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बीकानेर,विश्व पर्यावरण दिवस पर जागरूकता लाने हेतु फॉस्टर भारतीय पर्यावरण सोसाइटी ने जन कल्याण के निमित्त प्राकृतिक आपदा व प्रबंधन प्रणाली हेतु देशभर से विशेषज्ञों को स्वयं के क्षेत्र की प्राकृतिक आपदाओं की पुष्टि हेतु शोध लेख तथा प्रबंधन प्रणाली हेतु जागरूक किया। नेशनल यूथ पार्लिमेंट ऑफ द इंडिया देश के युवाओं को जनजागृति हेतु प्रेरित करने के लिए डिजिटल माध्यम से जोड़ने का कार्य करती है अतः राष्ट्रीय शोध लेखन प्रतियोगिता का आयोजन श्री ललित नारायण आमेटा द्वारा प्रारंभ हुआ।

देश के विभिन्न क्षेत्रों से विशेषज्ञों ने उनकी स्थानीय प्राकृतिक आपदाओं पर शोध प्रस्तुत किए तथा प्रबंधन प्रणालियों पर भी विचार व्यक्त किए। ज्ञान की दृष्टि से वर्तमान समय की प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं पर विचार किया गया। मनुष्य व पर्यावरण के सामंजस्य हेतु विशिष्ट प्रबन्धन प्रणालियों पर भी परिचर्चा हुई।

मनुष्य जीवन यापन के सुख संसाधन की प्राप्ति हेतु प्रकृति पर निर्भर करता है। प्राकृतिक असंतुलन से प्राकृतिक आपदाओं की उत्पत्ति होती है जिसके दुष्प्रभाव समान्य जीवन को अस्त व्यस्त कर देते हैं। अतः प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा हेतु प्रबंधन प्रणाली भी सुदृढ होनी आवश्यक है।
विश्व पर्यावरण संरक्षण हेतु पर्यावरण आपदा तथा प्रबंधन पर शोध हेतु देश के विभिन्न प्रांतों से प्राकृतिक आपदाओं एवं प्रबंधन के शोध प्राप्त कर राष्ट्रीय पुस्तक के रूप में संकलन किया गया।

विशेषज्ञों ने विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदा अतएव प्रबंधन के उपाय प्रस्तुत किए जिसमें प्रशासनिक सेवाओं पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।
चित्तौड़गढ़ में प्राकृतिक आपदा में तापमान एवं वर्षा में भिन्नताओं की पुष्टि की। अत्यधिक ग्रीष्म ऋतु, अत्यधिक शीत ऋतु तथा वर्षा में अनियमितता के प्रभाव से वनस्पति, वन्यजीवों एवं मानवों पर दुष्प्रभाव पड़ते हैं। उक्त आपदा के प्रबंधन हेतु अत्यधिक वर्षा से नदियों में जलस्तर निकासी प्रबंधन तथा जल संचय विधि का वर्णन किया गया।
उदयपुर से भिंडर क्षेत्र में प्रकृतिक व पशुधन के सामंजस्य पर प्रकाश डाला। प्रबंधन के तौर पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम व साइक्लिंग हेतु प्रेरित किया गया। उदयपुर में अनियंत्रित विकास को प्राकृतिक आपदाओं का कारण बताते हुए, विनाश रहित विकास में योगदान का प्रबंधन भी प्रस्तुत किया।
सीकर में जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति से मानव को भौतिक एवं आर्थिक नुकसान की पुष्टि की। प्राकृतिक आपदाओं एवं प्रबंधन में ताप लहर, मरुस्थलीकरण, अम्लीय वर्षा, भूमंडलीय ऊष्मीकरण, ओलावृष्टि, शीत लहर, जलवायु परिवर्तन, अकाल एवं सूखा का वर्णन किया।
बयाना में शीत प्रकोप से पान की खेती पर दुष्प्रभाव का वर्णन किया। अतिवृष्टि से फसल को नुकसान की पुष्टि करते हुए प्रबंधन हेतु ग्लूकोज के छिड़काव की विधि वर्णित की।
अजमेर में मानवों की असीमित इच्छा पूर्ति हेतु प्राकृतिक असंतुलन से प्राकृतिक आपदाओं की उत्पत्ति का वर्णन किया। प्रबंधन हेतु प्रकृति एवं संस्कृति की सुरक्षा के माध्यम से मानव समाज की सुरक्षा के उपाय प्रकट किए।
उदयपुर के खेरवाड़ा क्षेत्र में आकाशीय बिजली से लोगों की मौत की पुष्टि करते हुए सरकारी सहायता का भी वर्णन किया।
जोधपुर के फलोदी क्षेत्र में सूखा, शीत लहर, ताप लहर, आकाशीय बिजली व आंधियों के प्रकोप से फसलों की हानि एवं अकाल की पुष्टि की। प्रबंधन के तौर पर ओरण अर्थात ऐसी भूमि जहां पर लकड़ी काटना सख्त मना है परंतु पशु चर सकते हैं का उल्लेख किया।
राजस्थान के अलवर क्षेत्र में आग से जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र की समाप्ति का वर्णन किया। प्रबंधन में नियंत्रित प्रदूषक उत्सर्जन, नियंत्रित मानव प्रदूषण व वृक्षारोपण का वर्णन किया।
राजस्थान के मरुस्थल की विषम परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए प्रबंधन में वृक्षारोपण से मरुस्थलीकरण पर नियंत्रण, कृषि विकास योजनाएं, वर्षा जल संचय व भूजल स्तर संरक्षण के सुझाव प्रकट किए।

डॉक्टर मोनिक रघुवंशी के अनुसार राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र में नदी की अनुपस्थिति में इंदिरा गांधी नहर क्षति से जल आपदा प्राय होती रहती है। प्रबंधन हेतु निष्कासित जल का पुनः उपयोग, जल के वाष्पीकरण की रोकथाम, वर्षा जल संग्रहण, कम जल की खपत के उपकरण, कम जल के उपयोग वाली फसलें व जल पुनर उपयोग योजना के सुझाव प्रकट किए।
डॉक्टर मोनिका रघुवंशी को पर्यावरण ब्रांड एंबेसडर सम्मान से अलंकृत किया गया। डॉ. मोनिका रघुवंशी 160 अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय कार्यक्रमों में शामिल हो चुकी हैं। उनकी २ अंतरराष्ट्रीय पुस्तकें तथा 16 शोधपत्र अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय पुस्तकों में प्रकाशित हो चुके हैं । डॉक्टर मोनिका रघुवंशी पी.एच.डी., एम. बी. ए. (मार्केटिंग, फाइनेंस, बैंकिंग) के साथ सर्टिफिकेट इन इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, कम्प्यूटिंग, कंज्यूमर प्रोटेक्शन, ओरेकल व फ्रेंच लैंग्वेज भी प्राप्त कर चुकी हैं।

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