Trending Now




बीकानेर,बिहार में हाल ही में नदियों पर बने सत्रह पुल बारिश में बह गए। दिल्ली में नये बने संसद भवन की छतें टपकने लगी। अयोध्या राम मन्दिर के गर्भाशय में बारिश का पानी भर गया। दिल्ली के कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी आने से तीन छात्राए डूब कर मर गई। ऐसा ही वाक़या जयपुर में हुआ वहाँ भी एक बेसमेंट में पानी भर जाने से तीन लोगो की मर्त्यु हो गई। रेल पटरी से उतर गई, कई लोग मरे- सेंकड़ो घायल हुए। ऐसी अनेक दर्दनाक घटनाएँ देश में रोज़ाना घट रही हैं। लेकिन इनकी ज़िम्मेवारी कोई नहीं ले रहा। टालम- टोल जैसे जवाब इनके होते है किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जायेगा। हम बात करे अपने बीकानेर की— सबको मालूम है कि बारिश से गिनानी डूब जाती है। कोटगेट, और लाबूजी कटला पानी में डूब जाता है सुरसागर की दिवारे ढह जाती है पीबीएम अस्पताल की छतें भी टपकने लगती है कल की बनाई सड़के भी उधड़ जाती है। लेकिन सीवरेज सिस्टम कभी ठीक नहीं होता? और होगा भी नहीं। ठीक करने की इच्छा शक्ति कहाँ है ? सरकारी इमारतें एक ही बारिश में जर्जर हो जाती है ऐसे घटिया निर्माण कार्यो के लिये किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जाता। उन पर मुक़दमा दर्ज नहीं किया जाता। उन्हें सख़्त सजा नहीं मिलती। घटिया निर्माण को कैसे अफ़सर ओके कर देते है ? कमाल है इसे कहते है जनता की आँखों से काजल चुराना। कलेक्टर महोदया विभागों का नियमित निरीक्षण करती है अधिकांश कर्मचारी अनुपस्थित पाये जाते हैं। सिर्फ़ उन्हें वार्निंग या फिर नोटिश देकर छोड़ दिया जाता है। लेकिन उन्हें नौकरी से नहीं निकाला जाता। वही सिस्टम चलता रहता है जो चल रहा है। अजीब है हमारे देश का प्रशासनिक सिस्टम । जहां उदघाटन से पहले अरबों रुपये खर्च कर नादियों पर बनाये पुल गिर जाते हैं। पहली बरसात में करोड़ों की लागत से बनी सड़के बह जाती हैं। नयी बनी इमारतें ढह जाती है। दिन- दहाड़े चोरिया होती है , वाहन ग़ायब होते है। लेकिन वो कैमरे की नज़र में नहीं आते। क्योंकि कैमरे ख़राब है। अधिकारी आँखें बन्द किए हुए है। जानलेवा रेल हादसो के बाद पता चलता हैं कि ट्रेन को उस ट्रैक पर जाने का सिग्नल दे दिया गया था जहां आगे दूसरी ट्रेन खड़ी थी। ऐसे लापरवाह और ग़ैर ज़िम्मेदार लोगो पर सख़्त करवाई क्यों नहीं होती। ? सिर्फ़ एपीओ, तबादला, निलंबन जैसी सामान्य करवाई ही होती है। अफ़सरशाही और राजनीतिक गठजोड़ इन घटनाओं का सबसे बड़ा कारण है। क़ानून का भय रह ही नहीं गया। ग़रीब आदमी ज़रूर क़ानून के शिकंजे में फँस जाता है। जबकि ऊपर से लेकर नीचे तक देश भृष्टाचार की गंगा में डूबा है कही भी सूरज की नई किरणों का प्रकाश नज़र नहीं आता। प्रशासनिक तंत्र पर सख़्ती की ज़रूरत है। लेकिन वो तब, जब पहले हम अपना दामन साफ़ कर ले ।

Author