बीकानेर,विश्व ऊंट दिवस पर डॉ अब्दुल रज़ीक कक्कड़ विश्व ऊंट दिवस के संस्थापक हैं। पहला विश्व ऊंट दिवस 22 जून 2009 में शुरू किया गया था। एक छोटा सा एक दिवसीय सेमिनार आयोजित किया गया था, जिसमें डॉ. रज़ीक ने ऊंट के महत्व, इसके इतिहास, संस्कृति में इसकी भूमिका, खाद्य सुरक्षा आदि के बारे में एक विस्तृत व्याख्यान दिया। उन्होंने बलूचिस्तान प्रांत के नीति निर्माताओं को आमंत्रित किया और क्षेत्र की खाद्य सुरक्षा में ऊंटों की भूमिका पर जोर दिया। बाद में, हर साल कई और लोग शामिल हुए और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में विश्व ऊंट दिवस मनाया जाने लगा.
विश्व ऊंट दिवस क्यों?
ऊँट के महत्व को अभी तक अच्छी तरह से समझा नहीं गया है और ना ही इन शाकाहारी के महत्व को पहचाना और सराहा गया है। नीति निर्माताओं और आम लोगो के बीच ऊंट को पिछड़े जानवर का दर्जा ही है। विश्व ऊंट दिवस ऊंट की सही कीमत और क्षमता को उजागर करने और नीति निर्माताओं को ऊंट को अनुसंधान और विकास नीतियों में उचित स्थान देने के लिए मनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ऊंटनी के दूध को प्राकृतिक औषधि माना जाता है लेकिन फिर भी लोगों को इसे जानने और समझने की जरूरत है। ऊँट के महत्व को उजागर करने के लिए हमें एक ऐसे दिन की बेहद आवश्यकता है जिससे हम ऊँट की पहचान और सराहना के लिए संयुक्त रूप से प्रयास कर सकें।
ऊंट सही मायने में रेगिस्तान का जहाज
राजस्थानी ऊँट का वैज्ञानिक नाम कैमलस ड्रोमेडेरियस है। राजस्थान सरकार ने 30 जून 2014 को ऊँट को राजस्थान के राज्य पशु का दर्जा दिया था। जिसकी घोषणा 19 सितम्बर 2014 को बीकानेर में की गई। भले ही ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता हो लेकिन असम से लेकर केरल कर्नाटक तक और गुजरात से लेकर हरियाणा पंजाब तक देश के अनेक राज्यों में ऊंट पाए जाते हैं। भारत सरकार द्वारा दिसंबर महीने में संसद में दिए गए आंकड़ों के अनुसार देश में इनकी कुल संख्या 2012 की पशुधन गणना में 1.17 लाख घटकर चार लाख थी जो 2019 की गणना में 1.48 लाख और घटकर 2.52 लाख रह गई। साल 2019 की पशुगणना में अरुणाचल प्रदेश, झारखंड, मेघालय व नागालैंड में ऊंट की संख्या आधिकारिक रूप से शून्य हो गई जबकि पांच साल पहले यानी 2012 में इन राज्यों में क्रमश: 45, 03, 07 व 92 ऊंट थे। देश के लगभग 85 प्रतिशत ऊंट राजस्थान में पाए जाते हैं। इसके बाद गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश का नंबर आता है। संसद में दी गई जानकारी के अनुसार राजस्थान में 2012 में ऊंटों की संख्या 3,25,713 थी जो 2019 में 1,12,974 घटकर 2,12,739 रह गई।
राजस्थान में विशेषतया ऊंट की 3 प्रमुख प्रजातियां पाई जाती हैं: बीकानेरी ऊंट, जैसलमेरी ऊंट तथा मेवाड़ी ऊंट। विभिन्न प्रजातियों की शारीरिक संरचनाओं में विविधता पाई जाती है।ऊंट की टांगें लंबी होती हैं, जिसमें आगे की दो टांगे मजबूत व सीधी होती हैं तथा पीछे की दो टांगे अपेक्षाकृत कमजोर व आगे की तरफ थोड़ी मुड़ी होती हैं ताकि बैठने में आसानी हो। ऊंट की तीव्र गति 65 किलोमीटर प्रति घंटा हो सकती है परंतु लंबी यात्रा के समय ऊंट 40 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलता है।
ऊंट के सिर व गर्दन बहुत ही मजबूत तथा होंठ संवेदनशील होते हैं जिससे वृक्षों से पेड़ पत्तियां खाते समय कांटे नहीं चुभते। ऊंट शाकाहारी प्राणी ही है व मरुस्थलीय वृक्ष कंटीले होते हैं परंतु ऊंट के मुंह व होंठ की बनावट व खाने की कला के कारण उसे कांटे नहीं चुभते। ऊंट की घटती आबादी
1)चराई क्षेत्रों का कम होना- इसके भी अनेक कारण है:
वन विभाग द्वारा चरागाहों को संरक्षित क्षेत्र में सम्मिलित करना। वन विभाग द्वारा चरागाहों पर चराई के संबंध में प्रतिबंध बढ़ते जा रहे है। पहले, ऊंटों को लगभग 2 महीने तक वन क्षेत्र में रहने की अनुमति थी, लेकिन अब यह वन विभाग द्वारा प्रतिबंधित कर दिया है।
2)नलकूपों से सिंचाई:हरित क्रांति के आगमन से किसानों ने नलकूपों के माध्यम से सिंचाई शुरू कीं। इन नलकूपों के माध्यम से पानी की पूर्ति केवल 6-7 साल तक हो पाती है जिसके बाद किसान दूसरी भूमि पर खेती करने चले जाते हैं। बिना किसी वनस्पति आवरण के यह छोड़ी गयी भूमि शुष्क हो जाती है और चरने के लिए अपर्याप्त रहती है।
3)शहरी विकास:तेजी से शहरीकरण के साथ, आवासीय और औद्योगिक क्षेत्रों के निर्माण के लिए घास के मैदानों को नष्ट कर दिया गया है।
4)आधुनिक कृषि तकनीकों के उपयोग से खेती में ऊंटों का उपयोग काफी कम हो गया है। कृषि के क्षेत्र में उर्वरकों और अन्य उन्नत तकनीकों के बढ़ते उपयोग के कारण, किसानों ने ऊँट के मूत्र और मल के लाभों की उपेक्षा करना शुरू कर दिया है जो कृषि भूमि के पोषण के रूप में काम करते हैं। इसने न केवल मिट्टी की उर्वरता को कम किया है बल्कि ऊंटों के महत्व को भी कम किया है।
5)ऊंटों में विभिन्न रोग: ऊंटों की संख्या में कमी होने का एक अन्य कारण है उचित पशु चिकित्सा का अभाव। ऊंट मुख्य रूप से त्वचा की बीमारियों से पीड़ित होते हैं, जिनमें मेंज भी शामिल है, जो हालांकि इतनी खतरनाक नहीं है, लेकिन अगर उन्हें अनुपचारित छोड़ दिया जाए तो यह हानिकारक हो सकता है। इसके अलावा, इन रोगों के लिए दवाएं सरलता से उपलब्ध नहीं हैं और इनकी कीमत भी अधिक है जो प्रजनकों की कठिनाइयों को और बढ़ा देती है। राजस्थान सरकार के पशुपालन विभाग ने राज्य भर में 7,897 पशु चिकित्सा संस्थानों की स्थापना की है, जिसमें पॉलीक्लिनिक, पशु चिकित्सालय, उप-केंद्र और जिला मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयां शामिल हैं। लेकिन इन संगठनों की सेवाएं सीमित हैं और सभी गांवों तक नही पहुंच पाते।
6)आर्थिक लाभ की कमी: ऊंटों द्वारा आर्थिक लाभ में भारी कमी आई है। सबसे पहले तो झुंड के भरण-पोषण के लिए बड़ी मात्रा में निवेश की आवश्यकता होती है। दूसरा, विकसित प्रौद्योगिकी के कारण विभिन्न उद्देश्यों के लिए ऊंटों का उपयोग काफी हद तक कम हो गया है।
7)इस तथ्य के बावजूद की दुग्ध उद्योग भारत में मुख्य व्यवसायों में से एक है,ऊंट के दूध का उपयोग करने का विकल्प अभी तक नहीं खोजा है। ऊंटनी के दूध का कोई संगठित बाजार नहीं है और यह कम वसा वाला दूध होने के कारण, इसकी कीमत मात्र 18-20 रूपए प्रति लीटर है।
क्या है राजस्थान ऊंट (वध निषेध और अस्थायी प्रवासन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम, 2015:
राजस्थान के राजकीय पशु ऊंट की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में लगातार गिरावट आई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2012 से 2019 तक ऊंटों की संख्या में 35% की गिरावट का अनुमान है। स्थानीय ऊंट प्रजनकों का कहना है की वास्तविक संख्या और अधिक कम होगी। राजस्थान ऊंट (वध का निषेध और अस्थायी प्रवासन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम, 2015, जिसे राज्य पशु की रक्षा के लिए रखा गया था वास्तव में गिरावट के कारणों में से एक है। राज्य की सीमा के बाहर व्यापार पर प्रतिबंध ने ऊँटों की कीमत में भारी कमी लायी है, जिससे उनके पालकों के लिए निर्वाह जटिल हो गया है अतः वे अपने जानवरों को छोड़ रहे हैं, या निराश हो कर अवैध व्यापार का सहारा ले रहे हैं। पशुपालकों का कहना है की इस कानून के आने से राज्य के ऊंट पालन घाटे का सौदा हो गया और पशुपालकों के मुंह मोड़ लेने के कारण इनकी संख्या घट रही है।
ऊंटों की स्थिति और संख्या में सुधार के लिए सुझाव:
• प्रजनकों के लिए चरागाह भूमि की आसान और पर्याप्त उपलब्धता । चराई क्षेत्रों को सुरक्षित करना, स्थापित करना व बनाए रखना।
• ऊंटनी के दूध को बढ़ावा देना व स्थायी बाजार स्थापित करना।
• राजस्थान ऊंट (वध निषेध और अस्थायी प्रवासन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम, 2015 में संशोधन।
• ऊंट प्रजनकों के लिए सस्ती और बेहतर चिकित्सा सुविधाएं।।
• लोगों को ऊंट के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ उसके वास्तविक महत्व और क्षमता को उजागर करने के लिए हर साल 22 जून को विश्व ऊंट दिवस मनाए।
लेखक: डॉ. सोनिका कुशवाह व डॉ. मोनिका रघुवंशी, भारतीय जैव विविधता संरक्षण संस्थान।