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जोधपुर वैभव गहलोत इन दिनों अपने पिता मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की राजनीतिक विरासत को सहेजने के साथ उनकी छत्रछाया से बाहर निकल स्वयं को एक अलग पहचान बनाने की जद्दोजहद में है। कोरोना काल के बाद उनके जोधपुर दौरों की संख्या बढ़ गई है। पहले की अपेक्षा अब वैभव काफी बदले हुए भी नजर आने लगे है। पार्टी कार्यकर्ताओं से उनकी मुलाकातों का दौर बढ़ गया है। गत लोकसभा चुनाव वैभव ने पूरी तरह से अपने पिता की छत्रछाया में लड़ा। अशोक गहलोत ने बेटे के चुनाव प्रचार में अपना पूरा अनुभव झोंक दिया। पहला अवसर था जब गहलोत ने बड़ी शिद्दत के साथ माइक्रो मेनेजमेंट के साथ बेटे के चुनाव प्रचार की बागडोर संभाली। लेकिन पाकिस्तान में एयरफोर्स के सर्जिकल स्ट्राइक से उपजी मोदी लहर में जोधपुर के लोगों ने अशोक के वैभव को पूरी तरह से नकार दिया।लोकसभा चुनाव के दौरान वैभव चुनीन्दा लोगों से ही घिरे रहे। इन लोगों की घेरेबंदी को तोड़ पाना बेहद मुश्किल था। ऐसे में आमजन को उन तक पहुंचने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। वहीं अपने आप में सिमटे वैभव भी लोगों से खुलकर मिलने से कतराते रहे। इसके पीछे मुख्य कारण उनके स्वभाव के शर्मीलेपन को माना गया। इससे यह भी मैसेज गया कि वे घमंडी है। लोकसभा चुनाव के बाद वैभव भी एक बार शांत होकर बैठ गए। यह माना जाने लगा कि अब वैभव राजनीति में वापसी शायद ही करे और अपना काम धंधा संभालने में व्यस्त हो जाएंगे। सारे कयास को दरकिनार कर गत कुछ माह से वैभव ने जोधपुर में अपनी सक्रियता बढ़ा दी एकदम नई रणनीति के साथ वे मैदान में उतरे। कुछ बदले स्वरूप में चारों तरफ का मजबूत घेरा ढीला पड़ चुका है। लोगों से मिलने के तौर तरीकों में भी बदलाव साफ नजर आने लगा। आसपास के लोगों की उसक का स्थान सहजता लेने लगी। पिता से अलग उनके दौरे बढ़ते गए लोगों को टिप्पणियों पर ध्यान दिए बगैर वे कार्यकर्ता से सीधा संवाद स्थापित करने में जुट गए। दूर दराज गांव के हो या फिर शहर के प्रत्येक कार्यकर्ता को एक जैसा मान सम्मान कार्यकर्ताओं के घर चाहे शादी हो या फिर शोक वैभव की उपस्थिति दिखने लगी है। वैभव के स्वभाव में आए इस बदलाव ने लोगों को चौंकाया भी है। वैभव में बदलाव एक दिन में न आकर धीरे-धीरे देखने को मिला।

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