जयपुर। राजधानी जयपुर के मानसरोवर स्थित रजत पथ निवासी राकेश आशा जैन के सुपुत्र सर्वेश जैन पिछले आठ वर्षो से लगातार दशलक्षण पर्व के निर्जल दस उपवास कर रहे है। इस वर्ष उनका नौवा वर्ष है जिसके (उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौंच, सत्य, संयम, तप) के सात उपवास कर चुके है, गुरुवार को नवां उपवास उत्तम आकिंचन धर्म का किया। शुक्रवार को उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म और अनंत चौदस का उपवास रखेंगे। दिगंबर जैन परंपराओं में भादों माह का अतिमहत्वपूर्ण स्थान है। इस माह को त्याग, तप और साधना का सबसे सर्वश्रेष्ठ पर्व माना गया। इसी माह के दौरान अंतिम दस दिनों में दशलक्षण पर्व पूजे जाते है। जिसमें केवल त्यागी – वृति ही नही बल्कि समाज का प्रत्येक श्रावक और श्राविकाएं अपनी यथाशक्ति अनुसार त्याग, तप और साधना कर जिनेन्द्र प्रभु की भक्तिभाव के साथ आराधना करते है। भादों माह में 32 दिन के उपवास, 16 दिन के उपवास, 10 दिन के उपवास, 5 दिन के उपवास और 3 दिन के उपवास प्रमुखता के साथ श्रावक और श्राविकाओं द्वारा किए जाते है और अनंत चौदस पर लगभग प्रत्येक जैन श्रावक उपवास रखकर 24 तीर्थंकर भगवानों की आराधना करते है। इस बार राजधानी जयपुर में 80 हजार से अधिक श्रद्धालु अनंत चौदस का उपवास रखेंगे।
*उपवास के दौरान दिन में केवल एक बार छना हुआ गर्म पानी पीते है त्यागी-वृति*
दशलक्षण पर्व के अंतर्गत जो भी त्यागी-वृति उपवास करने की भावना भाते है और उपवास रखते है वह जितने दिन का उपवास रखते है उतने दिनों तक सभी तरह की मौह-माया, व्यापार आदि का त्याग कर देते है और उपवास वाले दिनों में अपना पूरा ध्यान केवल जिनेन्द्र आराधना और साधु-संतों की सेवा में लगा देते है। उपवास के दिनों में केवल एक समय मे एक बार छना हुआ गर्म पानी पीने की छूट होती है। 32 दिन और 16 दिन के सोलहकरण उपवास करने वाले श्रावकों का पारणा पड़वा वाले दिन होता है और दशलक्षण पर्व, पंचमेरु, रत्नत्रय व झर का तेला करने वाले त्यागी-वृत्तियों का पारणा पूर्णिमा वाले दिन होता है।
*दिन की शुरुवात श्रीजी के कलशाभिषेक, शांतिधारा से*
अखिल भारतीय दिगम्बर जैन युवा एकता संघ अध्यक्ष अभिषेक जैन बिट्टू ने जानकारी देते हुए बताया कि उपवास रखने वाले सभी त्यागी-वृति अपने दिन की शुरूवार श्रीजी के कलशाभिषेक और शांतिधारा से करते है। इसके उपरांत विधान पूजन करते है जो श्रावक सोलहकारण के उपवास रखते है वह 24 तीर्थंकरों की पूजन के साथ, सोलहकारण, दशलक्षण पर्व आदि सहित प्रत्येक दिन के धर्मों की पूजा अष्ट द्रव्यों से करते है। इसके पश्चात साधु-संतों के प्रवचन सुनते है, उसके बाद साधुओं को आहार करवाते है। इस बीच थोड़ा विश्राम करते है और दोपहर में साधुओ के सानिध्य में आयोजित होने वाले साधुओं की कक्षा में शामिल होकर शंका समाधान लेते है और जाप करते है। संध्याकालीन में श्रीजी की आरती व साधुओं की आरती करते है। इसके बाद अंत मे साधुओं की वैय्या-व्रती कर अपना दिन पूरा करते है।
*आर्यिका गौरवमती माताजी की प्रेरणा और सानिध्य में वर्ष 2014 में किया था पहला दशलक्षण पर्व*
वर्ष 2014 में गणिनी आर्यिका गौरवमती माताजी ससंघ का मानसरोवर के वरुण पथ दिगम्बर जैन मंदिर में पहली बार चातुर्मास सम्पन्न हुआ था। इसी चातुर्मास के दौरान सर्वेश जैन ने पूज्य माताजी को श्रीफल भेंट कर दशलक्षण पर्व के उपवास करने का आशीर्वाद प्राप्त किया था और माताजी के सानिध्य में निविघ्न उपवास किये थे इसके बाद माताजी के जहां-जहां चातुर्मास हुए सर्वेश जैन ने माताजी के सानिध्य में दशलक्षण पर्व के उपवास किये। अब तक आठ बार दशलक्षण पर्व कर चुके सर्वेश जैन इस बार नवां वर्ष है और अगले वर्ष 2023 में दशलक्षण पर्व के दस उपवास सम्पन्न करेंगे। इस वर्ष पहली बार माताजी के देवलोकगमन होने के कारण माताजी का सानिध्य प्राप्त नही है किंतु सर्वेश जैन कहते है कि ” गुरुमां सुपार्श्वमती और गौरवमती माताजी की प्रेरणा और आशीर्वाद सदैव उनके साथ है, उनके बताए मार्गो को प्रशस्त कर वह दशलक्षण पर्व के उपवास पूरे करेंगे। ” इस बार उन्हें आचार्य विवेक सागर महाराज ससंघ का सानिध्य और आचार्य सुनील सागर महाराज, आचार्य अनेकांत सागर महाराज, आचार्य नवीननंदी महाराज मुनि अनुकरण सागर महाराज व आर्यिका संगीतमती माताजी का आशीर्वाद प्राप्त है।