
बीकानेर,ओसाका। जापान के ओसाका में चल रहे वर्ल्ड एक्सपो 2025 के इंडिया पवेलियन – भारत में रेल सप्ताह का अंतिम दिन है, और मैं एक ऐसे स्वप्निल क्षण में खड़ा हूं – जहाँ अंतरराष्ट्रीय सराहना और सांस्कृतिक भावनाएं साझा बह रही हैं। मैं केवल भारतीय इंजीनियरिंग और नवाचार के उत्सव का हिस्सा नहीं हूं, बल्कि राष्ट्रों के बीच एक आत्मीय जुड़ाव के अनुभव को भी साझा कर रहा हूं।
ओसाका के यूमेशिमा द्वीप की घुमावदार सड़कों पर, जहाँ यह भविष्यवादी एक्सपो आयोजित किया गया है, दुनिया दुनिया के 150 देशों से अधिक के उत्साहित दर्शक पहुँच रहे हैं – विशेषकर जापानी जनमानस, जिन्होंने भारत पवेलियन को, और विशेष रूप से भारतीय रेलवे की प्रदर्शनी को, अपनी ज़रूरी यात्रा का हिस्सा बना लिया है।
इंडिया पवेलियन – भारत में बहती ऊर्जा को नजरअंदाज करना असंभव है। वंदे भारत एक्सप्रेस के भव्य मॉडल के सामने से गुजरते हुए – जो सफेद और नीले रंगों की चमक में सजी है – मैं देखता हूँ कि जापानी परिवार उल्लासपूर्वक सेल्फियाँ ले रहे हैं, बच्चे हाई-स्पीड ट्रेन के मॉडल को उत्सुकता से निहार रहे हैं और तकनीकी जानकार इसकी विशेषताओं को पुस्तक की तरह पढ़ रहे हैं।
ये सब कुछ शानदार है, लेकिन जो मेरी आँखें नम कर देता है। वह है – “नमस्ते” का आदान-प्रदान। जापानी आगंतुक मुस्कान के साथ हाथ जोड़कर भारतीय वालंटियर्स और अधिकारियों का स्वागत करते हैं। यह केवल शिष्टाचार नहीं, बल्कि आपसी सम्मान का भाव है।
ओसाका में रहने वाली विश्वविद्यालय की छात्रा अकीको तनाका ने वंदे भारत के सामने पोज देते हुए कहा कि “मुझे नहीं पता था कि भारत में इतनी तेज ट्रेनें भी चलती हैं! यह बहुत सुंदर है।” और फिर ट्रेन की सीटी जैसी आवाज निकालकर मुस्कराते हुए कहती हैं, “नमस्ते!”
थोड़ा आगे, लोगों की भीड़ उस मिनिएचर मॉडल के चारों ओर जमा है – जो दुनिया का सबसे ऊँचा रेलवे पुल, चिनाब ब्रिज है। कुछ लोग तो इसकी अलग-अलग एंगल से फोटो खींचने के लिए नीचे झुक जाते हैं। नागोया के एक सेवानिवृत्त इंजीनियर बताते हैं, “यह एक संरचनात्मक चमत्कार है और यह हिमालय में बना है – यह अविश्वसनीय है।”
लोहे में बुनी कहानियाँ: देश को एकसूत्र में पिरोती भारतीय रेल
इंडिया पवेलियन – भारत का रेलवे खंड केवल मशीनों की प्रदर्शनी नहीं है – यह एक जीवंत कथानक है। यह उस सिस्टम की कहानी है जो हर दिन 2.3 करोड़ लोगों को उनके गंतव्य तक ले जाती है – और यह कहानी दिखती है ऑगमेंटेड रियलिटी, इमर्सिव प्रोजेक्शन और वर्चुअल टूर के जरिए – जो भारत के पहाड़ों, मैदानों, जंगलों और रेगिस्तानों से होकर गुजरती है।
इस कड़ी में, हिमालय की पहाड़ियों में एक उफनती नदी के ऊपर 359 मीटर ऊँचाई पर खड़ा चिनाब ब्रिज, केवल वास्तुकला का अजूबा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संकल्प का प्रतीक है। इस प्रदर्शनी का एक और आकर्षण है – अंजी खड्ड ब्रिज – कश्मीर के कठिन भूभाग में बना यह भारत का पहला केबल-स्टेड रेल पुल है। पर्यटक शांत भाव से चुपचाप वीडियो कवरेज देखने को खड़े हैं, जिसमें कंस्ट्रक्शन वर्कर हिमपात और भूस्खलन के बीच जूझते हुए निर्माण कार्य को पूरा कर रहे हैं।
इन इंजीनियरिंग के चमत्कारों के बीच भी, भावनात्मक कथा ही सबसे अधिक प्रभाव डालती है। प्रदर्शनी का एक हिस्सा एक भारतीय रेलवे स्टेशन जैसा सजा है – हिंदी में उद्घोषणाएं, चायवाले की आवाजें, और इंजन की घरघराहट – जिससे कई जापानी दर्शक भावुक हो उठते हैं। यह तकनीकी से ज्यादा एक सांस्कृतिक क्षण था।
गर्व और खोज की साझी अनुभूति
वर्ल्ड एक्सपो में, जो मैं देख रहा हूँ, वह केवल अवसंरचना की प्रदर्शनी नहीं है; यह आपसी गर्व और खोज की एक साझी अनुभूति का क्षण है। जापानी परिवार, जिन्हें आमतौर पर शांत और संयमित माना जाता है, यहाँ खुल कर भाग ले रहे हैं। वे मॉडल्स के साथ पोज़ कर रहे हैं, भारतीय प्रतिनिधियों से बात कर रहे हैं, और ‘वंदे भारत’ व ‘चिनाब’ जैसे शब्दों को बोलने की कोशिश कर रहे हैं – चेहरे पर उत्साह साफ़ झलकता है। कुछ तो भारतीय वालंटियर्स के साथ तस्वीरें खिंचवाने की गुज़ारिश करते हैं और उपहार या ओरिगामी क्रेन भी देते हैं। एक मार्मिक पल तब आता है, जब स्कूली बच्चे झुक कर एकसाथ कहते हैं – “नमस्ते इंडिया!” और भारतीय रेल नेटवर्क के डिजिटल मानचित्र के सामने ग्रुप सेल्फी लेते हैं। एक स्थानीय निवासी कहते हैं – “यह केवल रेल नहीं, बल्कि भारत के दिल की बात है। यह सपनों की बात है – जो कहीं न कहीं जा रहे हैं।”
विश्व के साथ कदमताल
वर्ल्ड एक्सपो 2025 की थीम है – “हमारे जीवन के लिए भविष्य के समाज का निर्माण”, जिसमें ‘जीवन को बचाना’, ‘जीवन को सशक्त बनाना’, और ‘जीवन को जोड़ना’ जैसे उप-विषय हैं। यह थीम भारत की प्रस्तुति में स्पष्ट झलकती है। भारतीय रेलवे – जो स्मार्ट इंजीनियरिंग, हरित तकनीक और मानव-केन्द्रित गतिशीलता का उदाहरण है – यह बताता है कि कैसे बुनियादी ढांचे को लोगों के लिए बनाया जाना चाहिए न कि केवल बाजार के लिए।
सौर ऊर्जा से संचालित स्टेशन, एआई-आधारित ट्रैफिक कंट्रोल, जल-संरक्षण उपाय और 2030 तक पूर्ण विद्युतीकरण का लक्ष्य – यह सब इंटरेक्टिव टचस्क्रीन और डिजिटल टाइमलाइन में प्रदर्शित है – जिसे बच्चे से लेकर बुज़ुर्ग तक सहजता से समझ सकते हैं।
जब दुनिया भर में टिकाऊ विकास की चर्चा हो रही है, तब भारत की रेल प्रणाली यह दिखाती है कि यह कैसे किया जा सकता है – निश्चयपूर्वक और सबको साथ लेकर।
अंतिम छाप: तकनीक, स्टील और मुस्कान
जैसे-जैसे सूर्यास्त होने लगता है, रेलवे सप्ताह के अंतिम दिन भी इंडिया पवेलियन-भारत में भीड़ बनी रहती है। लोग प्रदर्शनियां देख रहे हैं, तस्वीरें ले रहे हैं, बातें कर रहे हैं और रेल थीम आधारित संग्रहालय का दौरा कर रहे हैं। पास की दुकान से मसाला चाय की ख़ुशबू और दूर कहीं से आती ट्रेन की सीटी की ध्वनि संगीत के साथ घुलती जा रही है।
मैं वंदे भारत के मॉडल के सामने ठिठकता हूं और एक फोटो लेता हूँ – लेकिन इस बार मेरे साथ एक जापानी बच्चा है, जिसका हाथ ऊपर हवा में उठाए ट्रेन कंडक्टर की तरह हंसते हुए। उसके माता-पिता भारतीय वालंटियर्स के सामने झुककर कहते हैं – “धन्यवाद, आपने हमें भारत का यह रूप दिखाया।”
इसी क्षण तकनीक, परंपरा, स्टील और मुस्कान के इस संगम में – मुझे कुछ शाश्वत मिलता है। मैं समझता हूँ कि भारतीय रेल, जिसे अब तक केवल लॉजिस्टिक चमत्कार के रूप में देखा गया था – आज एक सांस्कृतिक पुल बन गया है – जो भारत को दुनिया से जोड़ता है।