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बीकानेर,मंगलवार को एनएसडी के उपाध्यक्ष कवि, नाटककार, चिंतक डॉ. अर्जुनदेव चारण का एकल काव्यपाठ स्थानीय रमेश इंग्लिश स्कूल में आयोजित किया गया। डॉ. चारण के जन्मदिन पर आयोजित इस कार्यक्रम में वर्तमान समय में मानवीय रिश्तों और पौराणिक पात्रों में अपनी लम्बी कविताओं का वाचन किया।
यूं ही छूट जाया करै कीं, गढ़त, प्रीत रे हौयां साथै, अबखौ मारग, रंगला जैसे आधुनिक कविताओं के साथ ही पौराणिक संदर्भों और पात्रों को केन्द्रीय भूमिका में रखकर लिखी गई शंकराचारज में शंकराचार्य और मंडन मिश्र की पत्नी के बीच शास्त्रार्थ की पृष्ठभूमि है तो वहीं कविता कृष्ण की पंक्तियां ‘थनै जाण जाण्यो किशन/ के प्रीत रो रंग सदा / सांवळो ही’ज हुवै’ पढ़ी तो श्रोताओं में बैठे हर व्यक्ति में भावों का तीव्र वेग नजर आया। कच्छ और देवयानी के प्रेम पर आधारित कविता से प्रेम और विरह का समा बांधा। महाभारत के पौराणिक पात्र वृहन्नला और एक रंगकर्मी पर आधारित रंगला की अंतिम पंक्ति के ‘जे मिनखपणो है, तो सृष्टि में सैं संभव है’ से अपने काव्य पाठ का समापन किया।
काव्य पाठ पर समाहार करते हुए कवि-कहानीकार अनिरूद्ध उमट ने कहा की डॉ. चारण की कविताओं से राजस्थानी भाषा का सामथ्र्य प्रकट होता है। किसी पौराणिक कथा को काव्य में प्रकट करना और काव्य में प्रकट करते हुए उसके कथास्वरूप को बनाये रखने के लिए वर्षों की तपस्या चाहिए, जो अर्जुनदेव जी कर चुके हैं।

इसी कार्यक्रम में डॉ. अर्जुनदेव का उनके जन्मदिन पर उपस्थित गणमान्यों द्वारा उन्हें माला पहनाकर व शॉल ओढ़ाकर जन्मदिन की बधाईयां दी गई।

इस मौके पर वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार मधु आचार्य आशावादी, चिंतक-प्रकाशक दीपचंद सांखला, बृजरतन जोशी, राजेन्द्र जोशी, धीरेन्द्र आचार्य, राजाराम स्वर्णकार, अजय जोशी, बाबूलाल छंगाणी, सीमा भाटी, निर्मल शर्मा, प्रमोद चमोली, मुकेश व्यास, रेणुका व्यास नीलम, शशांक शेखर जोशी, शिव शंकर व्यास, किरण लक्ष्मी उमट, विपिन पुरोहित, अशोक जोशी, मोईनुदिन कोहरी, प्रकाश आचार्य, जुगल पुरोहित, विनिता शर्मा, अभिषेक आचार्य, सुकान्त किराडू, बाबूलाल छंगाणी, पुनित पारीक आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम में उपस्थित श्रोताओं का पत्रकार अनुराग हर्ष ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन हरीश बी. शर्मा ने किया।

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