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बीकानेर,बीकानेर में गणगौर उत्सव में राजघराने की गणगौर के साथ एक निजी गणगौर का मेला भी भरता है। माथै पर टीका,कानों में कुंडल,नाक में नथनी,बाहों पर बाजूबंद,हाथों में चूड़ला सहित नख-शिख सोने के गहनों और कीमती कपड़ों से सजी-धजी गणगौर यह है बीकानेर के चांदमल ढढ्ढा की गणगौर। जो करोड़ो के गहनों से सजती है और गहनों की सुरक्षा के लिए पुलिस का जप्ता भी तैनात रहता है।
यह गणगौर साल में दो दिनों तक ढ़ढ्ढों के चौक में पुस्तैनी हवेली में और हवेली से बाहर भी लाई जाती है। जहां दूर दूर से महिलाए इसके दर्शन करने आती है महिलाए इस गणगौर के आगे नृत्य करती है। लगभग 150 साल पुरानी और दिलचस्प है। संभवतया देश में सबसे महंगे करोड़ों के गहनों से सजी इस गवर के पांव के पूरे पंजे बने हुए हैं। आमतौर पर गणगौर के पांव के पंजे नहीं बनाये जाते। लगभग डेढ़ सौ साल पहले सेठ उदयमल के पुत्र नहीं था। उनकी पत्नी ने राज परिवार से गणगौर पूजन की इजाजत मांगी। राजा की गवर पूजने पर एक साल में पुत्र हो गया। बेटे का नाम रखा-चांदमल। इसके साथ ही ढढ्ढा परिवार ने राजपरिवार से गवर को मांग लिया। इसके साथ ही इस गवर का नाम हो गया चांदमल ढढ्ढा की गवर। गवर माता के लिए उस जमाने में लाखों की लागत के सोने, कुंदन से जड़े गहने बनाये जो आज तक इन्हें पहनाये जाते हैं।

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