बीकानेर,एमजीएसयू इतिहास विभाग की संकाय सदस्य डॉ. मेघना शर्मा ने जलगांव महाराष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय अक्षरा जर्नल द्वारा आयोजित बुद्ध धर्म का इतिहास एवं दर्शन विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन सोमवार को पैनलिस्ट के तौर पर बोलते हुए कहा कि वैदिक काल की विदुषियों के शास्त्रार्थ के बाद बौद्ध भिक्षुणियों द्वारा रचित पाली साहित्य थेरीगाथा अपनेआप में लैंगिक समानता, मुक्ति व प्रबोधन मार्ग का साक्षी ग्रंथ कहा जा सकता है जिसमें 73 काव्य रचनाओं के माध्यम से गृहस्थ जीवन से दूर भिक्षुणी संघ में रहते हुए सन्यासी बौद्ध महिलाओं ने अपनी मुक्ति हेतु ज्ञान मार्ग को अपनाया। डॉ मेघना ने अपने उद्बोधन में आगे बताया कि प्राचीन काल में बौद्ध धर्म के प्रारंभिक प्रचार के समय स्त्रियों ने सर्वाधिक आर्थिक सहायता की जिसमें आम्रपाली जैसी नगरवधुएं अग्रणी रहीं । पैनल सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहासविद प्रो. अनिरुद्ध देशपांडे ने की। संगोष्ठी की संयोजक विश्वभारती यूनिवर्सिटी, शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल की डॉ. रेखा ओझा के अनुसार इस ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में देशभर के विद्वानों के अतिरिक्त वर्ल्ड बुद्धिस्ट मिशन जापान के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष, साथ ही फिलिपींस, पोलैंड, इंग्लैंड व थाईलैंड के विद्वानों ने भी अपनी बात रखी।आयोजन सचिव उत्तराखंड के डॉ. एम सी आर्य ने अंत में सभी का औपचारिक धन्यवाद ज्ञापित किया।
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