बीकानेर, रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के जन्माष्टमी, धर्मज्ञाता सूत्र एवं राजा मांगतुग व मृगावती के कथा चरित्र के माध्यम से साध्वी मृगावतीजी म.सा. व नित्योदयाश्रीजी ने प्रवचन में कहा कि भगवान कृष्ण की बांसुरी से प्रेरणा लेकर बिना सोचे व विचारे नहीं बोले। कम बोले, मीठा बोले व धीरें बोले, अपनी वाणी को राग-द्वेष व अहंकार मुक्त रखें।
उन्होंने कहा कि तृष्णा, आकांक्षा, लोभ, मोह, काम व क्रोध का त्याग कर दीन, दुःखी, निरीही प्राणियों पर दया,करुणा और अनुकंपा के भाव रखे। दूसरों के प्रति शुभ सोचे, अशुभ नहीं । शुभ सोचने से अंतःकरण में शुद्धता आती है। आंतरिक शुद्धता से ही अंतरयात्रा शुरू होती है। भगवान श्रीकृष्ण जैसे महापुरुर्षों के आदर्शों से प्रेरणा लेकर अपने में व्याप्त परमात्म तत्व को पहचाने तथा जीवन को जीवंत व मनोहरमय बनाएं।
इस अवसर मनीषा कोचर के मास खमण (एक माह निरआहार उपवास) लीला बाई व चतर बाई के तेले की तपस्या की अनुमोदना की गई। ज्ञानशाला के 21 बालक-बालिकाओं ने दोहों के साथ गुरुवंदना की । बच्चों की ओर सार्वजनिक रूप् से शालीनता, अनुशासन व धार्मिक भावना के अनुसार की गई गुरुवंदना की जयकार के साथ तारीफ की गई।
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