीकानेर प्रस्तावित दौरा बहुत ही ठीक वक्त पर है। जब बीकानेर के लोग राज्य वृक्ष खेजड़ी को बचाने के सारे उपाय करके पस्त हो चुके हैं तो ऐसे वक्त पर भारतीय राजनीति के धुरंध्र नेता पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत का बीकानेर प्रवास खेजड़ी बचाने की उम्मीद जगाता है। राजस्थान में आज के वक्त सरकार से ज्यादा विपक्ष सशक्त है। सरकार में न सुनवाई है और न संवेदना। प्रशासन सत्ता का पिछलग्गू और निठल्ला बना बैठा है। लोकतंत्र में विपक्ष की भी उतनी ही महत्ता जितनी सत्तापक्ष की। फर्क इतना ही है कि सतापक्ष करने वाला होता है और विपक्ष में अगर मादा हो तो करवा सकने वाला होता है। अशोक गहलोत ने लोकतंत्र के सभी रूपों को जीया है। गहलोत साहब विपक्ष की मजबूत भूमिका और अपने राजनीतिक कौशल से खेजड़ी की कटाई पर प्रतिबंध लगाने का पुनीत काम करके जाना, क्योंकि राज्य वृक्ष खेजड़ी की बीकानेर जिले में अंधाधुंध कटाई हो रही हें। सरकार और प्रशासन चुप्पी साधे बैठे हैं।
आप ही बताए गहलोत साहब राजस्थान सरकार ने खेजड़ी को राज्य वृक्ष क्यों घोषित किया है ? इसे बचाने, संर्वधन, संरक्षण करने, इसकी उपादेयता को देखते हुए ही ना। खेजड़ी मरूस्थीलय क्षेत्र का मरूभिद् प्रकृति का पेड़ है। मरूस्थल की वानस्पतिक पारिस्थितिकी तंत्र में इसका क्या महत्व है ये हम खेजड़ी की उपयोगिता, मिलने वाले उत्पाद, खेजड़ी के प्रति लोक मान्यता से समझ सकते हैं। खेजडली गांव में शहीदों की कथा भी खेजडी का महत्व इंगित करती है। धर्म ग्रन्थों में और लोक कथाओं में भी इसकी महत्ता बताई गई है। खेजड़ी के प्रति राजस्थान की सरकार और बीकानेर का प्रशासन संवेदनहीन बना हुआ है। और तो और हमारे केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल जो प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिए साइकिल चलाते हैं कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए पूर्णिमा को लाइट बंद रखते है। वे भी खेजड़ी कटने पर चुप्पी साधे हुए हैं। क्या यह प्रसिध्द पाने के स्टंट है या वाकय वे प्रकृति संरक्षण के प्रति जिम्मेदार भी है। अब खेजड़ी अगर बच सकती है तो अशोक गहलोत के हस्तक्षेप ही उम्मीद है। बाकी एक वर्ष से किए गए सारे प्रयास निरर्थक साबित हुए हैं।
हालांकि अभी भी खेजड़ी को बचाने में जनता संघर्ष कर रही है। हजारों खेजड़ी के पेड़ काटे जा चुके हैं। तब भी जन संघर्ष का एक लम्बा सिलसिला जारी है। सत्ता और प्रशासन की अनदेखी तो खैर है ही विपक्ष भी उदासीन है। यहां के नेता धरना स्थल पर फोटो खींचाने से ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। गहलोत साहब पेड़ और प्रकृति बोलती नहीं है। अभिशप्त करती है। आप ही अब जनता को इस अभिशाप से बचा सकते हो। खेजड़ी काटकर सोलर ऊर्जा पैदा करने से जितना आर्थिक मुनाफा होगा उससे ज्यादा खेजड़ी काटने से पर्यावरण, मरूस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र और इलाके के लोगों को क्षति हो जाएगी। इसकी जल्दी से भरपाई करना मुश्किल हो जाएगा। राज्य वृक्ष खजेड़ी की उपयोगिता और महत्व को फिर से प्रशासन और सरकार को समझाईए गहलोत साहब।

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