बीकानेर, 07 दिसम्बर। केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान में गुरुवार को मैंडेरिन में मूलवृन्त की भूमिका: प्रक्षेत्र प्रदर्शनी सह किसान-वैज्ञानिक संवाद का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में संयुक्त निदेशक कृषि कैलाश चौधरी, एसकेआरयू के निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. सुभाष चंद्र बलौदा, केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर के निदेशक डॉ जगदीश राणे एवं काजरी केंद्र बीकानेर के डॉ नवरतन पवार उपस्थित रहे।
संस्थान के निदेशक डॉ. जगदीश राणे ने स्वागत उद्बोधन के दौरान संस्थान की अनुसंधान उपलब्धियों के बारे में बताते हुए कहा कि कि संस्थान के द्वारा विकसित नींबूवर्गीय फलों की उन्नत किस्में व उत्पादन तकनीकी को अपनाकर किसान अधिक उत्पादन ले सकते हैं।केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक डॉ जगन सिंह गोरा ने संस्थान में विगत 15 सालों में नींबूवर्गीय फलों पर किये गये अनुसंधान, विकसित तकनीकियों एवं किस्मों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। डॉ गोरा ने मैंडेरिन में मूलवृन्त की भूमिका के बारे में बताते हुए कहा कि डेजी, किन्नो और फ्रेमोंट किस्मों के लिये पैक्टिनीफेरा मूलवृन्त उपयुक्त पाया गया। ये किस्मे पैक्टिनीफेरा मूलवृन्त पर सघन पौध रोपण (HDP), अच्छी फल गुणवत्ता, रोग व कीट प्रतिरोधक क्षमता की दृष्टि से उत्तम पाई गई।
वैज्ञानिक डॉ रमेश कुमार ने बताया कि किसान भाई शुष्क क्षेत्र में संस्थान द्वारा विकसित की गई मौसम्बी, मैंडेरिन तथा नीम्बू की विभिन्न किस्मो को अपनाकर 8-9 महीने तक ताजा फल प्राप्त कर अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं।कार्यक्रम में कृषि विभाग, कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के विभिन्न संस्थानो के वैज्ञानिको एवम जिले के प्रगतिशील किसानों एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया।