बीकानेर,राजस्थानी पुरोधा डॉ. लुईजि पिऔ टैस्सीटोरी असल में भारतीय आत्मा थे, वे बचपन से ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता के संदर्भ में बातें करते थे। यही कारण रहा कि उनका जन्म इटली के उदिने शहर में हुआ। परन्तु उनकी कर्म-स्थली बीकाणा शहर रही, वे महान् कर्मयोगी थे। यह उद्गार आज प्रातः टैस्सीटोरी की समाधि स्थल पर आयोजित उनकी 136वीं जयंती पर पुष्पांजलि एवं शब्दांजलि कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राजस्थानी के वरिष्ठ कवि कथाकार एवं राजस्थानी मान्यता आंदोलन के प्रवर्तक कमल रंगा ने व्यक्त किए।
कमल रंगा ने आगे कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी कुशल संपादक महत्वपूर्ण भाषाविद् एवं उच्च स्तर के पुरातत्वविद् तो थे ही साथ ही वे राजस्थानी भाषा मान्यता के प्रबल समर्थक रहे हैं। ऐसी स्थिति में राजस्थानी भाषा को प्रदेश सरकार दूसरी राजभाषा बनाकर एवं केन्द्र सरकार संवैधानिक मान्यता प्रदान कर डॉ. टैस्सीटोरी को सच्ची श्रृद्धांजलि दे। क्योंकि यह करोड़ों लोगों की अस्मिता-जनभावना एवं पहचान का सवाल है।
आयोजन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ समाज सेवी एवं कवि नेमचन्द गहलोत ने कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी के द्वारा दी गई राजस्थानी सेवाओं को कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह भी सुखद है कि आयोजक संस्था गत 45 वर्षांे से टैस्सीटोरी के व्यक्तित्व और कृतित्व को जन-जन तक पहुंचाने का सकारात्मक प्रयास कर रही है। इसके लिए वह साधुवाद की पात्र है।
समारोह के विशिष्टि अतिथि वरिष्ठ शायर इस्हाक गौरी ‘शफ़क’ ने कहा की राजस्थानी को शीघ्र मान्यता मिलनी चाहिए जो उसका वाजब हक है। डॉ. टैस्सीटोरी समाधि-स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करते हुए इस महत्वपूर्ण स्थान का सौंदर्यकरण शीघ्र होना चाहिए।
वरिष्ठ साहित्यकार मोहन थानवी ने कहा कि प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ के सतत् प्रयासों से टैस्सीटोरी के महत्वपूर्ण कार्यो को जन-जन तक पहुंचाया गया है। जिसके लिए संस्था और कमल रंगा साधुवाद के पात्र है। आपने आगे कहा कि डॉ टैस्सीटोरी ने तुलसीदास एवं बालमिकी रामायण पर तुलनात्मक अध्ययन किया। साथ ही उन्होंने भारतीय दर्शन पर अनेक पत्रवाचन किए।
समारोह में वरिष्ठ शायर जाकिर अदीब ने कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी बहुभाषाविद् थे, उन्होने अनेक ग्रंथों का सम्पादन किया। राजस्थानी मान्यता के लिए अलख जगाई। अतः अब शीघ्र मान्यता मिलनी चाहिए। सरकारें इस ओर ध्यान दें।
वरिष्ठ शायर वली मोहम्मद गौरी रजवी ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी ने 1914 से 1919 के छोटे काल खंड में वह कार्य किया जिसे भुलाया नहीं जा सकता। डॉ टैस्सीटोरी की राजस्थानी के हर क्षेत्र में कि गई सेवाएं उल्लेखजोग है। वरिष्ठ कवयित्री मधुरिमा सिंह ने डॉ. टैस्सीटोरी के व्यक्तित्व और
कृतित्व पर केन्द्रित अपनी काव्य रचना के माध्यम से टैस्सीटोरी की सेवाओं का बखान किया। वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी घनश्याम सिंह ने ऐसे महान् पुरोधाओं के प्रति प्रशासन और सरकार को संवेदनशील होना चाहिए।
इस अवसर पर वरिष्ठ रचनाकार एड. इसरार हसन कादरी ने कहा की डॉ टैस्सीटोरी बहुआयामी व्यक्तित्व तो थे ही साथ ही राजस्थानी के प्रबल सर्मथक थे। हमें सामूहिक प्रयास कर राजस्थानी को मान्यता दिलानी चाहिए।
पुष्पांजलि और शब्दंाजलि कार्यक्रम में साहित्यकार जगदीशदान बारहठ, कवि जुगल पुरोहित, वरिष्ठ इतिहासविद् डॉ. फारूक चौहान, शायर शमीम अहमद शमीम, साजिद खां गौरी, असद अली असद, अनीस अहमद, गंगाबिशन विश्नोई, कार्तिक मोदी, हरिनारायण आचार्य, भवानी सिंह, आशिष रंगा, हेमलता, संजय सांखला आदि ने भी समाधि स्थल पर अपनी शंब्दाजलि अर्पित करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन के माध्यम से नई पीढ़ी प्रेरणा ले और टैस्सीटोरी के कार्य को नमन स्मरण करते हुए राजस्थानी की संवैधानिक एवं दूसरी राजभाषा के आदोलन में अपना सकारात्मक सहयोग दे। क्योंकि वही डॉ टैस्सीटोरी को सच्ची श्रंद्धांजलि होगी।
समारोह में राजस्थानी को दूसरी राजभाषा बनाने एवं संवैधानिक मान्यता के साथ-साथ टैस्सीटोरी स्थल को विकसित करने बाबत एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया।
समारोह का संचालन युवा शायर कासिम बीकानेरी ने करते हुए डॉ टैस्सीटोरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। सभी का आभार ज्ञापित करते हुए युवा कवि गिरिराज पारीक ने तीन दिवसीय ओळू समारोह के दूसरे दिन 14 दिसम्बर 23 वार गुरूवार को सांय 5 बजे नागरी भण्डार स्थित सुदर्शन कला दीर्घा में पधारने का आमंत्रण दिया।