Trending Now




बीकानेर,हिंदी पट्टी में कहावत है कि ”पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं’ जिसका मतलब है कि होनहार बच्चे के गुणों का पता बचपन में ही चल जाता है. हरियाणा के चरखी-दादरी में मिठाई की मामूली सी दुकान करने वाले अशोक स्वामी को भी जिले में 12वीं की बोर्ड परीक्षा टॉप करने वाले अपने बेटे की क्षमता का अंदाजा तभी हो गया था.यही कारण रहा कि इंजीनियरिंग करके भारतीय इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (BEL) में नौकरी पाने के बाद भी सौरभ स्वामी के पिता लगातार उन्हें IAS की तैयारी के लिए प्रेरित करते रहे.आखिरकार साल 2015 में उन्होंने पहले ही प्रयास में 149 रैंक के साथ IAS की परीक्षा पास कर ली और आज राजस्थान के प्रतापगढ़ के जिलाधिकारी (DM) हैं.सौरभ स्वामी ने कहा कि पिताजी का मोटिवेशन रहता था कि किसी न किसी तरह सिविल सर्विसेज में जाना है.

आज भी मिठाई की दुकान चलाते हैं पिता

स्वामी ने कहा कि पिताजी की सामान्य सी जूस और मिठाई की दुकान है.वह उसे आज भी चलाते हैं. घर की फाइनेंशियल कंडिशन न तो बहुत अच्छी और न ही बहुत खराब थी.कुल मिलाकर कह सकते हैं कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक-ठाक थी. मैंने छठीं क्लास से ही दुकान पर बैठना शुरू कर दिया था. मैं 12वीं क्लास तक दुकान पर ही बैठता था.वह कहते हैं कि दुकान पर बैठने के पब्लिक इंटरेक्शन का फायदा मुझे आज भी मिल रहा है.इससे मुझे समाज के साथ घुलने-मूलने का फायदा मिलता है.इंटरव्यू में भी इसका लाभ मिला था और आज भी लोगों से कनेक्ट होने में फायदा मिलता है.

इंजीनियरिंग पास करते ही BEL में लग गई थी नौकरी

स्वामी ने 12वीं की बोर्ड परीक्षा में 90 फीसदी अंकों के साथ जिले में टॉप किया था. वहीं, 10वीं में भी उनके 88 फीसदी अंक थे. उन्होंने साल 2011 में भारतीय विद्यापीठ, नई दिल्ली से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन से अपनी इंजीनियरिंग पूरी की थी.उसी साल उन्होंने भारत सरकार की एयरोस्पेस और डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) की ऑल इंडिया परीक्षा पास कर ली थी. BEL में उनकी बेंगलुरु में डिजाइन इंजीनियरिंग की जॉब लगी.BEL में रहते हुए वह रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के साथ मिलकर काम करते थे.पिता को नहीं पंसद था बेटे का घर से दूर रहना

स्वामी ने बताया कि मेरे परिवार में मम्मी-पापा और दो बहनें हैं. पापा आठवीं पास हैं जबकि मम्मी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से B. Ed. किया है और हाउसवाइफ हैं. बड़ी बहन 10 साल बड़ी हैं और फरीदाबाद से इंजीनियरिंग करने के बाद नोएडा में IBM में इंजीनियर हैं. दूसरी बहन गुड़गांव में फार्मेसी कंपनी में हैं. दोनों की शादी हो चुकी है.

उन्होंने बताया कि दोनों बहनों की शादी हो जाने के कारण मम्मी-पापा घर पर अकेले पड़ गए थे. यही कारण था कि वह चाहते थे कि मैं घर के आस-पास ज्वाइनिंग ले लूं या कोई और सरकारी नौकरी करूं.

नौकरी के दो साल बाद शुरू कर दी तैयारी

स्वामी ने बताया कि मैंने बेल, इसरो, सेल जैसे कई ऑल इंडिया परीक्षाएं पास कर ली थीं. यही कारण था कि मुझे लगता था कि मैं आईएएस भी क्वालिफाई कर सकता हूं. 2013 के मध्य में मैंने पहली बार तैयारी करने के बारे में सोचा था. उन्होंने कहा कि आईएएस निकालना मुश्किल होता है और मुझे भी आसान नहीं लग रहा था. मैंने कोई कोचिंग भी नहीं ज्वाइन की थी. न तो उसके लिए समय था और न ही बेंगलुरु में कोई कोचिंग थी. उस समय आज की तरह ऑनलाइन तैयारी के भी माध्यम उपलब्ध नही थे. प्री मेरे लिए आसान था. उस समय सी-सैट स्कोरिंग था और उसके अंक जुड़ते थे. इसलिए रोजाना करीब 4-6 घंटे की तैयारी करता था. मैंने जीएस में भी अच्छे अंक हासिल किए थे.

मेंस परीक्षा से पहले हाथ फ्रैक्चर हो गया था

अगस्त, 2014 में प्री परीक्षा का रिजल्ट आने के बाद कहां तो स्वामी को सितंबर, अक्टूबर और नवंबर तीन महीने में मेंस की तैयारी करनी थी लेकिन उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. देहरादून में आर्मी के इक्विपमेंट के ट्रायल के दौरान उनका हाथ फ्रैक्चर हो गया.स्वामी कहते हैं कि वह बुरी बात तो थी लेकिन हाथ फ्रैक्चर होने के कारण उन्हें तीन महीने की छुट्टी मिल गई. यह अच्छी बात हो गई. मुझे मेंस की तैयारी करने के लिए समय मिल गया. इस तरह तैयारी के दौरान मैं टूटा हुआ हाथ लेकर कोचिंग के लिए राजेंद्र नगर की गलियों में घूमता था.रोजाना 16 घंटे करते थे तैयारी

स्वामी के पास मेंस की तैयारी के लिए तीन महीने थे लेकिन उनका हाथ फ्रैक्चर था. ऐसे में उन्हें एक दिन में 3-4 से चार कोचिंग क्लासेज करनी पड़ रही थीं. उनका 15-16 घंटे की पढ़ाई का शेड्यूल था. इसमें 10-12 घंटे कोचिंग में ही चले जाते थे.

आईएएस मेंस के लिए स्वामी का सब्जेक्ट ज्योग्राफी था. हालांकि, वह कहते हैं कि इसकी भी दिलचस्प कहानी है. मैंने जब कोचिंग करने के बारे सोचा तब उस दौरान सभी कोचिंग की क्लासेज शुरू हो चुकी थीं. केवल ज्योग्राफी की कोचिंग ही मिली जिसमें वे मुझे बीच में एंट्री देने के लिए तैयार थे. इसलिए मैंने ज्योग्राफी सब्जेक्ट ले लिया. इसके बाद उनका सेलेक्शन हो गया.

कम समय में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिलीं

ट्रेनिंग पूरी करने के बाद IAS सौरभ स्वामी को साल 2015 में सबसे पहली नियुक्ति गंगानगर जिले के सीईओ के रूप में मिली. इसके बाद वह बीकानेर में राजस्थान के डायरेक्टर एजुकेशन बनाए गए. इसी साल अप्रैल में वह प्रतापगढ़ के जिलाधिकारी बने हैं.स्वामी बताते हैं कि गंगानगर जिला परिषद का सीईओ रहने के दौरान ही गंगानगर को दीनदयाल ग्रामीण सशक्तिकरण अवार्ड मिला था. इसके बाद डायरेक्टर एजुकेशन रहते हुए उन्होंने कई डिजिटल पहल की शुरूआत की. इसमें ई-क्लास चलाना, कर्मचारियों के कन्फर्मेशन को ऑनलाइन कर देना शामिल था.

उन्होंने बताया कि राजस्थान देश में पहला राज्य था जिसमें कोविड-19 के दौरान हुए दो साल के एजुकेशन गैप को पाटने के लिए वर्क बुक्स बनाईं. बच्चों के लर्निंग लेवल की जांच के लिए भारत सरकार द्वारा कराए गए टेस्ट में राजस्थान दूसरे स्थान पर आया था.

वह आगे कहते हैं कि मैंने एजुकेशन, हेल्थ, ग्रामीण विकास में काम किया. मैं अभी जिस जिले में पहली बार जिलाधिकारी बनकर आया हूं कि वह हेल्थ, एजुकेशन और कृषि के सेक्टर में बहुत ही पिछड़ा हुआ इलाका है. यहां अधिकतर आदिवासी रहते हैं. आईएएस बनने के लिए इससे बड़ी वजह नहीं मिल सकती है. चुनौतियां हैं लेकिन यहां आपके पास लोगों के जिंदगी को आसान बनाने के मौके मिलते हैं.IAS की तैयारी करने वालों को बताई छोटी मगर मोटी बातें

स्वामी ने कहा कि आईएएस की तैयारी करने वालों को मैं यही टिप्स देना चाहता हूं कि पढ़ाई तो सभी करते हैं. कोचिंग सभी करते हैं. लेकिन मेंस में आपको लिखना अधिक होता है. इसलिए उन्हें तथ्यों, घटनाओं और खबरों को लिंक करना आना चाहिए. इससे वे किसी भी सवाल के जवाब अलग और विस्तृत तरीके से दे पाएंगे.

Author