बीकानेर,मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एनएसयूआई से जुड़े युवाओं को राजनीति करने का रास्ता बताया। बेशक गहलोत के बताए मार्ग से ही युवा पीढ़ी राजनीति में आगे बढ़ सकती है। यह सच है कि राजनीति में जातिवाद, धर्म और परिवादवाद से कोई दूर तक आगे नहीं चल सकता। मुद्दों की समझ, जनता के बीच रहने का अनुभव, जन समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता से ही नेतृत्व का विकास हो सकता है। बेशक गहलोत का राजनीति जीवन आज की युवा पीढ़ी के लिए दिशा बोध देने वाला है। वे राजस्थान में एन एस यू आई के 52 वर्ष पूर्व पहले अध्यक्ष रहे। उस समय की राजनीतिक सक्रियता को वे आज की राजनीति की सफलता का आधार बताते हैं। सोने को शुद्ध होने के लिए आग से होकर निकलना पड़ता है। आज की युवा पीढ़ी को राजनीति करने के लिए यह एक संदेश है। गुड़ागर्डी, नारेबाजी, हो हुलड़ से कोई नेता नहीं बन सकता। यह एनएसयूआई को उनकी विचारधारा के मुख्यमंत्री का बड़ा संदेश है। उन्होंने एनएसयूआई के युवा कार्यकर्ताओं को महात्मा गांधी की पुस्तक पढ़ने की सलाह क्यों दी ? इसको समझने और मानने से ही राजनीति में आने वाले युवाओं का भला है। राजनीति में विद्यार्थी जीवन में विचारधारा से जुड़ने वाले युवाओं को गहलोत के इस भाषण पर चिंतन और मनन करने की जरूरत है। गहलोत की यह बात सही है कि भावी राजनीति की जिम्मेदारी आज की युवा पीढ़ी पर ही आनी है। आज कि युवा पीढ़ी विचारधारा, मुद्दों और सिद्धांतों को अपनाकर ही राजनीति में आगे बढ़ सकती है। गहलोत ने अपने राजनीतिक जीवन के अनुभवों और विभिन्न पदों पर किए कामों को युवाओं के समक्ष रखा। विशुद्ध रूप से युवाओं को दिशा दिखाने का गहलोत का यह प्रयास तारीफे काबिल है। इस से इतर दूसरे दिन बीकानेर में प्रेस कान्फ्रेस में गहलोत का प्रोफेशनल राजनीतिक चेहरा ही दिखाई दिया। वे न मुख्यमंत्री थे। और न ही गांधीवादी। थे तो केवल एक भारतीय राजनेता। गहलोत ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी जोधपुर से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर खीज निकाली और सरकार की उपलब्धियों और घोषणाओं का घिस्सा पिटा पाठ दोहराया। बीकानेर की कोई चिंता नहीं जताई। रेलवे क्रासिंग की समस्या पर कन्नी काट गए। उनका पूरा व्यवहार अगले चुनाव पर केंद्रित रहा। उनकी यात्रा से बीकानेर के लोगों को निराशा ही हुई। इतना जरूर है कि कांग्रेस राजनीति की मुख्य से दूर भटक गए रामेश्वर डूडी धारा में लोट आए हैं। गुटबाजी, दुराव, परिवेदनाएं और टकराहट का आलम वैसा ही बरकरार रहा। कुछ तो अच्छा छोड़कर जाते गहलोत साहब।
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