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बीकानेर,डीएपी खाद के 50 किलो के बैग का मूल्य 1200 रूपए से बढ़कर 1350 रूपए हो गए हैं। खाद और महंगी हो गई है। इसका विकल्प क्या है यह किसान जानते हैं। किसान वापस गोबर खाद और गोमूत्र से बने कीट नाशक की तरफ लोटने लगे हैं। लोग निजी तौर पर गोबर खाद व गोमूत्र से कीट नियंत्रक के उत्पादन में लगे हैं। इसमें अभी सरकार का नीतिगत समर्थन नहीं हैं। सरकार के प्रोत्साहन के साथ ही गोबर गोमूत्र स्थायी खेती ही इसका विकल्प बन जाएगा। यह विकल्प वैज्ञानिक सिद्ध है। बीकानेर संभाग में संभागीय आयुक्त डा. नीरज के पवन जो पहले कृषि आयुक्त भी रह चुके हैं गोबर_ गोमूत्र के नवाचार को खेती में बढ़ावा देने के लिए संभाग के कृषि विभाग, गोपालन, पशु पालन, वेटरनरी वि वि, कृषि वि वि, शुष्क उद्यानिकी के अधिकारियों का 19 अप्रैल को वेटरनरी वि वि में सम्मेलन कर रहे हैं। इस सम्मेलन में राजस्थान गो सेवा परिषद की अवधारणा के आधार गोबर से खाद व गोमूत्र से कीट नियंत्रक बनाने की विधि का व्यापक स्तर पर युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाना है। इस से पहले उनके ही सान्निध्य में राज्य भर के वेटरनरी से जुड़े अधिकारियों को गोबर से खाद व गोमूत्र से कीट नियंत्रक बनाने का प्रशिक्षण दिया गया था। अब इसका दायरा बड़ा किया गया है। यह है योजना:_ राजस्थान के करीब दस हजार ग्राम पंचायतों के 45 हजार गांवों के युवकों और गोपालकोँ को गोबर से मानक गुणवत्ता की खाद और गोमूत्र से कीट नियंत्रक बनाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। खाद और कीट नियंत्रक बनाकर प्रशिक्षित युवा रोजगार के इस नए सेक्टर से नियमित आय ले सकता है। राज्य सरकार का कृषि विभाग राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में परंपरागत खेती में गोबर खाद और गोमूत्र से कीट नियंत्रक के उत्पादन को बढ़ावा देकर युवाओं को संबल प्रदान कर सकता है। राज्य सरकार के तात्कालिक प्रमुख शासन सचिव कृषि की ओर से अनुमोदित वैज्ञानिकों की कमेटी ने खाद व कीट नियंत्रक प्रसंस्करण की विधि अनुमोदित की है। राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान वि वि और राजस्थान गो सेवा परिषद के बीच एम ओ यू के तहत वि वि राज्य में प्रशिक्षण की आधारभूत संरचना विकसित करेगा। राज्य के तीन वेटरनरी कालेज, सात पशु अनुसंधान केंद्र, 14 पशु विज्ञान केंद्र और निकटवर्ती गोशालाओं को प्रशिक्षण का केंद्र बनाया गया है। इन केंद्रों में प्रायोगिक तौर पर सुविधाएं सृजित की जा रही है। प्रसार निदेशक की ओर से गौशालाओं में डेमो तैयार किए जा रहे हैं। इन केंद्रों पर इसी वर्ष से प्रशिक्षण शुरू किया जाना है। प्रसार निदेशक राजूवास की ओर से ऑन लाइन प्रशिक्षण शुरू करने का भी निर्णय किया गया है। राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्व विद्यालय के कुलपति डा. सतीश के. भार्गव ने और आर.जी. प. के राष्ट्रीय संयोजक डा. कर्नल ए. के. गहलोत के साथ निदेशक प्रसार, निदेशक मानव संसाधन और प्रतिनिधि लोग राज्य के प्रत्येक गांव से कम से कम एक युवा को खाद व कीट नियंत्रक बनाने, उससे रोजगार सृजित करने तथा इस नए सेक्टर में विपणन के आयामों पर काम शुरू किया गया है । प्रशिक्षण को व्यापक स्तर देने के लिए वि वि ने राज्य सरकार को बजट प्रावधान भी भेजा है। कोई भी युवा या गोपालक प्रशिक्षण लेकर रोजगार शुरू कर सकता है। यह खाद और कीट नियंत्रक रसायनिक खेती का विकल्प होगा। इससे खेती पर लागत घटेगी। जैविक कृषि उत्पाद का बाजार मूल्य ज्यादा मिलेगा। मिट्टी, पानी, हवा में रसायनिक दुष्प्रभाव कम होंगे। गोपालको को गोबर और गोमूत्र का मूल्य मिल सकेगा। इससे गाय पालना आर्थिक दृष्टि से फायदे का धंधा हो जाएगा। रसायनिक खेती से कृषि उत्पादों का मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव कम होंगे। राज्य में व्यापक स्तर
पर खाद और कीट नियंत्रक उत्पादन का नया सेक्टर खुल सकेगा। युवा पीढ़ी इस सेक्टर में रुचि दिखा रही है। कोई भी युवा राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्व विद्यालय के प्रसार निदेशक प्रो. राजेश कुमार धुडिया की ओर से इन विभागों इस दिशा में आगे काम करने की योजना से अवगत करवाया जाएगा। कृषि विभाग, पशु पालन, कृषि व वेटरनरी वि वि इस दिशा में समन्वित प्रयास करेंगे। वेटरनरी कालेज, पशु अनुसंधान केंद्र, पशु विज्ञान केंद्रों के प्रभारियो को प्रशिक्षण के बाद काम आगे प्रशिक्षण देने के निर्देश हैं। सबसे पहले बीकानेर संभाग को इस योजना का माडल बनाने की दिशा में 19 अप्रैल से काम शुरू किया जाएगा।

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