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बीकानेर,जयपुर। प्रदेश में जारी निजी स्कूलों की फीस विवाद को लेकर संयुक्त अभिभावक संघ ने एक बार फिर राज्य सरकार पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि ” प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार शिक्षा व्यवस्था बनाने में बुरी तरह से विफल है। ” राज्य सरकार निजी स्कूलों के हाथों की कठपुतली बनकर ना केवल अभिभावकों के साथ खिलवाड़ कर रही बल्कि वह छात्र-छात्राओं सहित शिक्षकों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ कर रही है।

प्रदेश उपाध्यक्ष मनोज शर्मा ने कहा कि राज्य सरकार एक तरफा निर्णय लेकर तुगलकी फरमान जारी कर रही है, ना छात्र-छात्राओं के भविष्य को लेकर चिंतित है ना अभिभावकों की शिक़ायतों पर कोई सुनवाई हो रही है। राज्य सरकार स्वयं के निजी हितों को ध्यान में रखकर केवल निजी स्कूलों को संरक्षण प्रदान कर सत्ताधर्म की जिम्मेदारियों से भाग रही है।

प्रदेश कोषाध्यक्ष सर्वेश मिश्रा ने कहा कि निजी स्कूलों की फीस को लेकर राज्य सरकार बिल्कुल भी गम्भीर नही है, स्कूल संचालक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अभिभावकों पर अनैतिक दबाव बना रही है साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक कि गलत व्याख्या कर अभिभावकों और छात्र-छात्राओं को गुमराह कर रहे है।

*सुप्रीम कोर्ट का आदेश आये 4 माह हो गए, ना राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर गम्भीर ना शिक्षा विभाग*

प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि 03 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना अंतिम आदेश दिया था, उस आदेश को लगभग 4 महीने होने को आये किन्तु आज दिनांक तक भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना सुनिश्चित नही करवाई जा रही है। इन चार महीनों में प्रदेशभर के अनगिनत अभिभावकों ने मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री सहित शिक्षा विभाग व जिला शिक्षा अधिकारीयों तक को शिकायते दर्ज करवाई किन्तु अभी तक किसी भी शिकायत पर कोई ठोस कार्यवाही सुनिश्चित नही की जा रही है। सरकार के इस रवैये का भुगतान अभिभावकों को करना पड़ रहा है और बच्चों की शिक्षा से समझौता करना पड़ रहा है। आलम यह है कि प्रदेश के निजी स्कूलों ने सरकार और शिक्षा विभाग के सह के चलते हजारों बच्चों की ऑनलाइन क्लास बन्द कर दी, अभिभावकों के सवाल करने पर बच्चों को फेल करने, एक्जाम में ना बैठने की धमकियां दे रहे है।

*स्कूलो को खोलने को लेकर एसओपी तो जारी कर दी, पालना कौन सुनिश्चित करवाएगा*

प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य चंद्रमोहन गुप्ता ने कहा कि प्रदेश में निजी स्कूलों के दबाव के चलते स्कूल खोलने का निर्णय लेने के साथ बुधवार को खानापूर्ति करने के लिए एसओपी बनाकर जारी कर दी गई। किन्तु इस एसओपी में अभिभावकों के किसी भी सवालों का जवाब नही दिया गया और ना ही अभिभावकों की शंकाओं का कोई समाधान इस एसओपी में रखा गया। संस्था प्रधान स्तर की मीटिंग में पीटीए को शामिल किया गया है किंतु प्रदेश के 99 प्रतिशत से अधिक स्कूलो में पीटीए ही नही बनी हुई। जिला स्तर की बैठक में अभिभावकों को हर बार की तरह इस बार भी नजरअंदाज कर दिया गया है। शिक्षा विभाग को अभिभावकों की मांगों का सम्मान करना चाहिए था किंतु नही किया अभिभावकों की मांग थी की राज्य सरकार और स्कूल संचालक प्रत्येक बच्चे की सुरक्षा और स्वास्थ्य की गारंटी और जिम्मेदारी लेंवे। किन्तु इस मांग को शामिल नही किया, इसी कारण प्रदेश का अभिभावक चिंतित है और 75 प्रतिशत से अधिक अभिभावक अपने बच्चों की जिंदगी और भविष्य से कोई समझौता बिल्कुल भी नही करना चाहते है और स्कूल ना भेजने का निर्णय लिया है। शिक्षा विभाग ने एसओपी तो जारी कर दी किन्तु इस एसओपी को लेकर भी सबसे बड़ा यही सवाल है इसकी पालना कौन सुनिश्चित करवाएगा। दूसरे लॉकडाउन के दौरान भी एसओपी की धज्जियां स्कूलो द्वारा उड़ाई गई थी, शिकायतों के बावजूद विभाग और राज्य सरकार ने कोई कार्यवाही नही की।

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