बीकानेर राजपरिवार की अंतिम महारानी और राजमाता सुशीला कुमारी का शुक्रवार देर रात लालगढ़ स्थित अपने आवास पर निधन हो गया। सुशीला कुमारी का अंतिम संस्कार रविवार को सागर गांव में स्थित राजपरिवार के श्मशान घाट पर किया जाएगा।
इससे पहले शनिवार को जूनागढ़ के जनानी ढोडी में उनकी पार्थिव देह को आम लोगों के दर्शन के लिए रखी गई है। पूर्व राजमाता सुशीला कुमारी के अंतिम दर्शन के लिए शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला,केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की पत्नी, बीजेपी नेता मोहन सुराणा,बीजेपी नेता गुमान सिंह राजपुरोहित, सहित शहर के गणमान्य लोगों ने उनकी पार्तिक देह पर पुष्पांजलि करके श्रद्धांजलि दी।राजपरिवार की रीति नीति के तहत कल उनका अंतिम संस्कार होगा।
राजमाता सुशीला कुमारी की पोती और बीकानेर पूर्व सीट से विधायक सिद्धि कुमारी ने बताया कि वह अंदर से बहुत दुखी है और उन्होंने राजमाता की कुछ स्मरण को याद कराया और बतााया की देश की आजादी के बाद भी राजतंत्र की परंपराएं निभाई जाती थीं। ऐसे में साल 1950 में महाराजा सार्दुल सिंह के पुत्र राजकुमार करणी सिंह का राज्याभिषेक किया गया था। उसी समय सुशीला कुमारी को महारानी का सम्मान मिला। साल 1971 में जब प्रिवी पर्स जैसी व्यवस्था समाप्त हो गई। तब तक वो महारानी रहीं। महाराजा करणी सिंह के निधन के बाद उन्हें राजमाता के रूप में स्वीकार किया गया। पूर्व राजपरिवार सहित बीकानेर में आम आदमी उन्हें राजमाता के रूप में ही संबोधित करता रहा। छह सितंबर 1988 को महाराजा करणी सिंह के निधन के बाद से राजपरिवार की सारी व्यवस्था सुशीला कुमारी ही संभालती रहीं। सुशीला कुमारी का जन्म 1929 में हुआ था। राजसिंह डूंगरपुर की बहन सुशीला कुमारी का जन्म डूंगरपुर राजपरिवार में हुआ। उनका विवाह बीकानेर राजपरिवार में हुआ। महाराजा करणी सिंह बीकानेर से 1952 से 1977 तक सांसद रहे। ऐसे में सुशीला कुमारी ने लोकतंत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब उनकी पोती सिद्धि कुमारी बीकानेर पूर्व विधानसभा से पिछले तीन चुनावों में लगातार विधायक हैं। राजमाता पिछले कई सालों से अस्वस्थ थीं। उन्होंने आम लोगों से मिलना बंद कर दिया था। अस्वस्थता के बीच वो सामाजिक जिम्मेदारियां जरूर पूरी करती थीं। बीकानेर के पुष्करणा समाज के सावे की अनुमति देना हो या फिर कोई अन्य राजपरिवार कार्य हो, सुशीला कुमारी अब तक स्वयं मिलती थीं।