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बीकानेर,जब भी मंत्रिमंडल का विस्तार होगा तब बीकानेर पश्चिम से डा. बी.डी. कल्ला को हराकर चुनाव जीते जैठानंद व्यास को मंत्री पद जरूर मिलेगा। यह बात बीकानेर के लोग मानकर बैठे हैं। संसदीय सचिव रहे दो बार के विधायक डा. विश्वनाथ को भी मंत्री पद की उम्मीद है। सिध्दी कुमारी वर्तमान के सभी विधायकों में सर्वाधिक वरिष्ठ विधायक है। उनको मंत्री पद की चाह दिखाई नहीं दी। श्रीकोलायत विधायक अंशुमान सिंह पहली बार युवा विधायक बने हें। उनके मंत्री पद के समीकरण अभी बने नहीं है। श्रीडूंगरगढ़ विधायक तारा चन्द् सारस्वत विधायकी में ही मस्त है। कांग्रेस राज में बीकानेर संभाग मुख्यालय से राजस्थान सरकार के तीन मंत्री डा. कल्ला, भंवर सिंह भाटी और गोविन्द चौहान थे। अभी केन्द्र और राज्य में दौनों जगह भाजपा सरकार है। डबल इंजन की सरकार में बीकानेर से राजस्थान सरकार में सुमित गोदारा कैबीनेट मंत्री है। केन्द्र से भी अर्जुन राम मेघवाल कानून मंत्री है। फिर भी बीकानेर राजनीतिक रूप से सूना सूना ही लगता है। आमतौर पर भाजपा नेताओं में निराशा है। कई नेता तो खुलेआम कहते हैं कि प्रशासन कुछ सत्ताधारी नेताओं के हाथों की कठपूतली मात्र है। न विधायकों का सम्मान है न भाजपा के उन नेताओं का जो मंत्रियों के हाजरिए नहीं है।
बीकानेर से भारतीय जनता पार्टी के सक्रिय नेताओं में अखिलेश प्रताप सिंह प्रदेश स्तर पर संगठन में काम करने की अपनी भूमिका बना चुके है। प्रदेश भाजपा में उनके संगठन में काम करने के तरीके की छाप है। विजय आचार्य का अपना काम करने का तरीका है। वे भी प्रदेश स्तर पर ही काम करने के इच्छुक बताए जा रहे हैं। बाकी मंत्री के ईर्द गिर्द के लोगों ने सत्ता के पदों पर नियुक्तियों के लिए अपने घोड़े दौड़ा रखे है। मंत्री के नजदीकी लोगों ने पद पाने की सबसे ज्यादा उम्मीदें पाल रखी है। निकट के लोगों का कहना है कि सत्य प्रकाश आचार्य साहित्य अकादमी, किसी बोर्ड के चैयरमैन बनने की दौड़ में है। अविनाशी जोशी भी निगम बोर्ड में पद चाहते है। मोहन सुराणा भी पद की दौड़ में है। चम्पा लाल गैदर, महावीर रांका, गुमान सिंह राजपुरोहित, सुमन छाजेड़, आरती आचार्य, सुशीला राजपुरोहित, मीना आसोपा, अशोक प्रजापत, अनिल शुक्ला जैसे लोगों के नाम पार्टी सत्ता में पद पाने वालों के नाम लोगों की जुबा पर है।

राजस्थान विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले राजस्थान में मंत्रिमडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों के कयास चरम पर थे। भाजपा के नेता जो राजनीतिकी नियुक्तियों की आस लगाए बैठे उनमे फिर से नई ऊम्मीदों का संचार हुआ। फिर मंत्रिमंडल विस्तार की बात से विधायकों ने भी अपने अपने प्रयासों को गति दी। हुआ कुछ नहीं। राजस्थान में भाजपा सरकार का सुख न तो जीतकर आए विधायकों को मिल रहा है और न ही पार्टी के ऊन नेताओं को जिन्होंने सरकार आने पर कई ख्वाब देखें थे। भाजपा के नेताओं में निराशा और हताशा है। सरकार का दमखम भाजपा नेताओं में नहीं दिखाई देता। उम्मीदें तो अब भी रहेगी ही। यह हाल केवल बीकानेर में ही नहीं पूरे प्रदेश में है।

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