जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भले ही राजस्थान में सरकार व संगठन के बीच समन्वय की बात कहते हो मगर धरातल पर यह बात दिख नहीं रही है। बड़े नेताओं की आपसी खींचतान के चलते 13 जिलों में दो साल का लंबा समय बीत जाने के बाद भी अध्यक्ष नहीं बन पाए हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेस में कई जिलों में जिलाध्यक्ष ने नाम को लेकर नेताओं में एकराय नहीं बन पा रही है। नेताओं की आपसी खींचतान के चलते जिलाध्यक्षों की नियुक्तियों की दूसरी सूची अभी तक अटकी हुई है। लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश में छह से अधिक उपचुनाव हो चुके है मगर वे सब बिना डीसीसी प्रमुख के हुए। निर्वमान पदाधिकारी ही चुनाव करवा रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि जिलों में प्रदेश कांग्रेस को मुख्य चेहरा तलाशने में लगातार देरी हो रही है जिससे जिलों में सरकार व संगठन दोने के काम प्रभावित हो रहे हैं। हालांकि तीन-चार माह पहले कुछ जिलों में अध्यक्ष बना दिए गए मगर अब भी तेरह जगह अब भी खाली पड़ी है।
प्रदेश सरकार व संगठन के लिए आइना होने वाले राजधानी जयपुर में ही जिलाध्यक्ष का पद खाली है। यहां शहर जिलाध्यक्ष पद को लेकर भी खींचतान है। पार्टी के बड़े नेता अपने-अपने करीबी को जिलाध्यक्ष पद पर काबिज करवाना चाहते हैं। ऊपर से पार्टी भले ही एक होने का दावा करती हो लेकिन हकीकत यह है कि अंदर ही अंदर खींचतान जारी है। जिलाध्यक्ष पद की इस होड़ में कई दूसरे विवाद भी खुलकर सामने आ रहे हैं। हाल ही में सामने आया करबला विवाद और नगर निगम हेरिटेज में कमेटियों के विवाद की मूल
वजह भी जिलाध्यक्ष पद की खींचतान ही मानी जा रही है। करबला में क्रिकेट मैच करवाने में जब जयपुर के एक मंत्री पुत्र का नाम सामने आया तो इस पर खूब हंगामा हुआ और मामले को बड़ा तूल देने की कोशिशें हुईं। माना जा रहा है कि जयपुर के कुछ कांग्रेस नेताओं की ही इस मामले को तूल देने में बड़ी भूमिका थी। मामला अब मुख्यमंत्री तक भी पहुंच चुका है। जयपुर शहर में कांग्रेस के चार विधायक हैं जिनमें से दो मंत्री हैं। इन चारों में जिलाध्यक्ष के नाम को लेकर एकराय नहीं है। मंत्री जहां अपने-अपने करीबी को जिलाध्यक्ष बनाना चाहते हैं तो एक विधायक खुद भी जिलाध्यक्ष की दौड़ में है। इसी के चलते नेताओं की अंदरूनी तौर पर खींचतान चल रही है। हेरिटेज नगर निगम की कमेटियों में हो रही देरी को भी इसी विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है। करबला विवाद के बाद हाल ही में कमेटियों को लेकर निर्दलीय पार्षदों का विवाद भी मूल रूप से इसी की उपज माना जा रहा है। लम्बे समय से शहर के कांग्रेस नेताओं द्वारा एक ही बात कही जा रही है कि कमेटियों का गठन अब जल्दी ही जाएगा लेकिन हकीकत यह है कि नेताओं में एकराय नहीं होने के चलते अभी भी इसमें देरी हो सकती हैं। जयपुर शहर जिलाध्यक्ष चूंकि ज्यादा पॉवरफुल होता है लिहाजा शहर के कांग्रेस नेता इस पद पर अपने-अपने करीबी को काबिज करवाना चाहते हैं।