बीकानेर.गणगौर पर्व होलिका दहन के दूसरे दिन से चैत्र शुक्ल तृतीया तक मनाया जाता है. भगवान शिव यानी की गण और माता पार्वती यानी की गौर के लिए मनाया जाता है. गणगौर पर्व में कुंवारी कन्या जीवन में मनपसन्द वर पाने की कामना के साथ पूजन करती है. तो वहीं विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए करती हैं. लेकिन बीकानेर में एक ऐसी गणगौर भी है जो पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ पूजी जाती है. बीकानेर की इस गणगौर के बारे में कहा जाता है कि यह दुनिया के सबसे महंगे आभूषणों से लदी गणगौर है.
बीकानेर में चैत्र शुक्ल तृतीया और चतुर्थी को गणगौर का मेला लगता हैै. लेकिन बात करें बीकानेर की तो यहां साल में केवल 2 दिनों के लिए बाहर निकलने वाली एक ऐसी गणगौर है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह दुनिया भर में सबसे ज्यादा आभूषणों से लदी और पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूरी करने वाली गणगोर है. इसके पीछे भी एक कहानी है.
पुलिस के पहरे में
रियासत काल के समय से बीकानेर के ढड्ढा चौक में चांदमल ढड्ढा की गणगौर अपने आप में एक अनूठी परंपरा के निर्वहन के साथ बाहर निकलती है. माता गवरजा हीरे चांदी सोने के महंगे जवाहरात को पहनती है. शाही गणगौर की निकलने वाली सवारी के दौरान होने वाले सुरक्षा इंतजाम आप रियासत काल से राजाओं के समय से होते रहे हैं, लेकिन चांदमल ढड्ढा की गणगौर में आज भी पुलिस की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था देखने को मिलती है. दरअसल चैत्र शुक्ल तृतीया और चतुर्थी के दिन बाहर रहने वाली इस गणगौर के पहने गए करोड़ों रुपए के आभूषणों की सुरक्षा भी पुलिस करती है.
150 साल पुरानी परम्परा और कहानी
बीकानेर के देशनाेक के सेठ साहूकार उदयमल कोई पुत्र संतान नहीं थी और उस समय उदयमल ने अपनी पत्नी के साथ पुत्र प्राप्ति की कामना को लेकर राजपरिवार की गणगौर का पूजन किया. एक साल बाद जब उदयमल की पत्नी को पुत्र प्राप्ति हुई तो उसने उसका नाम चांदमल रखा. बाद में उदयमल और उनकी पत्नी ने आम लोगों को भी गणगौर पूजा का अवसर देने के साथ ही सार्वजनिक रूप से गणगौर का पूजन शुरू करवाया. क्योंकि आम आदमी उस समय तक गणगौर पूजा अपने घर पर उस राजसी ठाठ के साथ नहीं कर सकता था. यही गणगौर पूजन तब से चांदमल के नाम से प्रसिद्ध हो गया और वह गणगौर चांदमल ढड्ढा की गणगौर कहलाई. तब से शुरू हुई डेढ़ सौ साल पहले की है परंपरा आज भी कायम है. उस वक्त गणगौर को पहनाए गए सोने जवाहरात आज भी पहनाए जाते हैं. जो कि आज करोड़ों रुपए की है और इनकी सुरक्षा में ही पुलिस तैनात रहती है.
पुत्र भाईया के साथ नजर आती है गणगौर
पुत्र कामना की मनोकामना को पूरा करने वाली चांदमल ढ़ढ़ा की गणगौर के आगे समूह में महिलाएं नृत्य करती नजर आती है. माता गवरजा के साथ पुत्र रूपी भाई अभी बैठे नजर आते हैं जो देखने में किसी सेठ साहूकार जैसे नजर आते हैं. माता गणगौर को देखने के लिए आने वाले लोग भी इनके आभूषणों को देखकर दंग रह जाते हैं. नाक में नथ, हाथ में सोने के कंगन, पायल, सिर पर टीका, कानों में झूमके, नौलखा हार, हीरों से जड़ित अंगूठियां सहित कई आभूषण पहनी होती है.
वापिस जमा होते हैं गहने
हर साल 2 दिन तक गणगौर के मौके पर बाहर निकलने वाली चांदमल ढड्ढा की गणगौर का मेला ढड्ढा चौक में ही भरता है. सुरक्षा व्यवस्था को लेकर तैनात हथियारबंद जवान 24 घंटे इनकी निगरानी करते हैं और 2 दिन के मेले के बाद फिर से माता गणगौर को कड़ी सुरक्षा के बीच वापस घर में ले जाया जाता है और इनके गहनों को बैंक में लॉकर में जमा कर दिया जाता है। सूरत और देश के अन्य जगहों पर प्रवास कर रहे चांदमल ढड्ढा के वंश के लोग भी मेले के दौरान बीकानेर आते हैं.