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बीकानेर,मरूधरा के धोरों पर पिछले चार दिनों से छाए सियासी संकट के बादल, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दिल्ली दरबार पहुंचते ही छंट गए.सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अशोक गहलोत ने साफ कर दिया कि वो अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगें और मुख्यमंत्री का फैसला आलाकमान पर छोड़ दिया. इससे यह साफ हो गया कि कांग्रेस की कमान अशोक गहलोत नहीं संभालेंगे, लेकिन राजस्थान की बागडोर अपने हाथ में रखेंगे. कांग्रेस में जब-जब संकट के बादल मंडराए हैं उसे छांटने के लिए गहलोत संकटमोचक बनकर आगे आते रहे हैं. चाहे वह केंद्र के सियासत में रहे हो या राज्य में अपनी भूमिका अदा की हो. अपनी छवि को बेदाग रखने के लिए उन्होंने हमेशा साबित किया है कि पार्टी के वो अनुशासित और सच्चे सिपाही हैं, लेकिन इस बार आलाकमान को अघोषित चुनौती देकर खुद सियासी चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे थे, पर अशोक गहलोत सियासत के जादूगर यूं ही नहीं कहलाते. आलाकमान से मिलते ही सियासी तस्वीर ही बदल दी. दरअसल आज मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर सूबे के सियासी घमासान के लिए माफी मांग ली. सोनिया गांधी को मुख्यमंत्री गहलोत ने हाथ से लिखी हुई चिट्ठी देकर कहा कि जो हुआ वो बहुत दुखद है, मैं भी बहुत आहत हूं.”सोनिया गांधी के साथ मैंने बातचीत करी पिछले 50 साल में मुझे कांग्रेस पार्टी में वफादार सिपाही के रूप में काम किया आलाकमान ने पूरा विश्वास करके मुझे जिम्मेदारी दी गई मैं प्रदेश अध्यक्ष एआईसीसी महासचिव सहित कई पदों पर रहा 2 दिन पहले जो घटना हुई समय खुद दुखी और आहत हुआ हूं. ऐसे बदला हवा का रूख

यह पहली मर्तबा नहीं जब गहलोत ने सियासी रूख बदला हो. इससे पहले भी जब 2020 में राजस्थान में सियासी सकंट आया तो अशोक गहलोत ने अपने सियासी जादूगरी से बागी गुट को 36 दिन में घर वापसी करने पर मजबूर कर दिया था. अब जब अपनों ने ही बागी रूख अख्तियार किया तो गहलोत ने इसकी जिम्मेदारी अपने सिर पर लेकर कह दिया मैं अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाया इसका दु:ख मुझे जिंदगी भर रहेगा. 50 सालों से सियासत में अपनी जादूगरी दिखा रहे गहलोत के इस कदम से एक बार फिर राजस्थान के धोरों से आ रही गर्म हवाओं से झूलस रही सूबे की सियासत का रूख बदल दिया था. वहीं झारखंड से लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक की सरकार भी गहलोत बचा चूके हैं. आसान नहीं है गहलोत को हटाना

अशोक गहलोत को राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद से हटाना सिर्फ विरोधियों के लिए ही नहीं बल्कि आलाकमान के लिए भी आसान नहीं है. राजस्थान, कांग्रेस के उन दो राज्यों में से एक है जहां से कांग्रेस सत्ता में है. लिहाजा ऐसे में पार्टी की फंडिग का भी बड़ा हिस्सा राजस्थान से आता है. जबकि छत्तीसगढ़ एक छोटा राज्य है. ऐसे में अशोक गहलोत की दावेदारी दिल्ली दरबार में भारी दिखाई दे रही है.

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