
बीकानेर,भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर में ‘दुधारू ऊँटों का प्रबंधन और ऊँट डेयरी में उद्यमिता विकास’ विषयक पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम (18–22 अगस्त) का आज दिनांक को समापन किया गया। केंद्र में चल रही पशु अनुवांशिक संसाधनों पर नेटवर्क परियोजना के अंतर्गत आयोजित इस प्रशिक्षण में राजस्थान के झालावाड़, बारां, अलवर और भरतपुर जिलों के कुल 10 ऊँट पालकों ने सहभागिता निभाई।
समापन के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. बीरबल मील, प्रधान वैज्ञानिक, काजरी, बीकानेर ने कहा कि परिवर्तित परिदृश्य में ऊँटनी का दूध, पर्यटन विकास आदि नए वैकल्पिक आयाम, ऊँट की उपयोगिता को दिन-ब-दिन और अच्छे स्वरूप में सामने लाने में मददगार हो रहे हैं। उन्होंने ऊँट पालकों के कल्याणार्थ कैमल बोर्ड की स्थापना करने, एफपीओ का गठन कर सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ उठाने, उष्ट्र में विद्यमान रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा विभिन्न मानव रोगों के प्रबंधन में इसका योगदान, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने हेतु ऊँटों की भूमिका, उष्ट्र खाद का मसरूम उत्पाद में प्रायोगिक अध्ययन आदि पहलुओं की ओर ध्यान आकर्षित किया।
केन्द्र के निदेशक एवं कार्यक्रम-अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने कहा कि आयोजित प्रशिक्षण से किसानों को अपने व्यवसाय में लाभ मिल सकेगा। साथ ही इस दौरान व्यवसाय संबद्ध चुनौतियों का समाधान एनआरसीसी पूरी तत्परता से करेगा। उन्होंने कहा कि ऊँटपालन व्यवसाय को टिकाऊ व लाभकारी बनाने के लिए वैज्ञानिक नवाचार, मूल्य संवर्धन और प्रभावी विपणन की आवश्यकता है। ऊँटनी के दूध के औषधीय गुणों की दिशा में और अधिक आगे बढ़ते हुए दूध की स्वास्थ्य दृष्टिकोण से उपयोगिता को वैश्विक पहचान दिलाना केन्द्र की प्राथमिकता है। डॉ. पूनिया ने कहा कि ऊँट से प्राप्त उत्पादों की बाजार मांग है, जिसका लाभ किसानों व ऊँटपालकों द्वारा उठाया जाना चाहिए।
प्रशिक्षण समन्वयक डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि प्रशिक्षणार्थियों को ऊँटों का प्रबंधन, स्वास्थ्य देखभाल, ऊँटनी को दुहने, प्रसंस्करण, दुग्ध उत्पादों का निर्माण, उसका विपणन, ऊँटों पर चल रही सरकारी योजनाओं एवं राष्ट्रीय पशुधन मिशन की जानकारी आदि उद्यमिता विकास से जुड़े आयामों का सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक अनुभव करवाया गया। उन्होंने नेटवर्क परियोजना के तहत मेवाती एवं मावली नस्ल के अत्यंत संकटग्रस्त श्रेणी में पहुंचने के कारण इनका संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता जताई।
फीडबैक सत्र में प्रगतिशील पशुपालकों में भंवरलाल, नरेश रेबारी एवं लीलूराम रेबारी ने आशा जताई कि ट्रेनिंग के दौरान ऊँटों से जुड़े ज्ञान में अभिवृद्धि के साथ-2 ऊँटों की स्वास्थ्य देखभाल, दुग्ध उत्पाद बनाने, उष्ट्र नस्ल की पहचान आदि का व्यावहारिक प्रशिक्षण तथा ऊँटों के आहार एवं चारे हेतु हेज़ल्यूशन तथा क्लाइटोरिया घासों के साथ ही फोग झाड़ी के बीजों का वितरण उनके व्यवसाय हेतु मददगार हो सकेगा। प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाणपत्र भी वितरित किए गए। नेटवर्क परियोजना एवं कार्यक्रम के सह समन्वयक डॉ. सागर अशोक खुलापे द्वारा संचालन किया गया। साथ इस परियोजना के सह समन्वयक डॉ. बसंती ज्योत्सना एवं डॉ. विश्व रंजन उपाध्याय ने प्रशिक्षण संबंधी विभिन्न गतिविधियों में सहयोग प्रदान किया।